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बिल गेट्स और वॉरेन बुफे की चैरिटी: जनता की सेवा या पूँजीवाद की सेवा?

वॉरेन बुफे की सम्पत्ति का 99 प्रतिशत से ज़्यादा हिस्सा उनकी व्यक्तिगत सम्पत्ति से नहीं आता है। यह आता है वॉल मार्ट और गोल्डमान साक्स जैसे वित्तीय दैत्य कारपोरेशनों में शेयर से। वॉल मार्ट अमेरिका में सबसे कम मज़दूरी देने के लिए जाना जाता है और इसकी दुकानों में अमेरिकी मज़दूर लगभग न्यूनतम मज़दूरी पर काम करते हैं। वॉल मार्ट अपनी कई कपड़ा फैक्टरियों को चीन ले जा चुका है या ले जा रहा है जहाँ वह चीनी मज़दूरों से 147 डॉलर प्रति माह पर काम करवा रहा है। गोल्डमान साक्स वही वित्तीय संस्था है जिसके प्रमुख ने अभी कुछ महीने पहले स्वीकार किया था कि उसकी संस्था ने लापरवाही से सबप्राइम ऋण दिये जिनके कारण विश्व वित्तीय व्यवस्था चरमराई, संकट आया और दुनिया भर के मज़दूर और नौजवानों का एक बड़ा हिस्सा आज सड़कों पर बेरोज़गार है या गुलामी जैसी स्थितियों में काम कर रहा है। इन कम्पनियों का मुनाफा खरबों डॉलरों में है, जिसके लाभांश प्राप्तकर्ताओं में वॉरेन बुफे का स्थान शीर्ष पर है। ये तो सिर्फ दो उदाहरण हैं। ऐसे बीसियों साम्राज्यवादी कारपोरेशनों की विश्वव्यापी लूट का एक विचारणीय हिस्सा वॉरेन बुफे के पास जाता है। उनकी व्यक्तिगत सम्पत्ति उनके इस मुनाफे के सामने बेहद मामूली है।

पूँजीवादी व्यवस्था के चौहद्दियों के भीतर ग़रीबी नहीं हटने वाली

मुनाफे की होड़ पर टिकी ये व्यवस्था बिल्ली के समान है, जो चूहे मारती रहती है और बीच-बीच में हज करने चली जाती है। व्यापक मेहनतकश आवाम की हड्डियाँ निचोड़ने वाले मुनाफाखोर बीच-बीच में एन.जी.ओ. (गैर-सरकारी संगठन) व स्वयंसेवी संस्थाओं के माध्यम से जनता की सेवा करने उनके दुख-दर्द दूर करने का दावा करते हैं।

पूंजीवादी दार्शनिक की चिन्ता, मैनेजिंग कमेटी को सलाह

जब श्री सेन यह कह रहे थे कि एक प्रजातांत्रिक सरकार को जनता के लिए नीति एवं न्याय की रक्षा करनी चाहिये तो वह लुटेरों को परोक्षत: सब कुछ खुल्लम–खुल्ला न करने की बजाये मुखौटे के भीतर रहकर करने की बात कह रहे थे । क्योंकि शासन के जिस चरित्र और व्यवहार की कलई देश की हर मेहनतकश जनता के सामने खुल चुकी है, जिसमें कैंसर लग चुका है उसी व्यवस्था में पैबन्द लगाकर न्याय की बात करने का और क्या अर्थ हो सकता है जब श्री सेन बाल कुपोषण, प्राथमिक शिक्षा की कमी, चिकित्सा का अभाव एवं गरीबी को दूर करने के लिए सामाजिक न्याय की बात कर रहे थे तो क्या वे भूल गये थे कि इस सबके पीछे आम मेहनतकशों का शोषण एवं वही पूँजीवादी व्यवस्था है जिससे वह सामाजिक न्याय की गुहार लगा रहे हैं । अपने भाषण को समेटते हुए श्री अमर्त्य सेन यह कह रहे थे कि कानून बनाने वाले लोग अर्थात नेता और मंत्री को अधिक स्पष्ट रूप से जागरूक होना चाहिये तो वस्तुत: वे पूँजीवाद के ऊपर आने वाले ख़तरे से आगाह कर रहे थे जो मुखौटा–विहीन शोषण से पैदा हो रहा है । क्योंकि अगर सेन में थोड़ी भी दृष्टि होती तो वे देख सकते कि जिनसे वह समानता की स्थापना, गरीबी कुपोषण एवं अशिक्षा को मिटाने के लिए कानून बनाने एवं अमल में लाने के लिए सामाजिक न्याय की बात कर रहे हैं उस अन्याय के ज़िम्मेदार वही लोग हैं वरन इसके पैदा होने के स्रोत वे ही हैं । ऐसी समस्याओं के हल की विश्वदृष्टि जिस वर्गीय पक्षधरता एवं धरातल की मांग करती है वह श्री सेन के पास नहीं है ।