कैथी कॉलवित्ज़ –एक उत्कृष्ट सर्वहारा कलाकार

वारुणी

“मैंने यह महसूस किया है कि मुझे लोगों के दुखों की प्रवक्ता की भूमिका से निवृत होने का कोई अधिकार नहींं। यह मेरा कर्त्तव्य है कि मैं लोगों की तकलीफ़ों को एक आवाज़ प्रदान कर सकूँ, पहाड़ों सी विशाल….वो तकलीफें जो कभी ख़त्म होती नहींं दिखतीं।”

कॉलवित्ज़, जो एक महान जर्मनप्रिंटमेकर व मूर्तिकार थीं, अपने समय के कलाकारों से अलग एक स्वतन्त्र और रैडिकल कलाकार के रूप में उभर कर आती है। उन्होंने शुरू से ही कलाकार होने के नाते समाज के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी को समझा और अपनी पक्षधरता तय की। उनके चित्रों में हम शुरुआत से ही गरीब व शोषित लोगों को पाते हैं, एक ऐसे समाज का चेहरा देखते हैं जहाँ भूख है, गरीबी है, बदहाली है और संघर्ष है! उनकी कला ने जनता के अनन्त दुखों को आवाज़ देने का काम किया है। उनकी कलाकृतियों में ज़्यादातर मज़दूर तबके से आने वाले लोगों का चित्रण मिलता है। वह “सौंदर्यपसंद” कलाकारों से बिलकुल भिन्न थीं। प्रचलित सौंदर्यशास्त्र से अलग उनके लिए ख़ूबसूरती का अलग ही पैमाना था, उनमें बुर्जुआ या मध्य वर्ग के तौर-तरीकों व ज़िन्दगी के प्रति कोई आकर्षण नहींं महसूस होता। वे हर जगह सर्वहारा वर्ग को अपने चित्रों में दिखाती हैं। एक बार अपने पिता द्वारा पूछे जाने पर कि वो क्यों हमेशा उन्हीं की ज़िन्दगी को अपनी कलाकृति में उभारती हैं, उन्होंने कहा था कि “अपने विषयों को, लगभग पूर्ण रूप से, मज़दूरों की ज़िन्दगी से चुनने के पीछे वास्तविक प्रेरणा यह थी, कि केवल यही विषय मेरे लिए एक सरल और सहज माध्यम प्रस्तुत करते थे, जिसे मैंने सुन्दर पाया। साधारण लोगों की स्वाभाविक स्वछन्दता में एक अप्रतिम सौंदर्य था। मध्य वर्ग के लोग मुझे तनिक भी नहींं भाये। बुर्जुआ जीवन मुझे सामग्रिक रूप से उबाऊ लगता था। इसके विपरीत सर्वहारा वर्ग के तौर-तरीके में एक गरिमा थी, उनकी ज़िन्दगी को एक विस्तृत आयाम मिलता था।”

उन्होंने मैक्स क्लिंगर की तरह अपनी कला को एचिंग व ड्राइंग पर ही केंद्रित रखा व पेंटिंग और रंगों से अपने कलाकृति को निखारने या खूबसूरत बनाने की कोशिश नहींं की और यही उनके कलाकृतियों की खूबसूरती थी कि वे अपने विषय के साथ सामंजस्य बनाये हुए ‘फॉर्म’ को बेहतरीन तरीके से विकसित कर पाती हैं। और वे इस सार्थक ‘फॉर्म’ को बरक़रार रखती हैं। अपने शुरुआती समय से ही मेहनतकश लोगों, शोषित-उत्पीड़ित जनता को दिखाना और बाद के दौर में सचेतन तौर पर अपनी कला के साथ एक ऐतिहासिक सामाजिक ज़िम्मेदारी को जोड़ना-एक कलाकार के रूप में कॉलवित्ज़ जिस तरह विकसित हुई उसमें उनके समय और परिस्थितियों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। किसी भी कलाकार की कलाकृति को उसके समय और उसकी ज़िन्दगी की परिस्थितियों से रूबरू हुए बिना नहींं समझा जा सकता।

कैथी कॉलवित्ज़ का जन्म 8 जुलाई 1867 में कौनिग्सबर्ग, प्रशिया (जर्मनी)  में हुआ था। उनके पिता, कार्ल श्मिट, एक सामाजिक जनवादी थे जो राजमिस्त्री का काम करते थे। वे जर्मनी की सामाजिक जनवादी पार्टी से जुड़े हुए थे। उनकी माँ, कैथरीना श्मिट, जूलियस रूप की बेटी थीं जो एक लूथरन पादरी था। कैथी अपने दादा से भी बहुत हद तक प्रभावित थीं। कॉलवित्ज़ की प्रतिभा को पहचानते हुए, उनके पिता ने उन्हें बारह वर्ष की उम्र में ही रुडोल्फ माउएर जोकि एक स्थानीय मूर्तिकार व नक्काशीदार था, से प्लास्टर कास्टिंग और प्रतिलिपि बनाने में प्रशिक्षित करवाया। सोलह वर्ष में वे अपने पिता के कार्यालय में काम करने वाले लोगों, नाविकों और किसानों के चित्र बनाने लगीं। कॉलवित्ज़ ने समाज के जिस तबके को अपनी कलाकृतियों का विषय बनाया, उसका आधार हम उनके पारिवारिक परिस्थितियों में व उनके पिता के रुझानों में भी पाते हैं।

