“सदाचारी” संघी फ़ासीवादी सत्ताधारियों के ‘चाल-चरित्र-चेहरे’ की सच्चाई
मई 2016 में मोदी सरकार को सत्ता में आये दो साल हो जाएँगे। इसके साथ ही संघी फ़ासीवाद के नये उभार के भी दो साल पूरे हो जाएँगे। ये दो साल कई कारणों से याद रखे जाएँगे। इन दो वर्षों में मजदूरों के अधिकारों, छात्र आंदोलनों, मुसलमानों व अन्य धार्मिक अल्पसख्यकों, दलितों, स्त्रियों प्रगतिशील व जनवादी बुद्धिजीवियों-लेखकों पर हमलों में अभूतपूर्व बढ़ोतरी हुई। पिछले दो वर्षों में मोदी सरकार ने एफटीआईआई, जेएनयू, एचसीयू, आईसीएचआर, आईसीएसएसआर आदि शैक्षणिक संस्थानों में जो कुछ किया, वह भी शायद ही पहले कभी हुआ हो। जब छोटे-बड़े साम्प्रदायिक दंगों, ‘लव-जिहाद’, ‘गो-रक्षा’, ‘घर-वापसी’, ‘बीफ-बैन’, से बात नहीं बनी, तो इन हिन्दुत्ववादी फासीवादियों द्वारा देशद्रोह और अन्धराष्ट्रवाद की अन्धी लहर चलायी गयी। लेकिन इस दौरान भगवा फ़ासीवादी सत्ताधारी शायद यह भूल गये कि देश की जनता को लम्बे समय तक बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता है। न सिर्फ इन दो वर्षों में ‘अच्छे दिनों’ के गुब्बारे की हवा निकल गयी है बल्कि प्राचीन हिन्दू सभ्यता, हिन्दू शुचिता, सदाचार और नैतिकता का ढोल पीटने वाले भगवा-गिरोह के असली (यानि कि भ्रष्ट, पतित, घिनौने, व्यभिचारी और उबकाई पैदा करने वाले) चाल-चरित्र-चेहरे का पर्दाफाश भी काफी हद तक हुआ है।
सत्ता में आते ही भगवा फ़ासीवादी ब्रिगेड ने भ्रष्टाचार और घोटालों के ऐसे कीर्तिमान स्थापित कर दिये हैं जो अचम्भित करने वाले हैं! देश के इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला व्यापम भी संघी गिरोह के चलते शिवराज सिंह चौहान ने मध्य प्रदेश में अंजाम दिया। 2 लाख करोड़ रुपये के व्यापम घोटाले के 50 गवाहों की हत्याएँ अब तक हो चुकी हैं। महाराष्ट्र में पंकजा मुंडे के चिक्की घोटाले और विनोद तावड़े द्वारा किये गये शिक्षा विभाग में घोटाले की याद अभी ठण्डी भी नहीं पड़ी थी कि ललित गेट में सुषमा स्वराज से लेकर वसुंधरा राजे तक फँस गयी! स्मृति ईरानी की फर्जी डिग्री का मामला भी जब-तब उछलता रहता है। संघी ब्रिगेड द्वारा ‘नारी शक्ति’ का यह मुजाहिरा काफी चौंकाने वाला है! लेकिन संघ परिवार और मोदी सरकार राजनीतिक ‘सदाचार’ और ‘नैतिकता’ के नये मील के पत्थर स्थापित करने को लेकर इतने प्रतिबद्ध हैं कि इतने पर कैसे रुक सकते थे? ललित मोदी जैसे कानून से भागने वाले एक अपराधी दलाल को देश से बाहर निकल भागने में सहायता करने से पेट नहीं भरा तो एक अन्य दिवालिया हो चुके लम्पट, ऐय्याश विजय माल्या को भी रफ़ूचक्कर होने में बड़ी सफाई से मदद पहुँचायी गयी, इसके अलावा हाल में ‘पनामा पेपर्स’ के लीक होने के बाद से नरेन्द्र मोदी और उसकी सरकार ने इस पूरे प्रकरण पर रहस्यमयी चुप्पी साध ली है। इसमें ताज्जुब की कोई बात नहीं क्योंकि इन दस्तावेजों में न सिर्फ संघी फ़ासीवादी सत्ताधारियों के आकाओं यानी कि बड़े पूँजीपति घरानों के नाम शामिल हैं बल्कि कई भाजपा के नेताओं के नाम भी है। यह नरेन्द्र मोदी की पुरानी रणनीति है। जब भी इस प्रकार का कोई आपत्तिजनक प्रकरण सामने आता है तो ‘लाईमलाईट मेंटलिटी’ से ग्रस्त मोदी कुछ समय के लिए मीडिया से गायब हो जाता है! हालाँकि ऐसी रणनीतियाँ ज़्यादा दिन काम नहीं आती।
