“गोरक्षा”: फ़ासीवादी उन्मादियों का गोरख धंधा

सिमरन

सितम्बर 2015 में एक मुस्लिम घर में गोमाँस होने की अफ़वाह फैला दी जाती है और उन्मादी भीड़ उसके घर में घुसकर उसके ही परिवार के सामने उसे बुरी तरह पीट-पीट कर मार डालती है। न तो पुलिस कुछ हस्तक्षेप करती है और न ही राज्य कोई ठोस कार्यवाही करता है। जी हाँ, यह दादरी के उसी अख़लाक़ के साथ हुई बर्बरता है जिस मामले में जाँच होने के बाद यह साबित भी हो गया कि उसके घर से बरामद माँस गोमाँस नहीं था। लेकिन यह सिर्फ अख़लाक़ के साथ हुई हैवानियत की कहानी तक सीमित नहीं है। 2014 से मोदी सरकार के रूप में भारत की सत्ता जबसे संघ के फ़ासीवादी हाथों में आयी है तब से न जाने कितने अख़लाक़ और पहलू ख़ान मौत के घाट उतारे जा चुके है। 2017 की पहली अप्रैल को 55 वर्षीय पहलू ख़ान को विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल के कार्यकर्ताओं (पढ़िए गुण्डोंं) ने जयपुर के पशु मेले से वापिस लौटते समय (उनकी गाड़ी जिसमें वो क़ानूनन खऱीदे दुधारू पशु को अपने गाँव मेवात लेकर जा रहे थे) को रोक कर उनके साथ बुरी तरह मारपीट की। दरिन्दगी के साथ एक वृद्ध आदमी को सड़क पर घसीट-घसीट कर मारा जाता रहा  लेकिन न तो आस-पास जमा लोगों ने कुछ किया न ही पुलिस ने। उल्टा पुलिस ने पहलू खान के ख़िलाफ़ ही राजस्थान गौ-वंशीय पशु (वध का प्रतिषेध और अस्थायी प्रव्रजन या निर्यात का विनियमन) अधिनियम, 1995 के तहत केस दर्ज कर दिये। इतना ही नहीं संसदीय कार्य मंत्रालय एवं अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के मन्त्री मुख्तार अब्बास नक़वी ने संसद में इस घटना को गोरक्षा का मामला बताने या ऐसी किसी घटना के घटित होने से ही इंकार कर दिया । गोरक्षकों द्वारा बुरी तरह मार-पीट के कारण पहुँची चोटों से पहलू ख़ान की मृत्यु हो गयी। उनके बेटे आरिफ का कहना है कि गोरक्षकों ने गाड़ी के ड्राइवर के हिन्दू होने से चलते उसे जाने दिया लेकिन जयपुर नगर निगम द्वारा आयोजित किये जाने वाले पशु मेले से क़ानूनन खरीदे गये दुधारू पशु की खरीद की रसीद होने के बावजूद भी गोरक्षकों ने उन्हें और उनके पिता को निर्ममता से पीटा। इन घटनाओं में मार्च 2016 के लातेहार, झारखण्ड में 2 पशु पालकों की गोरक्षकों द्वारा हत्या, जम्मू में एक ट्रक ड्राइवर की हत्या, ऊना में 5 दलित युवाओं पर गाय की तस्करी का इल्जाम लगाकर उनके साथ बर्बरता से की गयी मारपीट और ऐसे न जाने कितने वाकिये जहाँ गोरक्षा के ठेकेदारों ने अपनी मनमर्ज़ी मुताबिक चौपाल लगा किसी को भी गुनहगार घोषित कर उसके साथ मारपीट की। माफ़ कीजियेगा, किसी को भी नहीं केवल मुसलमानों, दलितों के साथ। गाय को बचाने के नाम पर अपनी साम्प्रदायिक फ़ासीवादी राजनीति के प्रचार-प्रसार से संघ और उससे जुड़े तमाम साम्प्रदायिक दल भारत में रहने वाले अल्पसंख्यकों को निशाना बना रहे हैं। किस तरह से बेरोज़गारी, भुखमरी, गरीबी से बेहाल आम जनता को धर्म की रक्षा और ‘गाय माता’  की रक्षा के नाम पर एक दूसरे के खून का प्यासा बनाया जा रहा है। इस पूरे गोरक्षा के तमाशे के पीछे कई पहलू मौजूद हैं।

मोदी लहर के उभार के साथ ही पूरे देश में अपना हिंदुत्ववादी एजेंडा फैलाने के लिये मोदी सरकार ने लव-जिहाद से लेकर बीफ बैन, गोरक्षा जैसे मुद्दों को मुख्यधारा की चर्चा का हिस्सा बनाना शुरू कर दिया। कभी पाकिस्तान को दुश्मन बता कर, तो कभी भारत में रहने वाली मुस्लिम आबादी को दुश्मन ठहराकर हिन्दू धर्म की रक्षा के नाम पर लोगों को भड़काया जाने लगा। केवल मुसलमानों ही नहीं बल्कि दलित आबादी को भी इस कहर का दंश सहना पड़ा, मरे हुए पशुओं की खाल उतारने का काम करने वाले दलितों को भी गोरक्षकों ने नहीं बख्शा। भाजपा के सत्ता में आने के बाद सोहना-अलवर सड़क पर बिरयानी बेचने वाले मुस्लिम दुकानदारों पर गोमाँस से बनी बिरयानी बेचने का आरोप लगाकर खाद्य इंस्पेक्टरों ने उनके साथ बदसलूकी की। इसी साल 31 मार्च को गुजरात सरकार ने गुजरात पशु संरक्षण (संशोधन) अधिनियम 2017 को पास करते हुए गोहत्या का दोषी पाए जाने पर ताउम्र कैद की सज़ा देने का फैसला सुनाया। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमन्त्री बनाने के साथ ग़ैरकानूनी बूचड़खानों को बन्द करने की आड़ में भी अल्पसंख्यक आबादी को दहशत का शिकार बनाया जा रहा है। आये दिन सोशल मीडिया या व्हाट्सएप्प पर ऐसे वीभत्स और बर्बर तरीके से किसी मुस्लिम या दलित के साथ मारपीट करते हुए गोरक्षकों की वीडियो डाली जा रही है जिससे कि पूरे देश में गोरक्षकों का खौफ़ पैदा किया जा सके। इसके साथ ही अपनी हिन्दुत्वादी फ़ासीवादी राजनीति के एजेंडे के तहत इतिहास का मिथ्याकरण कर वेदों का हवाला देकर बीफ खाने वालों को हिन्दू धर्म का दुश्मन ठहराया जा रहा है। इस पूरे प्रचार का कोई ठोस आधार नहीं है।

 

मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान,जुलाई-अगस्‍त 2017

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