एक ऐसे समय में जब सरकारी कॉलेज व कला अकादमी को लड़कियों के लिए उपलब्ध नहींं कराया जाता था, कॉलवित्ज़ ने अपना अध्ययन-प्रशिक्षण जारी रखने की इच्छा जतायी। उन्होंने कोनिसबर्ग कला अकादमी में दाखिला लेने की कोशिश की परन्तु उन्हें निराशा हाथ लगी। तब उनके पिता ने चित्रकार एमिले नेईडे के तहत उनके कला – प्रशिक्षण की शुरुआत करवायी। यहीं पर वे गुस्ताव क़ुर्बे,जो यथार्थवाद की सैद्धान्तिकी को सचेतन तौर पर विकसित करने वाले पहले कलाकार थे, की कला से परिचित हुईं।

1884 में सत्रह साल की उम्र में वो बर्लिन के कला विद्यालय में दाखिला लेती हैं जहाँ वे एक स्विज़ कलाकार कार्ल स्टॉफर बर्न के मातहत प्रशिक्षण ग्रहण करती हैं। कॉलवित्ज़ ने अपने कलात्मक सृजन की शुरुआत एक चित्रकार बनने के उम्मीद के साथ किया था परन्तु कार्ल स्टॉफर बर्न उन्हें ड्राइंग व एचिंग के लिए लगातार प्रोत्साहित करते रहे। स्टॉफर बर्न उन्हें अपने एक करीबी मित्र मैक्स क्लींगर के एचिंग से परिचित कराते हैं। क्लिंगर की कलाकृतियों, उनके एचिंग के तरीकों व उनके विषयों में सामाजिक सरोकार को देखकर कॉलवित्ज़ उनसे काफी प्रभावित हुई थीं। आगे चलकर उनकी एचिंग व ड्राइंग में मैक्स क्लिंगर का प्रभाव देखने को मिलता है। हालाँकि कॉलवित्ज़ ने क्लिंगर की रचनाओं से परिचित होने के बाद भी तुरंत ही चित्रकला के अपने अध्ययन-प्रशिक्षण को त्याग नहींं दिया था, पर आगे चलकर 1888 में जब वे म्यूनिख़ में अपने अध्ययन को जारी रखने के लिए जाती हैं, तो वहीं उन्हें इस बात का अहसास होता है कि उनकी  असली प्रतिभा पेंटिंग में नहींं बल्कि ग्राफ़िक मीडिया में है। और 1890 में वो एचिंग को गंभीरता से अपनी शैली के रूप में उभारती हैं और इस प्रकार उनकी प्रतिभा एक प्रिंटमेकर के रूप में उभर कर सामने आती है ।

               वास्तव में जर्मनी में आधुनिक प्रिंटमेकिंग का इतिहास क्लिंगर के साथ ही शुरू हुआ है। क्लिंगर चित्रकला या पेंटिंग को अपनी भावनाओं को उतारने के लिए एक सक्षम माध्यम नहींं मानते थे, उनका मानना था की पेंटिंग में कलाकार रंगों पर निर्भर होने के कारण दुनियावी प्रतीति से बंधा रहता है, जबकि ड्राइंग या एचिंग (एक प्रकार से मोनोक्रोमेटिक ड्राइंग) भावनाओं या विचारों को व्यक्त करने के लिए किसी बाह्य चीज़ से बँधा हुआ नहींं है। क्लिंगर के अनुसार प्रिंटमेकिंग या मोनोक्रोमेटिक ड्राइंग की एक मुख्य विशेषता यह है कि ये कलाकार की वैयक्तिकता (सब्जेक्टीविटी) को उसकी कला में उभरने का स्पेस देता है। अपने विषयों को सुशोभित करने या सुन्दर बनाने के कोशिश के बजाय यह शैली एक महत्वपूर्ण उपकरण के तौर पर इस्तेमाल की जा सकती है। प्रिंट का आसानी से पुनरुत्पादन भी किया जा सकता है, जिस कारण वो एक व्यापक आबादी तक पहुँचने की क्षमता रखता था। इन तमाम बातों से कॉलवित्ज़ प्रभावित होकर पेंटिंग को छोड़, सिर्फ ग्राफ़िक आर्ट में ही अपनी प्रतिभा को विकसित करती हैं। इस प्रकार इस माध्यम को चुनने के पीछे उनकी एक मंशा यह भी थी कि इसके ज़रिये वे आसानी से एक व्यापक आम मेहनतकश जनता तक अपनी बात अपनी कला के ज़रिये पहुँचा सकती थीं।

18 9 0 में कॉलवित्ज़ कोनिग्सबर्ग लौट आई और अपना पहला स्टूडियो किराए पर लिया। 1891 में कैथी कॉलवित्ज़ अपने मंगेतर कार्ल कॉलवित्ज़ के साथ शादी कर बर्लिन में बस गयीं। कार्ल से उनका संपर्क अपने युवावस्था के ही दिनों में हुआ था। कैथी के परिवार का सामाजिक जनवादी पार्टी के साथ संपर्क रहने से कार्ल कॉलवित्ज़ से भी सम्बन्ध स्थापित हुआ और यहीं से वे एक दूसरे से परिचित हुए थे। कैथी के पिता की तरह कार्ल की भी राजनीति में दिलचस्पी थी। कार्ल इस वक़्त तक एक डॉक्टर बन चुके थे और बर्लिन में ही एक मज़दूर बस्ती में उन्होंने एक क्लिनिक खोली थी, वहीं पर उन्होंने अपना घर भी बसा लिया। एक तरफ़ कार्ल की क्लिनिक और उसी से सटा हुआ कैथी का स्टूडियो भी था। यहीं से उनकी कला में एक नया बदलाव देखने को मिलता है। कैथी, जोकि बचपन से ही अपनी कलाकृतियों में शोषित उत्पीड़ित जनता को दिखाती आयीं थीं, उनका मज़दूरों के साथ या उनकी ज़िन्दगी के साथ कभी भी करीबी सम्पर्क नहीं रहा था। मज़दूर आबादी की ज़िन्दगी को करीब से जानने का मौका उन्हें तब ही मिला जब वे बर्लिन में बस गयीं। वहाँ कार्ल के क्लिनिक में ज़्यादातर मज़दूर आबादी से आने वाले मरीज़ होते थे, और यहीं कैथी मज़दूरों के दुःख व तकलीफों से और उनकी ज़िन्दगी की ज़द्दोज़हद से परिचित होती हैं। यहीं पर कैथी मज़दूरों की तकलीफों को बहुत गहरे से अनुभव करती हैं।