भाजपा ने चुनावों से पहले ‘अच्छे दिनों’ का जो वायदा किया था अब वह एक चुटकुले में तब्दील हो चुका है। देश की जनता को महँगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार आदि से मुक्ति दिलाने की जो बात की गयी थी, आज भाजपा का कोई नेता उसके बारे में चूँ तक नहीं करता। हर अकाउंट में पंद्रह लाख आने की बात को तो अमित शाह ने पहले ही चुनावी जुमला कहकर खारिज कर दिया! ‘अबकी बार मोदी सरकार’ और ‘अच्छे दिन आएँगे ’ के नारों को इतनी बार दोहराया गया कि महँगाई, गरीबी और बेरोजगारी से त्रस्त जनता के एक हिस्से को भी लगने लगा कि मोदी के नेतृत्व में भगवा ब्रिगेड सत्ता में आकर कुछ कमाल दिखायेगा! और भगवा फासीवादियों ने सत्ता में आने के बाद ऐसा कमाल दिखाया जो वाकई अभूतपूर्व है! मोदी के चुनावी प्रचार पर हजारों करोड़ रुपये खर्च करने वाले अम्बानी, अडानी, टाटा, बिड़ला, जिंदल, मित्तल जैसे लुटेरे पूँजीपति घरानों को सत्ता में आने के बाद मोदी ने इस जश्नबाजी की सूद समेत अदायगी भी कर डाली। गद्दी सँभालते ही मोदी ने पूँजीपतियों के वफादार की भूमिका बखूबी निभाते हुए रहे-सहे श्रम कानूनों को बर्बाद करने की मुहिम शुरू कर दी। ‘मेक इन इण्डिया’, ‘स्किल इंडिया’, ‘स्टार्ट अप इंडिया’ जैसी खोखली कवायदों की सच्चाई भी यही है कि पूँजीपतियों और कारखानेदारों को मजदूरों के मांस को मण्डी में खुलकर बेचने की आजादी दी जाए। यही कारण था कि 2014 के संसद चुनावों में मोदी प्रचार पर देश के पूँजीपतियों ने अभूतपूर्व रूप से पैसा खर्च किया। मोदी को सारे कॉर्पोरेट घरानों का समर्थन बिना वजह प्राप्त नहीं था।
वैश्विक मन्दी से बौखलाकर पूँजीपति वर्ग के लिए भाजपा जैसे फ़ासीवादी पार्टी को सत्ता में पहुँचाना अनिवार्य हो गया था। उसे किसी ऐसी सरकार की ज़रूरत थी जो उसे लगातार छंटनी , तालाबंदी के साथ-साथ और भी सस्ती दरों पर श्रम को लूटने की छूट से और श्रम कानूनों से निजात दिलवाये । मन्दी के इस दौर में पूँजीपति वर्ग के लिए कांग्रेस से ज़्यादा फ़ासीवादी भाजपा प्रासंगिक हो गयी। वहीं दूसरी ओर भगवा फ़ासीवादी गिरोह भी लगातार देश की सत्ता पर कब्जा जमाने की फिराक में था। वह लगातार पूँजीपति वर्ग को यह भरोसा दिलाने में लगा था कि उनके हितों की सेवा करने वाली ‘मैनेजिंग कमिटी’ का काम वह कांग्रेस से बेहतर कर सकता था; कि किस तरह गुजरात से लेकर मध्य प्रदेश में वह यह भूमिका बखूबी अदा कर रहा है; कि किस तरह इन जगहों को उन्होंने मजदूरों के लिए यातना शिविरों में और कॉर्पोरेट घरानों के लिए ‘स्वर्ग’ में तब्दील कर दिया है! और इन्हीं कारणों के चलते मई 2014 में पूँजीपति घरानों ने सत्ता की बागडोर भगवा फासीवादियों के हाथों सौंप दी।
