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“विश्व शान्ति” के वाहक हथियारों के सौदागर

आम तौर पर यह माना जाता है कि युद्ध राजनीतिक कारणों से होते हैं तथा अधिकांशतः आत्मरक्षा/आत्मसम्मान हेतु लड़े जाते हैं। बुज़ुर्आ संचार माध्यमों के द्वारा व्यापक जनसमुदाय में इस धारणा की स्वीकृति हेतु विभिन्न कार्यक्रमों का प्रसारण किया जाता है। युद्धाभ्यास, युद्धसामग्री की ख़रीद-फ़रोख़्त हथियारों के प्रेक्षण आदि जैसी सैन्य क्रियाओं को राष्ट्रीय अस्मिता के साथ जोड़ते हुए शोषित-उत्पीड़ित जनता को गौरवान्वित करने हेतु प्रोत्साहित करने का कार्य पूँजीवादी भाड़े के भोंपू निरन्तर करते रहते हैं। परन्तु यह तथ्य स्पष्ट है कि पूँजीवाद की उत्तरजीविता को बरकरार रखने तथा अकूत मुनाफ़े की हवस ने दो महायुद्धों व 50 के दशक के बाद विश्व के बड़े भूभाग (लातिन अमेरिका, एशिया, अफ्रीका) पर चलने वाले क्रमिक युद्धों को जन्म दिया। द्वितीय विश्वयोद्धोत्तर काल में लड़े गये अधिकांश युद्ध साम्राज्यवादी आर्थिक हितों के अनुकूल ही रहे हैं। साम्राज्यवादी देशों की बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा अकूत सम्पदा की लूट के बाद यदि किसी को सर्वाधिक लाभ हुआ तो वे थीं हथियार निर्माता कम्पनियाँ! युद्ध सामग्री के वैश्विक व्यापार की विशेषता निरन्तर लाभ की मौजूदगी है। हथियारों का यह व्यवसाय सर्वाधिक लाभकारी है।

‘भारत छोड़ो आन्दोलन’: भारतीय जनता की क्रान्तिकारी विरासत का अभिन्न अंग

औपनिवेशिक गुलामी से मुक्ति के संघर्ष में भारत छोड़ो आन्दोलन का निर्णायक महत्व था। यह आन्दोलन एक ऐतिहासिक जनान्दोलन था। लेकिन साथ ही इस आन्दोलन ने राष्ट्रीय बुर्जुआ नेतृत्व की पक्षधरता, क्रान्तिकारी वाम शक्तियों की निर्बलता तथा जनता की मुक्ति महत्वाकांक्षा को गहराई से रेखांकित किया था। 9 अगस्त 1942 के आन्दोलन में औपनिवेशिक गुलामी से मुक्ति हेतु छटपटाती भारतीय जनता (विशेषकर नवयुवकों) ने अपने साहस व बलिदान की एक मिसाल कायम की जिसने ब्रिटिश साम्राज्य का अन्त सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हालाँकि इस क्रान्तिकारी संघर्ष की निरन्तरता कायम न रह सकी तथा अन्ततोगवा नेतृत्व जनता के हाथों से निकलकर समझौतापरस्त कांग्रेस के हाथों में आ गया जिसकी परिणति 15 अगस्त 1947 की खण्डित-विकलांग आजादी थी।

शिवराज उवाच – ”मध्यप्रदेश में फ़ायदेमन्द निवेश के लिए आपका स्वागत है“

मध्यप्रदेश में अब तक 80530 करोड़ के निवेश का नतीजा सामने यह आया है कि जहाँ एक तरफ पूँजीपति संसाधनों का दोहन व मज़दूरों के शोषण से अकूत मुनाफा कमा रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ आम आबादी के ये हालात हैं कि कुपोषण से ग्रसित कुल बच्चों का प्रतिशत 1998-99 में 53.3 से बढ़कर 2008-09 में 60.3 पहुँच गया है तथा ख़ुद सरकारी आँकड़ों से ही म.प्र. में 12,2416 बच्चे भूख व कुपोषण से दम तोड़ चुके हैं जो कुल बाल आबादी का 60 फीसदी है। यह स्वयं म.प्र. के स्वास्थ्य मन्त्री अनूप मिश्रा का कहना है।

वे इतिहास से इतना क्यों भयाक्रान्त हैं!

जेम्स लेन की किताब में कुछ ऐसी बातों का जिक्र किया गया था जो मराठा अस्मितावादी तथा संघियों के आदर्श हिन्दू राज्य के खोखले तथा तर्कविहीन आदर्शों से कतई मेल नहीं खाती थी। तब ज़ाहिर सी बात है कि जैसा हमेशा होता आया है कि राष्ट्रवादियों का राष्ट्रप्रेम जागे तथा वे प्रतिरोध करने वालों को दैहिक व दैविक ताप से मुक्ति का अभियान शुरू करें। यह फासीवाद की कार्यनीति का अभिन्न अंग है कि वह अपने सांगठनिक व राजनीतिक हितों की पूर्ति हेतु आतंक का सहारा लेता है।