1898 में कॉलवित्ज़ का पहला सफ़ल काम जिसने उन्हें एक प्रिंटमेकर के तौर पर स्थपित कर दिया, वह थी उनकी प्रिंट सीरीज़ – ‘बुनकरों का विद्रोह’। 1893  में गेहार्ट हॉप्टमैन  द्वारा निर्देशित  ‘बुनकरों का विद्रोह’ नामक नाटक से प्रभावित होकर ही कैथी ने इसे अपने कला का विषयवस्तु बनाया। यह नाटक एक ऐतिहासिक घटना पर आधारित नाटक है। जून 1844 में आर्थिक मंदी के दौरान सिलीसिया के प्रशा प्रान्त में बड़ी संख्या में बुनकरों ने विद्रोह कर दिया, उन्होंने गोदामों पर हमला कर दिया, मशीनों को तहस-नहस कर दिया। इस विद्रोह को दबाने के लिए प्रशियाई सेना वहाँ पहुँचती है और बेरहम तरीके से मज़दूरों की भीड़ पर गोलियाँ चलाती है जिसमें 11 लोगों की मौत हो जाती है और कई लोग घायल होते हैं। विद्रोह में नेतृत्व देने वाले लोगों को गिरफ्तार कर लिया जाता है और उन्हें फाँसी और कैद की सजा सुना दी जाती है। कार्ल मार्क्स ने इस विद्रोह के बारे में चर्चा करते हुए कहा था कि यह विद्रोह जर्मनी में मज़दूर आन्दोलन की शुरुआत को चिन्हित करता है। हॉप्टमैन का यह नाटक कैथी के कलात्मक सृजन में एक मील का पत्थर साबित होता है। नाटक से बेहद प्रभावित हो कर कैथी अगले पाँच साल तक ‘बुनकरों का विद्रोह’ नामक अपनी प्रिंट श्रृंखला में इस विद्रोह को अपने चित्रों के ज़रिये दर्शाने का काम करती हैं। श्रृंखला में पहला 3 भाग (ग़रीबी, मृत्यु, षड्यंत्र) लिथोग्राफ है और आखरी तीन (बुनकरों का मार्च, मालिकों के गेट पर हमला, अन्त ) एचिंग है।

 पहला लिथोग्राफ़ एक ऐसे कमरे को चित्रित करता है जिसमे एक कुपोषित बच्चा बिस्तर में सो रहा है और उसकी माँ जीर्ण हाथों से निराशा में डूबे हुए  अपने माथे को थामे बैठी है। माता पिता की अपने बीमार बच्चे पर स्थित चिन्ता भरी नज़र उनके दर्द को दर्शाती है। पहले और दूसरे लिथोग्राफ़ में हमें साफ़ देखने को मिलता है की कैथी ने मज़दूरों के दुःख व दुर्दशा को बहुत गहरे से अनुभव किया है। दोनों ही लिथोग्राफ़ में गरीबी, कुपोषण और बेरोज़गारी से बेहाल मज़दूरों की जीर्ण शरीर संरचना को उन्होंने बखूबी उकेरा है। गरीबी और बेरोज़गारी का मजदूरों और उनकी ज़िन्दगी पर क्या प्रभाव पड़ता है, कैथी ने इसका बहुत ही हृदयविदारक चित्रण किया है। पर यहाँ ये चित्र दर्शक में सिर्फ दया या करुणा की भावना नहींं बल्कि शोषण के खिलाफ विद्रोह की भावना को भी प्रबल करने का काम करता है। कुपोषण के कारण बच्चे की मौत होने पर क्रोध और प्रतिशोध की भावना से उत्तेजित बुनकरों ने एक सभा का आयोजन किया है, जिसका चित्रण अगले लिथोग्राफ़ में किया गया है। इसकी अगली कड़ी में मज़दूरों की इस भावना को विद्रोह का रूप देते हुए चित्रित किया गया है जिसमे वे कारखाना मालिकों के गेट की तरफ मार्च करते हुए दिखाई देते हैं और उनपर हमला बोल देते हैं।

सेना के दमन के पश्चात इस विद्रोह का अन्त मजदूरों में  निराशा या पस्तहिम्मती के तौर पर नहींं होता। श्रृंखला की अन्तिम एचिंग में जब कुछ मज़दूर दमन में मारे गये मज़दूरों की लाशों को ला रहे होते हैं, तो दरवाज़े पर मौजूद एक महिला को चित्रित किया गया है, जिसका माथा व्यथा से झुका हुआ है लेकिन फिर भी उसकी मुट्ठियाँ तनी हुई हैं जो इस बात का परिचायक हैं कि क्रोध और प्रतिरोध की भावना अभी ख़त्म नहींं हुई है। वह भावना कहीं बीज रूप में अन्दर मौजूद रहती है और सीमाएँ पार करने पर विद्रोह का रूप ले सकती है। कैथी की इस प्रिन्ट श्रृंखला को बर्लिन के एक प्रदर्शनी में स्वर्ण पदक के लिए चुना गया था लेकिन प्रशा के राजा केसर विलियम द्वितीय ने इसे ‘गटर आर्ट’ कहकर इसपर अपनी अस्वीकृति दे दी। यह श्रृंखला अपने आप में कॉलवित्ज़ के लिए बहुत महत्वपूर्ण साबित हुई। उनकी यह प्रिंट सीरीज़ सबसे व्यापक तौर पर ख्याति पाती है।

