लक्षद्वीप में भाजपा का फ़ासीवादी हस्तक्षेप
केशव आनन्द
भाजपा के सत्तासीन होने के बाद संघ ने राजनीतिक लाभ मिलने का जमकर फ़ायदा उठाया। तमाम भाजपा शासित प्रदेशों में भीड़ द्वारा हिंसा के मामले सामने आने लगे। सड़कों पर होने वाली साम्प्रदायिक हिंसा को सत्ता द्वारा खुली छूट दे दी गयी। यह हिंसा मुस्लिमों, दलितों के ख़िलाफ़ शुरू होने के बाद हर उस शख्स के ख़िलाफ़ शुरू हो गयी, जो मौजूदा सरकार से मतभेद रखता था। सरकार ने भी अलग-अलग राज्यों में अपने फ़ासीवादी एजेण्डे को लागू करने के लिए तमाम हथकण्डे अपनाने शुरू कर दिए। चाहे वो कश्मीर में 370 हटाने की बात या असम में एनआरसी को लागू करने की बात हो, यह सरकार इन राज्यों में अपनी जड़ें जमाने के लिए हर सम्भव प्रयास कर रही है। इसी कड़ी में सरकार का अगला निशाना लक्षद्वीप है। बीते दिनों तमाम बुद्धिजीवी, पत्रकार और प्रगतिशील नागरिक सरकार द्वारा लक्षद्वीप पर लिए गए फ़ैसले का विरोध कर रहे हैं। लक्षद्वीप में विकास और बदलाव के नाम पर तानाशाही का नया फ़रमान गढ़ा जा रहा है। फ़ासीवादी एजेण्डे के तईं नये प्रशासक महोदय लोगों की पारम्परिक खान-पान में दख़ल देने से लेकर उनके घर-बार, रोज़गार, राजनीतिक, जनवादी अधिकार सबकुछ छीनने के मंसूबे में हैं। तरह-तरह के प्रस्ताव पेश किए जा रहे हैं, जिसमें विकास के लिए आम लोगों के जमीन को हथियाने की योजना से लेकर स्थानीय चुनाव में उनकी भागीदारी सीमित करना है। एक प्रस्ताव के मुताबिक़ दो से अधिक बच्चों के माता-पिता स्थानीय निकाय चुनाव में हिस्सेदारी नहीं कर सकते।
इससे पहले कि हम भाजपा सरकार द्वारा लायी जाने वाली इन जनविरोधी नीतियों पर बात करें, आइये लक्षद्वीप की कुछ भौगोलिक, सामाजिक व राजनीतिक परिस्थितियों के बारे में जान लें। लक्षद्वीप कई द्वीपों का समूह है, जो कि अरब सागर में स्थित है। यहाँ के द्वीप भारत के तटीय शहर कोच्चि से करीब 220-440 किमी की दूरी पर है। यह 36 अलग-अलग द्वीपों का समूह है। 2011 की जनगणना के मुताबिक़ यहाँ की कुल आबादी 64,473 है। केरल राज्य के निकट होने की वजह से यहाँ की अधिकतम आबादी मलयालम भाषा की ही बोली बोलती है। यहाँ पर मुस्लिम आबादी की बहुतायत है। 2011 की जनगणना के मुताबिक़ मुस्लिम आबादी कुल आबादी का 96.58% हिस्सा है। यहाँ की आबादी का बड़ा हिस्सा नारियल की खेती व मछलीपालन पर निर्भर है।
लक्षद्वीप एक केन्द्रशासित प्रदेश है। भाजपा के पूर्व नेता तथा आरएसएस के क़रीबी प्रफुल खोदा पटेल पिछले साल दिसम्बर में नये लक्षद्वीप प्रशासक बनाए गए थे। जिसके बाद वे लगातार वहाँ पर आरएसएस के अल्पसंख्यक विरोधी एजेण्डे के तहत काम कर रहे हैं; आम जनता तथा स्थानीय निर्वाचित प्रतिनिधियों से मशविरा किए बिना विधान बदल रहे हैं, कानूनों को संशोधित कर रहे हैं। ये तमाम परिवर्तन तथा संशोधन जनविरोधी चरित्र के हैं। लक्षद्वीप को फ़ासीवाद की नयी प्रयोगशाला बनाया जा रहा है। गुजरात में नरेन्द्र मोदी के मुख्यमन्त्रित्व काल में गृहमन्त्री तथा दादरा और नगर हवेली तथा दमन और दीव के पूर्व प्रशासक रह चुके प्रफुल खोदा पटेल के नेतृत्व में आरएसएस लक्षद्वीप की मुस्लिम बाहुल आबादी के घेटोआइजेशन का काम कर रही है। अमित शाह के जेल जाने के दौरान प्रफुल ही मुख्यमन्त्री नरेन्द्र मोदी के सिपहसालार थे। ग़ौरतलब है कि प्रफुल पटेल का विवादों के साथ चोली दामन का साथ रहा है। फि़लहाल वे महाराष्ट्र के स्वतन्त्र सांसद मोहन डेलकर के आत्महत्या के सिलसिले में जाँच के अधीन हैं।
