बजरंग दल : हिन्दु आतंकवाद
दीपक
पिछले कुछ दशकों से धर्म और हिन्दू राष्ट्र की दुहाई देने वाले तमाम कट्टरपंथी हिन्दुवादी संगठनों का आतंकवादी चेहरा आम जनता के सामने आईने की तरह साफ हो गया है, और साथ ही हिटलर–मुसोलीनी की इन जारज़ औलादों की ‘असली राष्ट्रभक्ति’ को भी लोग अच्छी तरह समझने लगे हैं ।
24 अगस्त को कानपुर में बजरंग दल के दो कार्यकर्त्ता राजीव मिश्र और भूपेन्द्र सिंह टाइम बम बनाते समय भीषण विस्फोट में मारे गये । घटना स्थल पर पहुँची पुलिस और पूरे देश के खुफिया तंत्र को मौके से जो साज़ो–सामान (देशी हैडग्रेनेड, टाइमर डिवाइस, घड़ियाँ और बारूद, इलाके का नक्शा) बजरंगदलियों के पास मिले उससे वे भौंचक्के रह गये । एक पुलिस अधिकारी के अनुसार कानपुर बम विस्फोट में जितनी विस्फोट सामग्री पायी गयी है, वह आधे कानपुर को तबाह कर सकती है ।
और यह कोई पहली घटना नहीं है, जिससे इन हिन्दु कट्टरपंथियों के अलगाववादी आतंकवादी चेहरे बेनकाब हुए हैं । पहली बार जून 2006 में महाराष्ट्र के नान्देड़ की घटना कुछ ऐसी ही थी जब सिंचाई विभाग के रिटायर्ड कर्मचारी, जो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से सम्बद्ध थे, लक्ष्मण राजकोंडवार के यहाँ हुए बम विस्फोट में उनका बेटा नरेश और बजरंग दल का स्थानीय नेता हिमांशु वेंकटेश मारा गया था । तब भी पुलिस को इलाके की मस्जिदों के नक्शे तथा क्षेत्र के मुसलमानों द्वारा पहने जाने वाले परिधान तथा नकली दाढ़ी आदि सामान मिला था । इसके बाद सितम्बर 2006 को मुम्बई के मालेगाँव में हिन्दुत्व के आतंकवाद का मुद्दा ज़ोरदार तरीके से बहस के केन्द्र में आया था । फिर फरवरी 2007 में नान्देड़ के शास्त्री नगर इलाके में एक दूसरा विस्फोट हुआ था । इसमें भी हिन्दुवादी संगठनों के दो लोग मारे गये थे ।
प्रारम्भिक जाँच के अनुसार उ.प्र. के कानपुर, महाराष्ट्र के नान्देड़ और 2001 में औरंगाबाद के गणेश मन्दिर के पास हुए बम विस्फोटों में अन्तर्सम्बन्ध दिखायी देता है । सभी जगहों के विस्फोटों में पाइप बम पाये गये हैं । साथ ही जाँच के बाद यह भी पता चला कि अप्रैल 2006 में दिल्ली की जामा मस्जिद और अक्टूबर 2007 में अजमेर शरीफ दरगाह में धमाके सहित कुछ धमाके सिमी व अन्य आतंकी गुटों से जुड़े धमाकों से अलग नज़र आते हैं ।
इससे आसानी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि देश के अन्दर होने वाली इन आतंकवादी घटनाओं के पीछे किन आतंकवादी संगठनों का हाथ था और निश्चित तौर पर अब भी हम लोगों का यह सोचना बेहद मासूमियत भरा होगा कि ये आतंकवादी कार्रवाइयाँ हमेशा मुस्लिम कट्टरपंथी संगठनों के हाथों ही की जाती हैं ।
बजरंग दल के इतिहास पर नजर डालें तो पता चलेगा कि अक्टूबर 1984 में उसकी स्थापना विश्व हिन्दु परिषद की पहल पर हुई । यही वह दौर था जब विश्व हिन्दु परिषद की ओर से रामजन्म भूमि आन्दोलन का आयोजन किया जा रहा था । इस यात्रा को संरक्षण प्रदान करने के लिए हिन्दु युवकों को बजरंग दल के तत्वाधान में संगठित किया गया और विश्व हिन्दु परिषद की स्थापना साठ के दशक के पूर्वाद्ध में तत्कालीन संघ सुप्रीमो गोलवलकर की पहल पर हुई थी । इसके लिए बैठक मुंबई के पवई में हुई थी । ग़ौरतलब है कि इसमें बौद्ध धार्मिक नेता दलाई लामा भी मौजूद थे । तब से लेकर अब तक बजरंगदलियों और इनके पितृसंगठन विश्व हिन्दु परिषद के कार्यकर्ताओं के घिनौने कारनामे लोगों के सामने हैं । चाहे दिसम्बर 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस का मामला हो या 2002 में गुजरात काण्ड हो या अभी उड़ीसा के कंधमाल की घटना हो सभी जगहों पर पूरे योजनाबद्ध तरीके से बजरंगदलियों ने अपनी नपुंसक मर्दानगी का नंगा नाच किया । यही नहीं इन मानवद्रोही घटनाओं को अंजाम देने में राज्य सरकारें पूरा सहयोग देती दिखायी दीं । 2002 में गुजरात काण्ड इसका जीता जागता नमूना है । इस घृणित योजना को अमली जामा पहनाने में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी का मुख्य योगदान था । तहलका काण्ड के माध्यम से लोगों को यह भी पता चला कि इनका आनुषंगिक संगठन भाजपा भी इन नृशंस जनसंहारों में अपनी पूरी भूमिका निभा रहा है ।