हालाँकि यह श्रृंखला नाटक के आधार पर बनायी गयी थी जो कि एक ऐतिहासिक घटना पर आधारित था लेकिन चित्र श्रृंखला आम तौर पर मज़दूरों की दयनीय स्थिति और ज़िन्दगी के हालात पर केंद्रित थी और ऐसी परिस्थितियों  के खिलाफ विरोध को चित्रित करती है। अपनी इस चित्र श्रृंखला की सफलता ने कॉलवित्ज़ को प्रोत्साहित किया और उसके बाद की दस सालों की अवधि में उन्होंने कुछ बेहतरीन चित्र बनाये जिसमे प्रमुख तौर पर चित्र श्रृंखला ‘किसान युद्ध’ व्यापक ख्याति पाता है। इस श्रृंखला को बनाने में वे 1902 से 1908 तक व्यस्त रहीं। हालाँकि यह भी 1522 -1525 के जर्मनी के किसान विद्रोह की एतिहासिक घटना पर आधारित था। पर फिर भी इस श्रृंखला में क्रान्ति के चरणों को काल्पनिक रूप से दर्शाया गया था। किसानों की काम करने की अमानवीय परिस्थितियों के खिलाफ और ज़मींदारों के शोषण के खिलाफ फूटा यह विद्रोह 1789 की पूँजीवादी क्रान्ति होने से पहले, यूरोप का सबसे बड़ा और व्यापक किसान विद्रोह था।

कॉलवित्ज़ ने इस श्रृंखला में सात चित्र बनाये हैं जिसे एक क्रम में बैठाने की कोशिश की है। किसानों पर किये गये अत्याचार व शोषण पर केन्द्रित करते हुए श्रृंखला के पहले चित्र में मनुष्यों को जानवरों की तरह खटाया जाना प्रदर्शित किया गया है, फिर सामन्ती प्रभु द्वारा एक किसान महिला का बलात्कार, उसके बाद किसान विद्रोह की तैयारी की तस्वीर और फिर किसान विद्रोह का उभार और अन्त में सामन्ती सत्ता द्वारा दमन के बाद उनकी हार और विद्रोही किसानों का बन्दी बना लिया जाना। तस्वीरों की इस श्रृंखला में किसान विद्रोह के उभार को जब चित्रित किया गया है, तो उसमें किसानों को महज़ एक भीड़ के रूप में नहींं दिखाया गया है, बल्कि उसमें प्रत्येक व्यक्ति के तस्वीर को इस रूप में उभारने की कोशिश की गयी है कि हर एक किसान की विद्रोह में सचेतन भागीदारी को, उनके चेहरे और भाव-भंगिमा के ज़रिये दिखाया जा सके।

इस एचिंग में एक नग्न आकृति भी है, जो क्रान्ति के रूपक के तौर पर इस्तेमाल की गयी है, किसानों को ललकारती प्रतीत होती है। इसकी अगली ही कड़ी में किसानों का मार्च दिखाया गया है जिसे एक ऐतिहासिक पात्र ब्लैक एना नेतृत्व देती हैं। इस चित्र में भी कॉलवित्ज़ ने कहीं भी शोषकों को चित्रित नहींं किया है। उनके चित्रों की आम तौर पर एक यह विशेषता रही है कि उनमे शोषक शक्तियाँ कहीं उपस्थित नहीं दिखतीं परन्तु जनता पर उनके शोषण और अत्याचार के गहरे घाव दीखते हैं और इसी प्रकार अप्रत्यक्ष तरीके से ही कॉलवित्ज़ अपने दर्शक के मन में प्रतिरोध की भावना को जन्म देती हैं। जब इस श्रृंखला को 1908 में जारी किया गया था तो उसने पूरे यूरोप में कॉलवित्ज़ को सबसे महत्वपूर्ण ग्राफिक कलाकारों के रूप में स्थापित कर दिया ।

इसी दौर में कॉलवित्ज़ ने अपने मृत बच्चे की मौत पर विलाप करती माँ की एक हृदयविदारक तस्वीर बनायी। यह उनके पूरे जीवनकाल की सबसे शक्तिशाली तस्वीरों में से एक है। इसमें उन्होंने किसी को खोने के दुःख को बहुत ही गहरे से अनुभव किया है। तस्वीर को देख उनके एक दोस्त बोनस जीप इस प्रकार स्तब्ध रह गये कि उन्हें लगा कि कहीं उनके बेटे के साथ कोई दुर्घटना न घटी हो। उस तस्वीर को जीप ने इस रूप में वर्णित किया “एक माँ, पशु जैसी निरावरण, जाँघों और बाँहों में अपनी मृत सन्तान की रक्तशून्य शव को समेटी हुई, अपनी आकुल आँखों से,अपने होठों से, अपनी साँसों से उस लुप्त होती हुई जान को जो कभी उसी के गर्भ में पला था, वापस अपने अन्दर निगल जाना चाहती है।” अपने इस अभूतपूर्व चित्र में चेहरे की भावना को उभारने के बजाय उन्होंने पूरी आकृति को ही मार्मिक और भावात्मक बना दिया। यहाँ इस चित्र में कॉलवित्ज़ अपने विषय से हटकर खुद को अनावश्यक विवरण में खोने की अनुमति नहीं देती हैं और सिर्फ उसी आकृति को उभारती हैं जिसे वे दिखाना चाहती हैं। चित्र के पीछे की पृष्ठभूमि पर कोई काम नहीं करती। यह भी उनके चित्रों की एक विशेषता है जो हम उनकी ज़्यादातर कलाकृतियों में देख सकते हैं।