लक्षद्वीप में कोरोना के फ़ैलने के ज़िम्मेदार भी यहाँ के प्रशासक महोदय प्रफुल पटेल ही थे। देशभर में कोरोना के संक्रमण फैलने के बावजूद लक्षद्वीप इससे बचा हुआ था, क्योंकि यहाँ आने वाले हर यात्रियों की कोविड जाँच और एक हफ़्ते का क्वारेण्टाइन अनिवार्य था। लेकिन प्रफुल ने इस अनिवार्यता को खत्म कर यहाँ कोविड को खुला निमन्त्रण दे दिया। यहाँ पहला मामला 18 जनवरी 2021 को सामने आया था; और आज कुल आबादी का दस फ़ीसदी हिस्सा इसकी चपेट में आ चुका है। यह संघी प्रशासक की लापरवाही का नतीजा है। लक्षद्वीप में वर्तमान कोरोना परीक्षण सकारात्मकता दर 68 प्रतिशत है। जनविरोधी क़ानून सीएए-एनआरसी के विरोध के दौरान भी यहाँ प्रदर्शन कर रहे लोगों पर कार्यवाही की गयी थी।
जनवादी अधिकारों के ख़िलाफ़ आज ट्विटर तथा लक्षद्वीप में आम लोग प्रफुल के नेतृत्व पेश किए गए जनविरोधी प्रस्तावों, मसौदों का पुरजोर विरोध कर रहे हैं। लोगों के विरोध के केन्द्र में “गुण्डा अधिनियम”, “तटरक्षक अधिनियम”, “पशु संरक्षण अधिनियम” तथा “मसौदा लक्षद्वीप विकास प्राधिकरण विनियमन, 2021 (एलडीएआर 2021)” है। आइए हम एक-एक कर समझते हैं कि किस प्रकार भाजपा इन अधिनियमों के ज़रिए अपने फ़ासीवादी एजेण्डे को लागू करने का काम कर रही है।
प्रफुल ने 35वें प्रशासक के तौर पर पदभार संभालते ही सबसे पहले गुण्डा अधिनियम को लागू करने के काम किया। इस क़ानून के तहत प्रशासक किसी को भी शक़ के बिना पर डिटेन कर सकता है और उस व्यक्ति को किसी भी तरह के क़ानूनी मदद से वंचित रखा जाएगा। इस डिटेंशन की अवधि 12 महीने या उससे अधिक भी हो सकती है। ग़ौरतलब है कि पूरे भारत में लक्षद्वीप आपराधिक मामलों में सबसे कम मामले वाले प्रदेशों की श्रेणी में आता है। 31 दिसम्बर 2019 की एक आधिकारिक जानकारी के मुताबिक लक्षद्वीप जेलों में केवल 4 लोग ही कै़द हैं। आम लोगों का कहना है कि द्वीप पर यह क़ानून गैर जनवादी है, जहाँ अपराध न के बराबर होता है और कारागार आमतौर पर खाली रहते हैं। इसका प्रयोग लोगों के जनवादी दायरे को सीमित करने के लिए किया जाएगा। इसका असल मक़सद प्रशासन के ख़िलाफ़ उठने वाले आवाजों को दबाना है।
जिस तरीके़ से पूरे देशभर में सीएए-एनआरसी और मोदी सरकार की तमाम जनविरोधी नीतियों के विरोध में प्रदर्शन हुए, ऐसे में यह सरकार अलग-अलग हथकण्डों से जनता के प्रतिरोध की आवाज़ को दबाने की कोशिश कर रही है। यूएपीए से लेकर रासुका तक, ये सभी क़ानून जनता के जनवादी अधिकारों के हनन के लिए लाए गए हैं। इसी कड़ी में सरकार लक्षद्वीप में गुण्डा अधिनियम लाकर वहाँ अपने ख़िलाफ़ उठने वाले आवाज़ों को दबाने की तैयारी कर रही है।
मसौदा लक्षद्वीप विकास प्राधिकरण विनियमन, 2021 (एलडीएआर 2021) के प्रस्तावित कार्यान्वयन के ख़िलाफ़ भी आन्दोलन जारी है। लोग इस मसौदे के जनवाद विरोधी चरित्र की आलोचना कर रहे हैं और उसके ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। एलडीएआर 2021 के प्रावधानों के तहत सरकार, योजना और विकास प्राधिकरण या उसके किसी अधिकारी या उसके द्वारा नियुक्त या अधिकृत व्यक्तियों के ख़िलाफ़ कोई क़ानूनी कार्यवाही नहीं की जा सकती है। इसके मुताबिक प्रशासन कभी भी किसी भी घर की तलाशी बिना वारण्ट जारी किए ले सकता है। इसमें कड़े प्रावधान हैं जो प्रशासक को किसी भी भूमि को विकास गतिविधियों के नाम पर चिह्नित करने का अधिकार देता है। और एक बार चिन्हित हो जाने के बाद उक्त भूमि का विकास और उपयोग पूरी तरह से सरकार की इच्छा और महत्वाकांक्षा के अनुरूप होगा।
