ग़रीबी के बढ़ते समुद्र में अमीरी के द्वीप
भारत में बढ़ती ग़रीबी की सच्चाई बताने के लिए शायद ही आँकड़ों और रिपोर्टों की ज़रूरत पड़े। देश के नगरों-महानगरों में करोडों की तादाद में गाँव-देहात से उजड़कर आयी ग़रीब आबादी को राह चलते देखा जा सकता है। लेकिन फिर भी शासक वर्ग सूचना तन्त्र के माध्यम से ‘विकास’ के आँकड़े (जैसे – जीडीपी, सेंसेक्स की उछाल) दिखाकर आबादी में भ्रमजाल फैलाने की कोशिश करता है। ज़ाहिरा तौर पर झूठ के इस भ्रमजाल से आम आबादी भी प्रभावित होती है और एक मिथ्याभासी विकास के सपने देखती है। जबकि हकीकतन मुट्ठीभर लोगों के विकास की कीमत इस आम-आबादी को चुकानी पड़ती है।