1908-09 तक सचेतन रूप से वे अपनी कला को समाज को बदलने के उपकरण के तौर पर महसूस करने लगती हैं। और अपनी कला को समाज को बदलने के उपकरण के तौर पर जैसे-जैसे वे इस्तेमाल करती जाती हैं, वे एचिंग से हटकर लिथोग्राफी को अपने इस्तेमाल में लाती है। इसके बाद 1909 से कॉलवित्ज़ ने कलाकारों द्वारा संचालित एक राजनीतिक व्यंग्यात्मक पत्रिका ‘सिम्पलीसिसमस’ (Simp।icissimus) में अपना योगदान देना शुरू किया। इससे कई कलाकार जुड़े हुए थे जिसमें हरमॅन हेसे, थॉमस थियोडोर हाइने, गुस्ताव मेर्रिंक, यैकॉब वासरमैन, हाईनरिष क्ले, अल्फ्रेड कुबिन, रॉबर्ट वाल्सर, हाईनरिष त्ज़िले, हाईनरिष मॅन और एरिश केस्टनर आदि जैसे लोग शामिल थे।

कॉलवित्ज़ जब एक नये दृष्टिकोण से चीज़ों को अपनी कला में विकसित कर रहीं थी, तो वे कला के उद्देश्य को अपनी शैली के साथ भी जोड़ रहीं थीं। इसके बाद के कालों में देश और विश्व स्तर पर घट रही घटनाओं ने कॉलवित्ज़ को गंभीर रूप से अपने कला के उद्देश्य पर विचार करने के लिए मजबूर कर दिया। जर्मनी में बिस्मार्क के काल में 1880 के दशक से औपनिवेशिक विस्तार की शुरुआत और फिर केसर विलियम द्वितीय की 1890 की विस्तारवादी नीतियों के कारण ब्रिटेन, रूस और जापान के साथ टकराव की स्थिति पैदा होने लगी थी। बिस्मार्क के एंटी सोशलिस्ट लॉज़ के वापस लिये जाने  के बाद  सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी (एसपीडी) पर बैन हटा दिया गया। 1900 के दशक के बाद, एसपीडी जर्मनी के मज़दूर आन्दोलन में एक नेतृत्वकारी भूमिका के रूप में उभरने लगा था। 1912 में चुनाव में 35% राष्ट्रीय वोट और संसद में 110 सीटों को हासिल करते हुए, एसपीडी जर्मनी में सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के रूप में उभरी। सन 1900 में विश्व स्तर पर पूँजीवादी होड़ व प्रतिस्पर्धा के दौर में उपनिवेशों के बँटवारे के लिए साम्राज्यवादी देशों द्वारा जनता पर पहला विश्व युद्ध को थोपा गया। युद्ध के इस दौर में एसपीडी ने टटपूंजिया राष्ट्रवादी सोच से प्रस्थान करते हुए राजशाही सत्ता के साथ अपने मतभेदों को समाप्त कर युद्ध में उसकी सहायता करने की नीति अपनायी। 2 दिसम्बर 1914 में संसद में एकमात्र लिबनेख्त ही थे जिसने साम्राज्यवादी युद्ध सन्धियों के ख़िलाफ़ वोट किया था। कॉलवित्ज़ के पिता पहले से ही एसपीडी से जुड़े हुए थे। हालाँकि खुद कॉलवित्ज़ किसी पार्टी या संगठन से नहीं जुड़ीं पर तब भी जर्मनी की सामाजिक जनवादी पार्टी से सहानुभूति रखती थीं। और शायद यही कारण रहा होगा कि उन्होंने अपने बेटे पीटर को  सेना में भर्ती होने की अनुमति दे दी। इसके दो ही महीने के भीतर पीटर की युद्ध में मृत्यु हो गयी। कॉलवित्ज़ के लिए यह एक बड़ा सदमा था और इस घटना ने उनके कलात्मक सृजन को बहुत प्रभावित किया। उन्होंने खुद स्वीकारा कि 1914 में उन्होंने अपने बेटे को सेना में जाने से रोकने की कोशिश नहींं की क्योंकि तभी उनका मानना था कि “जर्मनी सही रास्ते पर था और अपनी रक्षा करने का उसे पूरा हक़ था। अपनी पितृभूमि की रक्षा के लिए उन्होंने या उनके बेटे ने जो किया, वह सही किया व देश के हित के लिए किया। राजनीतिक तौर पर सही समझदारी न होने और सामाजिक-जनवादी पार्टी द्वारा अपनायी गयी युद्ध में राजशाही के समर्थन की नीति को देखते हुए कॉलवित्ज़ को अपना फ़ैसला सही लगा था। परन्तु 1917 तक, कॉलवित्ज़ ने युद्ध के बारे में अपना विचार बदल दिया था: ” यह महसूस करते हुए कि शुरुआत से हमें धोखा दिया गया था। और शायद पीटर अभी भी जीवित रहता, यदि हमारे साथ यह भयानक विश्वासघात नहींं किया गया होता। पीटर और लाखों, और लाखों अन्य लड़कों सभी को धोखा दिया गया।” यह साफ़ था कि सामाजिक जनवादी पार्टी द्वारा जनता को धोखा दिया गया था और सर्वहारा क्रान्ति के साथ भी विश्वासघात किया गया था। पीटर की मृत्यु के बाद युद्ध के भयावह परिणाम से आम जनता को जो दुःख व तकलीफ़ सहने पड़े, यह कॉलवित्ज़ की कला का एक केंद्रीय विषय बन गया। उसके बाद से, उनके चित्रों में हम माँओं द्वारा अपने बच्चों की रक्षा करने, उनके अस्तित्व के लिए लड़ने  आदि तस्वीर पाते हैं। उनके युद्ध विरोधी चित्रों में बाकि कलाकारों से हटकर एक विशेष चीज़ हम यह पाते हैं कि वे युद्ध में हुई भौतिक क्षति को नहींं बल्कि आम घरों की महिलाओं व बच्चों पर पड़े प्रभाव को दर्शाती हैं।