एलडीएआर 2021 की धारा 92 और धारा 93 में द्वीपवासियों से क्षेत्र परिवर्तन तथा विकास के लिए शुल्क लगाने का प्रावधान है। यानी द्वीपवासियों को विकास योजना के अनुसार क्षेत्र परिवर्तन के लिए अनुमति प्राप्त करने के लिए भुगतान करना होगा साथ ही वे अपनी भूमि विकसित करने की अनुमति के लिए भी भुगतान करने के लिए उत्तरदायी होंगे। इस मसौदे के तहत सरकार “विकास” के नाम पर हाइवे, म्यूज़ियम, पार्क इत्यादि बनाने की बात कर रही है। यह हास्यास्पद इसलिए है क्योंकि लक्षद्वीप के सबसे बड़े द्वीप का क्षेत्रफल क़रीब 4.9 वर्ग किमी है, जिस पर जनसंख्या घनत्व 2312 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है। ऐसे में व्यावहारिक तौर पर यह कितना सम्भव है, इसका फ़ैसला हम पाठकों पर छोड़ते हैं।
प्रशासक महोदय आम लोगों के खान पान में दख़ल देने का भी काम कर रहे हैं। जिसकी शुरुआत लक्षद्वीप में, जहाँ लोग आम तौर पर समुद्री भोजन पर निर्भर हैं, स्कूल के मेन्यू से मांसाहारी खाद्य पदार्थों को हटाकर की गई। लक्षद्वीप में परम्परागत तरीके से बीफ़ का उपभोग किया जाता है। यहीं नहीं भारत के केरल, गोवा समेत कई जगहों में ऐसा किया जाता है, और भाजपा इस मसले पर मौके मुताबिक़ अपनी राजनीति करती रही है। “पशु संरक्षण अधिनियम”, द्वीपों पर गोमांस के लिए वध तथा प्रसंस्करण को रोकने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। लेकिन साथ ही यहाँ पर शराब पर प्रतिबन्ध हटा दिया गया, जो मुख्य रूप से मुस्लिम बहुल द्वीपवासियों की सांस्कृतिक और धार्मिक भावनाओं के ख़िलाफ़ जाता है।
“तटरक्षक अधिनियम” के उल्लंघन का हवाला देते हुए प्रशासन ने आम मछुआरों के जाल और अन्य उपकरण रखने के शेड को ध्वस्त कर दिया है। आजीविका के लिए मुख्य रूप से मछली पकड़ने का व्यवसाय करने वाली अधिकांश द्वीपवासी आबादी के लिए यह अधिनियम किसी पीड़ा से कम नहीं है। सरकार के निशाने पर पूरा मछली व्यवसाय है। महामारी के कारण लोगों के रोज़गार की स्थिति ख़ासा खराब हो चुकी है। पर्यटन और कृषि जैसे सरकारी कार्यालयों में काम करने वाली आबादी का रोज़गार छिन गया है, 38 आँगनवाड़ी केन्द्रों को बन्द कर दिया गया है। प्रशासन लोगों की खराब होती दशा की तरफ़ आँख मूँद कर बैठा है।
लक्षद्वीप में भाजपा के फ़ासीवादी हस्तक्षेप को हम दो रूपों में समझ सकते हैं। पहला, पूँजी का फ़ैलाव! साम्राज्यवाद के इस युग में आज पूँजी का फ़ैलाव देश के सुदूर हिस्सों तक हो रहा है। पूँजीवाद में उत्पादन में अराजकता की वजह से आज बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के जंगलों को काटकर प्रकृति का अन्धाधुँध दोहन कर रहीं हैं। इसी कड़ी में पूँजी का विस्तार लक्षद्वीप के द्वीपों तक जा पहुँचा है। यहाँ अब “विकास” के नाम पर सरकार पूँजी को खुला आमन्त्रण दे रही है। ताकि प्रकृति का दोहन कर पूँजीपति मुनाफ़े की हवस पूरी कर सके। मसौदा लक्षद्वीप विकास प्राधिकरण विनियमन, 2021 (एलडीआर, 2021) इसी बात को सुनिश्चित करता है।