मोदी सरकार ने अपने दो बजटों में देश के 5 फीसदी अमीर लोगों के लिए नीतियाँ बनाते हुए टाटाओं, बिड़लाओं, अम्बानियों, अडानियों को पिछले दस साल में दी गयी कर माफी को जारी रखा है। खाने के सामान पर सब्सिडी को मोदी सरकार ने लगभग 10,000 करोड़ रुपये कम कर दिया है। स्वास्थ्य व परिवार कल्याण के बजट में करीब 6,000 रुपये की कटौती की गयी है, यानि अब सरकारी अस्पताल में दवा और इलाज पहले से दुगुना महँगा मिलेगा। इसके साथ ही कई बेहद जरूरी जीवन रक्षक दवाओं को मूल्य नियंत्रण से मुक्त कर दिया गया है। बड़ी-बड़ी देशी-विदेशी कंपनियों का 1 लाख 14 हजार करोड़ रुपये का बैंक कर्ज माफ कर दिया और दूसरी तरफ आम मेहनतकश जनता की जेब पर डाका डालते हुए सारे अप्रत्यक्ष कर बढ़ा दिये गये हैं, जिससे कि महँगाई तेजी से बढ़ी है। इसके अलावा अम्बानियों-अडानियों का 70,000 करोड़ रुपये का पेंडिंग टैक्स भी माफ कर दिया गया है। ये महज कुछ आंकड़ें हैं जो मोदी सरकार के ‘अच्छे दिनों’ की असलियत को जाहिर करते हैं। ये देशी-विदेशी कॉर्पोरेट घरानों के ‘अच्छे दिन’ हैं, हालाँकि उनके बुरे दिन कब थे, यह याद करना जरा मुश्किल है। देश की जनता को ‘अच्छे दिनों’ के नाम पर पहले से भी ज़्यादा असुरक्षा, महँगाई, बेरोजगारी, गरीबी, सूखा, बाढ़, कुपोषण, भुखमरी, बेघरी, भ्रष्टाचार और अपराध ही मिला है।
जहाँ तक मोदी सरकार के कार्यकाल में भ्रष्टाचार, घपलों-घोटालों, आपराधिक मामलों की लम्बी फेहरिस्त का सवाल है तो इससे भगवा फासीवादियों की छवि तार-तार तो हुई ही है। फ़ासीवादी राजनीति और विचारधारा राजनीति के सौंदर्यीकरण पर आश्रित होती है। इसलिए फ़ासीवादी राजनीति शुचिता, नैतिकता, सदाचार जैसे भारी-भरकम शब्दों का इस्तेमाल करके अपने इर्द-गिर्द एक आभा मंडल खड़ा करती है। चुनाव से पहले मोदी और भगवा फासीवादियों के बारे में भी देश के कॉर्पोरेट मीडिया ने ऐसा ही आभा मंडल तैयार किया था। लेकिन नैतिकता, सदाचार और शुचिता के ध्वजधारियों ने सत्ता में आते ही ऐसा गंद मचाया कि ‘बाप रे बाप’ दो साल के भीतर ही ‘चाल-चरित्र-चेहरे’ की हमेशा बात करने वाले इन भगवा हाफपैंटियों ने भ्रष्टाचार, घोटालों, नंगई का ऐसा घटाटोप जो बड़े-बड़े अपराधियों को शर्मसार कर दे! इसका एक कारण यह भी है कि आज पूँजीपति वर्ग के सदस्यों में एक हद तक ‘ओवरलैपिंग’ देखी जा सकती है। जो मुनाफ़ाखोर हैं, वही पार्टियों के नेता भी हैं। स्वयं भाजपा का अध्यक्ष अमित शाह गुजरात में वसूली गैंग का सरगना था। इसके अलावा किस्म-किस्म के धंधेबाज, दलाल, डबल-डीलर भाजपा में नेताओं के रूप में मौजूद हैं। भगवा ब्रिगेड के इन सिपहसालारों ने भ्रष्टाचार और आपराधिक आचार-व्यवहार के ऐसे नये रिकॉर्ड बनाये हैं कि पुराने सारे कीर्तिमान ध्वस्त हो चुके हैं!