विश्व युद्ध की शुरुआत के साथ ही, सामाजिक जनवादी पार्टी का एक धड़ा, उसकी जर्मन राजशाही के साथ समर्थन की नीति का विरोध करने लगा था। इनमें लिबनेख्त और रोज़ा लग्ज़ॅमबर्ग प्रमुख थे। उन्होंने कहा था कि यह युद्ध जर्मनी या किसी भी देश की जनता के हित में नहींं हो रहा बल्कि यह एक साम्राज्यवादी युद्ध है, जो विश्व बाजार के पूँजीवादी नियंत्रण के लिए किया जा रहा है, विशाल क्षेत्रों के राजनीतिक प्रभुत्व के लिए और औद्योगिक और बैंकिंग पूँजी के विस्तार के लिए किया जा रहा है। एस.पी.डी. द्वारा निकाल दिए जाने पर लिबनेख्त और रोज़ा लग्ज़ॅमबर्ग ने जनवरी 1916 में स्पार्टकस लीग की स्थापना की। उन्हें जर्मनी के युद्ध में भागीदारी के विरोध में प्रदर्शन करने के जुर्म में 1916 में गिरफ़्तार कर लिया गया और 1918 तक कैद में रखा गया। युद्ध अभी थमा नहीं था पर जर्मनी हार के कगार पर था, तभी 1918 के अन्त में जर्मन नौसेना की इकाइयों ने कीव के बन्दरगाह पर हो रहे युद्ध में आखिरी और बड़े पैमाने पर ऑपरेशन के लिए सेल करने से इनकार कर दिया। इसके बाद कीव में एक आम हड़ताल शुरू हो गयी। विश्व युद्ध से भयानक तबाही झेलने और बड़े पैमाने पर बेरोज़गारी, कुपोषण और बदहाली झेलने के कारण आम मेहनतकश आबादी में भयंकर असन्तोष था। नवम्बर की शुरुआत होते होते यह विद्रोह देश के अन्य शहरों और राज्यों में भी फैल गया जिसके बाद से कई मज़दूरों और सैनिकों की परिषदों की स्थापना हुई। कैथी ने भी इस विद्रोह का समर्थन किया और मज़दूरों और कलाकारों की परिषद् बनाने में मदद की। उन्होंने ‘1918 की क्रान्ति’ नाम से एक चारकोल स्केच भी बनाया था।

कीव की कॉउन्सिलों में सामाजिक जनवादी पार्टी की ही नेतृत्वकारी भूमिका थी परन्तु रूस की तरह मज़दूरों के सोवियतों की सत्ता स्थापित करने के बजाय सामाजिक जनवादियों ने क्रान्ति के साथ विश्वासघात किया। हिण्डनबर्ग और सेना के वरिष्ठ कमाण्डरों ने जब कैसर और उनकी सरकार में विश्वास खो दिया और कैसर ने जब अपनी सत्ता त्याग दी, तब 9 नवम्बर 1918 को, फिलिप शिडेमान ने गणराज्य की घोषणा की और एबर्ट को चांसलर का पद सौंपा गया। इस वक़्त तक लक्ज़मबर्ग को जेल से रिहा कर दिया गया था। सामाजिक जनवादियों ने जनवरी 1919 में नेशनल असेंबली के लिए चुनाव की घोषणा करवा दी। स्पार्टकस लीग 1918 के अन्त तक खुद को जर्मनी की कम्युनिस्ट पार्टी में संगठित कर चुकी थी। सामाजिक जनवादियों द्वारा समाजवादी क्रान्ति के साथ विश्वासघात करने के बाद कम्युनिस्ट पार्टी ने जनवरी 1919 में स्पार्टिसिस्ट उभार को अंजाम दिया। उन्होंने बर्लिन में आम हड़ताल का आह्वान किया और करीब 5 लाख मज़दूर इसके समर्थन में उतरे। इसके बाद सामाजिक जनवादी पार्टी के नेतृत्व में चांसलर फ्रेडरिक एबर्ट ने फ़्राईकॉर्प्स की मदद से मज़दूरों के विद्रोह को निर्मम तरीके से कुचल दिया। आम हड़ताल करने और सामाजिक जनवादी सरकार का तख्तापलट करने की कोशिश के जुर्म में रोज़ा लक्ज़म्बर्ग और लिबनेख्त को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें हिरासत में ही मरवा दिया गया।

लिबनेख्त की क्रूर हत्या के बाद आम मज़दूरों में गहरा रोष व क्षोभ था। कॉलवित्ज़ ने लिबनेख्त की मौत पर आम मज़दूरों के दुःख को महसूस करते हुए उनके स्मरण में एक तस्वीर बनायी। तस्वीर में लिबनेख्त की मौत और विद्रोह के कुचल दिए जाने के बाद मज़दूरों में फैली गहरी निराशा को चित्रित किया गया है।