इन फासीवादी संगठनों की विचारधारा का पता तो गोलवरकर द्वारा लिखी पुस्तक ‘वी, ऑर, अवर नेशनहुड डिफाइन्ड’ से ही चल जाता है जिसमें उसने लिखा है कि ‘‘–––वही लोग राष्ट्रवादी देशभक्त हैं, जो हिन्दु नस्ल और राष्ट्र को महिमा प्रदान करने की आकांक्षा अपने हृदय में संजोये हैं, और उसी के तहत सक्रिय होते हैं और इस मकसद को पूरा करने के लिए जुटे रहते हैं, अन्य सभी या तो देशद्रोही हैं या राष्ट्रीय उद्देश्य के दुश्मन हैं या अगर थोड़ी सभ्य भाषा का इस्तेमाल हो तो मूर्ख हैं ।’’ हिन्दु राष्ट्र के नाम पर इन ‘‘असली देशभक्तों’’ ने आम जनता में इन्हीं सड़ी–गली मूल्य–मान्यताओं, परम्पराओं की पैरोकारी की है, जो समाज में केवल दुर्गन्ध फैलाने का काम कर रहे हैं । तमाम नैतिकताओं की बड़ी–बड़ी बात करने वाले इन हिन्दू कट्टरपंथी आतंकवादीयों का दूर–दूर तक नैतिकता से कोई वास्ता नहीं होता है । बच्चों के अन्दर मानवद्रोही ज़हर घोलने का तो इन्होंने बीड़ा ही उठा रखा है, इन फासीवादियों को बच्चों के भविष्य की इतनी चिंता सताने लगी कि उन्होंने राजस्थान और मध्यप्रदेश में माध्यमिक शिक्षा के छात्रों के लिए नई पुस्तकें पाठ्यक्रम में शामिल की हैं । ‘अथक चिंतन’ से तैयार कराई गयीं ये पुस्तकें छात्रों की चिन्ता से अधिक किसी और चिन्ता पर आधारित लगती हैं । इनमें मुसलमानों के विरोध में टिप्पणियाँ लिखी हैं । आखिर ये चौदह– पन्द्रह साल के बच्चे जब इन हिन्दुवादी संस्कारों की ट्रेनिंग से गुज़र कर तैयार होंगे तो क्या करेगें ? और यही नहीं, आमलोग अपनी निजी जिन्दगियों में कैसे रहें, किससे बात करें, किससे न करें, क्या लिखें, कौन से चित्र बनायें, आज–कल इसका ठेका इन हिन्दुवादियों ने ले रखा है । लगता है अभी धर्म की ठेकेदारी कम पड़ रड़ी थी जो लोगों की जिन्दगियों में हस्तक्षेप करने लगे!
आखिर राज्य सरकारें और केन्द्र सरकारें ऐसे धर्म के ठेकेदारों को गली के लम्पटों–गुण्डों की तरह क्यों साम्प्रदायिक कत्लेआम करने के लिए खुला छोड़ती है और असहाय मूक दर्शक बनी देखती रहती है क्योंकि सभी पूँजीवादी पार्टियाँ वोट बैंक की राजनीति करती हैं । कोई कत्लेआम हो जाने का इंतज़ार करता है ताकि बाद में मरहम लगाकर और असुरक्षा की भावना का उपयोग करके वोट बटोरे तो कोई हिन्दु वोटों को नाराज़ नहीं करना चाहता । यह पूंजीवादी व्यवस्था इस मानवद्रोही आतंकी परियोजना को नई वैधता प्रदान करती है । भारतीय पूंजीवादी व्यवस्था भूमण्डलीकरण के दौर में पैदा हुए आर्थिक–सामाजिक संकट से निपटने के लिए फासीवादी ताकतों को खाद–पानी दे रही है । पूंजीपति वर्ग निजीकरण– उदारीकरण की नीतियों को लागू करने के बाद से ही मजदूरों मेहनतकशों के क्रान्तिकारी जनउभारों को दबाने के लिए खुली आतंकवादी कार्यवाही के रुप में फासीवाद को जंजीर मे बंधे कुते की तरह इस्तेमाल करता है । फासीवादी ताक़तें मेहनतकश जनता में साम्प्रदायिक दंगे फैलाकर क्षेत्रीयता, भाषा, जाति–धर्म के नाम पर उन्माद पैदा कर उन्हें उनके असली सवालों से गुमराह करती हैं । शायद इन फासीवादियों ने अपना इतिहास भूला दिया है । इतिहास में जनता ने जो हश्र हिटलर और मुसोलिनी जैसे तानाशाहों का किया था, वही हश्र भारत में भी मजदूरों और मेहनतकशों की क्रान्तिकारी ताकत इन हिन्दु साम्प्रदायिक फासीवादियों का करेगी ।
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, अक्टूबर-दिसम्बर 2008
'आह्वान' की सदस्यता लें!
आर्थिक सहयोग भी करें!