फिर भी, भगवा फ़ासीवादी सत्ताधारियों का असली चेहरा जनता के सामने बेपर्द होने का यह अर्थ नहीं निकाला जाना चाहिए कि इससे इनके फ़ासीवादी मंसूबों के अमल में कहीं कोई कमी आने वाली है। भगवा ब्रिगेड भारत में अपने फ़ासीवादी एजेंडे को अमली जाम पहनाने में मुस्तैदी से लगा हुआ है। जहाँ एक तरफ देशी-विदेशी पूँजी को देश की कुदरत और मेहनत की खुली लूट की छूट दी जा रही है, वहीं विरोध की हर आवाज़ को कुचलने का काम भी इनके द्वारा तत्परता से अंजाम दिया जा रहा है। शिक्षा और संस्कृति के संस्थानों का फ़ासीवादीकरण करने के एजेंडे पर भी मोदी सरकार पुरजोर तरीके से अमल कर रही है। इसके अलावा, फ़ासीवादी ताकतें मुसलमानों, दलितों, स्त्रियों, छात्रों के विरूद्ध भी मोर्चा खोले बैठी है। ऐसे में, क्रांतिकारी ताकतों को भी इनके खिलाफ़ मोर्चा खोलना होगा।
भगवा फ़ासीवादी सत्ताधारियों के असली मंसूबों का पर्दाफाश करना आज हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। क्रांतिकारी ताकतों को जनता के बीच अपनी खन्दकें खोदनी होंगी, और इन हिन्दुत्ववादी धर्मध्वजधारियों की ‘संस्कृति’, ‘सभ्यता’, ‘नैतिकता’, ‘शुचिता’, ‘सदाचार’ आदि की असलियत को बेनकाब करना होगा। इनके न सिर्फ मुसलमान विरोधी चेहरे को बल्कि दलित विरोधी चेहरे को भी जनता के सामने उजागर करना होगा। देशभक्ति पर इनके हर झूठे दावे को ध्वस्त करना होगा। गद्दारियों, माफीनामों, मुखबिरियों से भरे इनके काले शर्मनाक इतिहास को उजागर करना होगा। देश की जनता को बताना होगा कि कहीं ‘देशभक्ति ’, ‘राष्ट्रवाद’ और ‘भारत माता की जय’ का शोर मचाकर यह संघी फ़ासीवादी देश से गद्दारी करने के अपने पुराने इतिहास और जनता के खिलाफ़ पूँजीपतियों की दलाली करने की अपनी असलियत कोढँकने की कोशिश तो नहीं कर रहे हैं? कहीं देशभक्ति और राष्ट्रवाद, नैतिकता और सदाचार का शोर करके हमारी ही जेब पर डाका व घर में सेंध तो नहीं लगा रहे? हमें क्रांतिकारी प्रचार के जरिये आम जनता के बीच इनके छद्म आभा-मंडल को भंग कर देना होगा। यही वह जगह है जहाँ हिन्दुत्ववादी भगवा फासीवादियों को सबसे ज़्यादा चोट पहुँचती है! इसलिए क्रांतिकारी ताकतों को महज आर्थिक प्रचार नहीं बल्कि फ़ासीवाद-विरोधी, राजनीतिक-सांस्कृतिक प्रचार द्वारा जनता के बीच क्रांतिकारी पक्ष स्थापित करना होगा।
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान,मार्च-अप्रैल 2016
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