पहले विश्व युद्ध और उसके बाद जर्मनी की 1918 का क्रान्तिकारी उभार, इस पूरे उथल-पुथल भरे दौर ने कॉलवित्ज़ को प्रभावित किया। 1919 के बाद से उन्होंने युद्ध की विभीषिका को ही अपना विषयवस्तु बनाया। युद्ध श्रृंखला में कई पोस्टर्स व वुडकट बनाये गये जिसमें युद्ध की त्रासदियों को माताओं व बच्चों के परिप्रेक्ष्य से दिखाने की ज़्यादा कोशिश की गयी। इसका एक कारण युद्ध में उनके बेटे पीटर की मृत्यु का होना भी था। त्रासदी के इस काल में अपने विषयों के लिए फॉर्म की तलाश करते हुए कैथी एर्न्स्ट बारलाख़ के वुडकट कलाकृति से परिचित होती हैं और उससे प्रभावित होतीं हैं। उनकी इस दौर की कलाकृतियों में हमें बारलाख़ का प्रभाव साफ़ देखने को मिलता है। 1920-23 के बीच वुडकट शैली में ही वो युद्ध श्रृंखला का सृजन करती हैं। इस श्रृंखला में युद्ध की तबाही को चित्रित किया गया है, जिसमे विधवाओं, भुखमरी से दम तोड़ते बच्चों, बच्चों की कुर्बानी करती माँओं, युद्ध में मारे गये लोगों और उनके परिवार वालों की व्यथाओं को दर्शाते हुए कई चित्र हमें मिलते हैं। इसी दौर में हम देख पाते हैं कि कॉलवित्ज़ की कलाकृतियों के विषय और फॉर्म में किस प्रकार बदलाव आते हैं। शुरुआत की ‘किसान युद्ध’ और ‘बुनकरों के विद्रोह’ की अपनी श्रृंखला से कॉलवित्ज़ काफ़ी आगे निकल चुकी होती हैं और अब उनके विषय उनके समकालीन त्रासदी भरे समय को चित्रित करते हैं और साथ ही उनके प्रत्यक्ष अनुभवों व चिंताओं को प्रतिबिम्बित करते हैं।

युद्ध के बाद के काल में, 1919 में कॉलवित्ज़ अल्बर्ट आइंस्टीन, जॉर्ज ग्रोस, मैक्सिम गोर्की, जॉर्ज बर्नड शॉ, क्लारा जेटकिन, अर्न्स्ट टोलर आदि के साथ इंटरनेशनल वर्कर्स ऐड संगठन में शामिल हो गयीं। युद्ध के बाद पैदा हुए खाद्यान संकट, बेरोज़गारी और महँगाई जैसी कई समस्याओं से लोग जूझ रहे थे। कॉलवित्ज़ ने संगठन के लिए कई ऐसे पोस्टर बनायें जिसमें भुखमरी के अंजाम को दिखाते हुए मौत का एक कंकाल चित्र, भूख से बेहाल महिलाओं व बच्चों के दृश्य को हम पाते हैं। उन्होंने इसके अलावा ‘विएना इज़ डाईंग, हेल्प हर चिल्ड्रन’ (विएना मृत्यु के कगार पर है, उनके बच्चों को बचाओ), ‘हेल्प रशिया’ (रूस की सहायता करो), ‘नेवर अगेन वार’ (अब और युद्ध नहींं), ‘ब्रॉट’ (रोटी) आदि पोस्टर भी बनाये। हालाँकि राजनीतिक मामलों में उनकी कोई स्पष्ट समझ नहींं थी, कई संगठनों के लिए उन्होंने पोस्टर बनाये थे परन्तु किसी भी राजनीतिक पार्टी या संगठन की सक्रिय सदस्य नहींं बनी। उनका दृष्टिकोण एक मानवतावादी दृष्टिकोण था।

इस दौर में कॉलवित्ज़ जब अपनी ज़्यादातर कलाकृतियों को पोस्टर का रूप दे रही थीं, किस प्रकार वे अपनी कला को पूर्ण रूप से सामाजिक ज़िम्मेदारी से जोड़ती हैं, यह उनके इस कथन से देखने को मिलता है -“मुझे अन्तरराष्ट्रीय व्यापार संघ कांग्रेस से युद्ध के खिलाफ एक पोस्टर बनाने के लिए नियुक्त किया गया है। यह एक ऐसा काम है जो मुझे खुश करता है। कुछ लोग भले ही कह सकते हैं कि यह शुद्ध कला नहींं है। लेकिन जब तक मेरे पास प्रतिभा है और जब तक मैं काम कर सकती हूँ, मैं अपनी कला के ज़रिये प्रभावी होना चाहती हूँ।”  1918 के बाद से कला के क्षेत्र में ‘शुद्ध कला’ और ‘वास्तविक कला’ के सवाल पर बहसें उठीं थी। जर्मनी में, खास तौर पर एक्सप्रेशनिस्ट कलाकारों द्वारा प्रगतिशील कला को प्रगतिशील राजनीति के साथ जोड़ा जाने लगा था। कॉलवित्ज़ ने कला कला के लिए जैसे दृष्टिकोण को साफ़ तौर पर ख़ारिज किया था और कलाकार की सामाजिक ज़िम्मेदारी पर बल दिया था।

प्रथम विश्व युद्ध से उपजी तबाही और उसके बाद हुई वर्साय की सन्धि ने जर्मनी को तबाह कर दिया था। पहले से ही जर्मनी की तबाह अर्थव्यवस्था को जब 1929 की मंदी के दौर का सामना करना पड़ा और तो इस दौरान खाद्यान संकट, बेरोज़गारी, गरीबी और महँगाई बेहिसाब स्तर से बढ़ी। 1919 से 1931 तक वाइमर गणराज्य में सामाजिक जनवादियों ने मजदूरों के लिए जो भी हक़ अधिकार हासिल किये थे, उसे मन्दी के दौर में बरकरार रख पाना सम्भव नहीं था। बड़े पूँजीपति वर्ग की मुनाफे की दर में लगातार कमी होती जा रही थी। ऐसे में, मजदूर आन्दोलन की शक्ति को खण्डित कर अपनी सबसे प्रतिक्रियावादी नग्न व क्रूर तानाशाही को लागू करने के लिए जर्मनी के बड़े पूँजीपति वर्ग को जिस राजनीतिक समूह की ज़रूरत थी, वह थी नात्सी पार्टी। 1933 के चुनाव के बाद हिटलर जब सत्ता में आया तो उसने इस काम को बखूबी अंजाम दिया। सामाजिक जनवादियों की गद्दारी ने फासीवाद को पैर पसारने की जगह दे दी।