दूसरा, मुस्लिम बहुल आबादी वाले इलाके में भाजपा का हस्तक्षेप! फ़ासीवाद की एक चारित्रिक आभिलाक्षणिकता यह भी है कि वह जनता के सामने एक ‘नकली शत्रु’ पेश करता है, और जनता की तमाम समस्याओं का ठीकरा उसी आबादी पर फोड़ता है। फिर इस ‘शत्रु’ का दायरा बड़ा करता है, और इसमें हर वो लोग आते हैं, जो सत्तापक्ष के ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ उठाते हैं। मोदी सरकार के सत्तासीन होने के बाद तमाम लोगों को सरकार के ख़िलाफ़ बोलने के जुर्म में गिरफ़्तार कर लिया गया। और उनपर देशद्रोह का मुकदमा तक लगाया गया। नताशा नरवाल, देवांगना कलिता, प्रोफ़ेसर हैनी बाबू, डॉक्टर कफ़ील खान, उमर ख़ालिद…. फ़ेहरिस्त लम्बी है। ज़ाहिर है, इनका गुनाह बस इतना था कि इन्होंने मौजूदा सरकार से सवाल किए। अभी हाल में लक्षद्वीप की ही बात करें तो यहाँ कोरोना फ़ैलने के लिए प्रफुल पटेल को ज़िम्मेदार बताने के “जुर्म” में टीवी अभिनेत्री आएशा सुल्ताना पर एफ़आईआर दर्ज़ किया गया। यही नहीं, इसके बाद आएशा पर देशद्रोह का मुक़दमा लगा दिया गया। आज भाजपा का रास्ता हिटलर के नाज़ी पार्टी के रास्ते से अधिक भिन्न नहीं है।
भारत में हिन्दुत्ववादी फ़ासीवाद ने मुस्लिम आबादी को ‘शत्रु’ के रूप में पेश किया है। ऐसे में यह तमाम हथकण्डों से मुस्लिम आबादी के बीच एक खौफ़ पैदा करने की कोशिश में लगा है। चाहे वो कश्मीर से 370 हटाने की बात हो या लक्षद्वीप में गुण्डा अधिनियम से लेकर पशु संरक्षण अधिनियम को लाने की बात हो, इनमें साफ़ तौर पर देखा जा सकता है कि किस तरीक़े से मुस्लिम आबादी की रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में राज्यसत्ता हस्तक्षेप कर रही है। और इसके साथ ही साथ आम लोगों के बीच यह प्रचार भी कर रही है कि ये कट्टरपन्थी लोग हैं। इनके खान-पान और रहन-सहन के तरीकों के ख़िलाफ़ भी आरएसएस लगातार ज़मीनी स्तर पर अलग-अलग तरीकों से प्रचार करता रहता है। आरएसएस ने अपने अंग्रेज़ी मुख्यपत्र ऑर्गनाइज़र में दावा किया है कि 96 फ़ीसदी मुस्लिम आबादी वाले इस छोटे से द्वीप में इस्लामिक कट्टरपन्थी लोगों को प्रशासन के ख़िलाफ़ भड़का रहे हैं। विरोधियों को इस्लामिक कट्टरपन्थी बताते हुए प्रफुल पटेल के समर्थन में क़सीदे पढ़े हैं।
इतिहास में हमने देखा है कि किस प्रकार फ़ासीवाद जनता के बीच अपनी जड़ें जमाता है। यह कितना ख़तरनाक और भयावह हो सकता है यह भी हम देख चुके हैं। भारत में फ़ासीवाद ने एक लम्बे समय में जनता के बीच अपनी जड़ें जमाई हैं, और इस रूप में यह और भी ज़्यादा ख़तरनाक है। राज्यसत्ता मिलने के बाद ज़ंजीर से बँधा शिकारी कुत्ता अब आज़ाद हो गया है। और पूँजीपति वर्ग के मुनाफ़े की रखवाली के लिए यह कुछ भी कर सकता है। ऐसे में इसका एक ही जवाब हो सकता है, जनता की इन फ़ासीवादी गुटों के ख़िलाफ़ गोलबन्दी! आज इनके हर एक मंसूबों को नाकाम करने के लिए देशभर में तमाम प्रगतिशील ताक़तों को आगे आना होगा। इतिहास इसका गवाह रहा है कि जनता की ताक़त ने बड़े-बड़े शासकों को धूल चटाई है। इसलिए आज हर इंसाफ़पसंद लोगों को लक्षद्वीप की जनता के संघर्ष के साथ खड़े होने ज़रूरत है, ताकि लक्षद्वीप में इनके मंसूबों को नाकाम किया जा सके।
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, मार्च-जून 2021
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