हरियाणा में पीटीआई शिक्षक बर्ख़ास्तगी के विरुद्ध आन्दोलन की राह पर

आह्वान संवाददाता

हरियाणा में 1983 पीटीआई शिक्षकों को कोरोना संकट के बीच में नौकरी से निकाल दिया गया। हरियाणा राज्य के अलग-अलग ज़िलों में 2010 बैच के शारीरिक शिक्षक अपने रोज़गार को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। पीटीआई अध्यापक कोरोना के ख़तरे के बीच उमसभरी गर्मी के थपेड़े खाते, बारिश में भीगते हुए भी अपने हक़ के लिए आवाज़ उठाते रहे हैं। राज्य भर की कर्मचारी यूनियनें, जनसंगठन और सामाजिक संगठन भी पीटीआई अध्यापकों के न्यायपूर्ण संघर्ष के समर्थन में आगे आ रहे हैं।

सरकारी चमचे कहते हैं कि पीटीआई अध्यापक क़ाबिल नहीं हैं। जिन पीटीआई अध्यापकों ने बेहद कम संसाधनों के बावजूद ऐसे होनहार युवक-युवतियों को तैयार किया है जो स्टेट-नेशनल से लेकर इण्टरनेशनल तक खेलकर हज़ारों मेडल जीत चुके हैं, क्या उनकी क़ाबिलियत पर सवाल उठाया जाना जायज़ है? रोहतक धरनास्थल पर मेडलों और प्रमाणपत्रों के साथ कई छात्र-छात्राएँ अपने पीटीआई अध्यापकों के समर्थन में आ भी चुके हैं। जो सरकार कोर्ट में यह कहकर अपना पल्ला झाड़ती है कि हमें 1,983 पीटीआई की ज़रूरत नहीं है वह इनके कारण मेडल आने पर तो बड़ी वाहवाही लूटती है।

विगत 28 मई को सर्वोच्च न्यायालय ने एक आदेश जारी किया था जिसके अनुसार शारीरिक शिक्षकों की 2010 की भर्ती को रद्द कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट अपने फ़ैसले में यह बात साफ़ कहता है कि भर्ती की प्रक्रिया में दिक़्क़तें थी लेकिन पीटीआई शिक्षकों की कोई ग़लती नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार को आदेश दिया कि इन 1,983 शिक्षकों को अगले तीन दिन में हटा दिया जाये। सरकार ने बिना ढंग से कोर्ट में ज़िरह किये 1 जून को 1,983 शारीरिक शिक्षकों को नौकरी से हटा दिया।

इस मुद्दे पर पीटीआई अध्यापकों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट में हरियाणा सरकार ने सही ढंग से पीटीआई पक्ष की पैरवी ही नहीं की। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय में यह कहीं नहीं कहा गया है कि शिक्षकों ने धाँधली के जरिये नौकरी प्राप्त की है। बल्कि आयोग के भर्ती के तरीक़े पर सवाल उठाते हुए भर्ती को रद्द किया है। कोर्ट ने सरकार से यह भी पूछा कि इन अध्यापकों को निकालकर आप मैन-पावर कहाँ से लाओगे? इस पर भी सरकार ने गोल-मोल जवाब देते हुए शिक्षको की ज़रूरत को ही नकार दिया। 10 साल अपनी सेवाएँ देने के बाद सरकार ने इन्हें बेरोज़गार कर दिया है और कोरोना जैसी महामारी के संकट में सड़क पर उतरने के लिए मजबूर कर दिया है। कई शिक्षक जिनकी मौत हो चुकी है उनके आश्रितों को पेन्शन मिल रही है, अब नौकरी जाने के बाद उनके परिवार भी भी सड़क पर आ जायेंगे।

मुख्यमंत्री बेतुके बयान दे रहे हैं। उनका कहना है कि अगर आप में योग्यता है तो नयी भर्ती की परीक्षा दीजिए और रोज़गार बचा लीजिए। कभी सरकार कहती है कि वह पीटीआई शिक्षकों को अतिथि अध्यापकों की तर्ज पर सहयोजित करने के लिए तैयार है। असल में कोर्ट के सामने सरकार के द्वारा कर्मचारियों के पक्ष की ढंग से पैरवी नहीं की गयी है। ख़ुद खट्टर सरकार के राज में तो सीधे तौर पर भर्तियों में अनियमिताएँ पायी गयी हैं। नायाब तहसीलदार का तो पेपर ही लीक हो गया था। पेपर लीक करवाने वाले जेल में हैं परन्तु खट्टर ने भर्ती को कैंसिल नहीं किया। इतनी धाँधली होने के बावजूद भी भर्तियों में पारदर्शिता का ढोंग किया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने पीटीआई भर्ती को जिन दो तर्कों पर रद्द किया है उनमें से एक यह है कि भर्ती की प्रक्रिया किस आधार पर होगी व किस चीज़ को कितनी वेटेज मिलेगी यह साफ़ नहीं था। खट्टर सरकार के कार्यकाल में भी बहुत सारी भर्तियों में यही कमी रही है लेकिन खट्टर सरकार अपनी इस कमी पर कोई बात नहीं कर रही है।

भर्ती प्रक्रियाओं को सरल व पारदर्शी बनाकर समयबद्धता के साथ निपटाया जाना चाहिए। लेकिन हमारे यहाँ एक भर्ती पूरी होने में ही वर्षों निकल जाते हैं। फ़िर अग़र कोई धाँधली होती है तो न्यायालय इतनी धीमी प्रक्रिया से फ़ैसले लेते हैं कि उसमें भी सालों लग जाते हैं। आयोग और अफ़सरशाही की ग़लती का शिकार कर्मचारियों को बना दिया जाता है।

रिपोर्ट लिखे जाने तक नौकरी बहाली के लिए पीटीआई शिक्षकों का आन्दोलन जारी है।

मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान,जुलाई-अक्‍टूबर 2020               

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