फासीवादी दौर में कलाकारों, वैज्ञानिकों, अल्पसंख्यकों, सामाजिक जनवादियों, वामपन्थी व कम्युनिस्टों के आवाज़ों को दबाया गया और इसी दौर में कॉलवित्ज़ जिनके कला की लोगों में एक व्यापक पहुँच थी, उन्हें नात्ज़ियो ने प्रशा की कला अकादमी से इस्तीफ़ा देने को मजबूर कर दिया और अपनी कलाकृतियों की प्रदर्शनी लगाने पर भी रोक लगा दी। उनकी जो भी कलाकृतियाँ संग्रहालयों व कला प्रदर्शनियों में थी, उन्हें हटा दिया गया। कॉलवित्ज़ भले ही प्रत्यक्ष तौर पर फ़ासीवाद के खिलाफ लड़ाई में नहीं उतरीं लेकिन वो लगातार नात्ज़ी पार्टी की आलोचना करती रही। उन्होंने फासीवाद से मुकाबला करने के लिए सामाजिक जनवादी पार्टी और कम्युनिस्ट पार्टी की एकता का आह्वान देते हुए एक सार्वजनिक घोषणापत्र के बनने में मदद भी की थी। एक बार एक रूसी पत्रकार को साक्षात्कार दिये जाने के बाद गेस्टापो द्वारा उन्हें गिरफ्तार भी किया गया था लेकिन बाद में छोड़ दिया गया। अपने इस दौर में उनकी ज़्यादातर कलाकृतियों का विषय मृत्यु ही बना रहा। 1937 में उन्होंने तीन लिथोग्राफ और बनाये, इन छवि चित्रों में मृत्यु समाज के सबसे कमजोर लोगों, गरीब महिलाओं और बच्चों को अपनी जकड़ में लेती प्रतीत होती है।  ये छवि चित्र शायद जर्मनी में फासीवाद के दौर की भयावह परिस्थितियों को ही चित्रित करते हैं, इनमें एक निराशा भी नज़र आती है या फिर उस वक़्त की भयावहता को मौत के रूपक से दर्शाया गया है।

दूसरा विश्व युद्ध समाप्त होने से कुछ दिन पहले कोल्विट्ज़ की मृत्यु हो गयी। उन्होंने हमें अपने दिक् व काल में घटने वाली भयानक घटनाओं की अविस्मरणीय छवियों के साथ छोड़ा है। उनकी कला ने हमेशा शोषित जनता का साथ दिया। शुरू के दौर में उनकी कलाकृतियाँ ऐतिहासिक घटनाओं और साहित्यिक चरित्रों से प्रेरित होकर रूप ग्रहण करती हैं। बाद के दौर में प्रथम विश्व युद्ध, फिर 1918 की जर्मनी की क्रान्ति, और उसके बाद जर्मनी में फासीवादी उभार – इन घटनाओं का प्रत्यक्ष प्रभाव हम उनके  चित्रों में पाते हैं। उनके निजी अनुभव भी इस दौर की उनकी कला में प्रतिबिम्बित होते हैं। अपने दौर के तमाम घटनाओं को कॉलवित्ज़ इस प्रकार चित्रित करती हैं कि वे अपनी ऐतिहासिकता नहींं खोते। उनकी कला किसी स्थान या काल तक सीमित नहींं रह सकती। लेकिन कॉलवित्ज़ ने शुरू से ही अपनी विषयों में मज़दूर वर्ग को जगह दी है। समय के साथ उनके विषयों में बदलाव होते हैं, उनके फॉर्म में भी बदलाव देखने को मिलता है। शुरुआत में एचिंग, फिर लिथोग्राफी और 1918 के बाद वुडकट शैली को इस्तेमाल में लाना- वे लगातार अपने विषय के साथ फॉर्म के तालमेल को विकसित करती जाती हैं। हम उनके विषयों के साथ उनके फॉर्म का बेहतरीन तालमेल पाते हैं। उनके सभी चित्र मार्मिक व हृदयविदारक हैं। \उनके सभी चित्रों में हमें विलाप और हाहाकार दिखाई देता है, पर यह उनके प्रतिरोध की शैली है। उनके चित्रों में लोगों का आर्तनाद, दर्शक के मन में विलाप नहीं विरोध का संचार करता है। एक तरफ जनता की दुर्दशा की तस्वीर मन में गहरी ममता व आत्मीयता को जन्म देती है, लेकिन दूसरी तरफ यह शोषक व अत्याचारी के प्रति घृणा और क्रोध भी पैदा करती है। यही उनके चित्रों की खासियत है जो उनके कला को एक रैडिकल कला के रूप में स्थापित करती है। उनकी कला शायद इस दृष्टिकोण से एक सर्वहारा कला है कि वे अपनी कला को एक सरल रूप में प्रस्तुत कर बड़ी आबादी तक पहुँचने की क्षमता रखती हैं। जैसा कि उन्होंने एक बार कहा था कि “यह मेरा पूर्णतः मत है कि एक कलाकार और जनता के बीच समझदारी होनी चाहिए। एक जीनियस आगे बढ़ सकता है, नये रास्ते ढूंढ सकता है, परंतु एक अच्छा कलाकार वह है जो ,हालांकि जीनियस से पीछे है, जनता से खोया हुआ संबंध जोड़ सकता है। स्टुडियो कला फलहीन है और असमर्थनीय है क्योंकि जो ज़िंदा जड़ें नहीं पैदा कर सकती उसे अस्तित्वमान ही क्यों होना चाहिए?”

मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान,जुलाई-दिसम्बर 2018

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