आर.एस.एस. का जातिवादी चेहरा एक बार फि़र बेनकाब

प्रवीन

23 अप्रैल की शाम करीब 6 बजे हरियाणा के सोनीपत जिले के राजेन्द्र नगर की एक दलित बस्ती के लोगों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के गुण्डों ने इसलिए पीट दिया कि पास के ही आसएसएस के कार्यालय हेडगेवार भवन में दलित बच्चों की गेंद चली गई थी। पहले उन्होंने बच्चों को पीटा और बस्ती वालों ने इस बात पर प्रतिरोध व्यक्त किया तो संघियों ने 60-70 लोगों का समूह बनाकर और लाठी-डण्डों के साथ दलित बस्ती के बाशिन्दों पर हमला बोल दिया और उन्होंने एक-एक करके सभी नौजवानों समेत माहिलाओं और बच्चों को पीटना शुरू किया। जिसमें बस्ती के कई लोगों की हाथ और पैरों की हड्डियाँ टूट गयी और 50 से ज़्यादा लोग बुरी तरह घायल हो गये। जिस निजी अस्पताल में उनका इलाज करवाया गया था वहाँ से उन्हें कोई दस्तावेज़ नहीं दिया गया जिसके आधार पर वे कानूनी प्रक्रिया को आगे बढ़ा सकते थे। यहाँ तक कि शुरू में उनकी कोई एफआईआर तक दर्ज़ नहीं की गयी। उल्टा उन्हें संघियों ने धमकाना शुरू कर दिया कि अगर मुँह खोलने की कोशिश की तो हम कुछ भी कर सकते हैं। हरियाणा पुलिस प्रशासन ने संघियों के साथ मिलकर पूरे मामले को दबाने में अपनी पूरी ताकत लगा दी। सबसे बड़ी बात तो यह हुई कि जो स्थानीय मीडिया था उसने इतनी बड़ी घटना होने के बावजूद भी इस बात को कहीं भी उजागर नहीं होने दिया। इस पूरे मामले में बुरी तरह घायल राजीव कुमार का कहना था कि हमें दबाव में लेकर पुलिस ने न जाने किन-किन कागज़ों पर हस्ताक्षर करवा लिये और पुलिस ने उन्हें एफआईआर की प्रति भी नहीं उपलब्ध करवायी। इस हमले में कई लोगों को काफी गम्भीर चोटें आयी हैं। दलितों पर इस प्रकार के उत्पीड़न के लिए दिये जाने वाले मुआवज़े की घोषणा भी अभी तक राज्य सरकार की तरफ से नहीं की गयी।

khulasaहरियाणा में दिन-प्रतिदिन दलितों के उत्पीड़न के मामले सामने आते रहते है। हरियाणा में 2010 में दलित उत्पीड़न के 238 मामले सामने आये थे जो 2013 में बढ़कर 257 हो गये। ऐसी घटनाओं से साबित होता है कि हरियाणा की सरकार में चाहे कांग्रेस आये या इनेलो आए, भाजपा आये या बसपा आये कोई भी चुनावबाज़ पार्टी सरकार में आये फिर भी मेहनतकश दलित आबादी के जीवन में कोई फ़र्क पड़ने वाला नहीं है। आये दिन उन्हें दलित विरोधी मानसिकता का सामना करना पड़ता है, अपने अधिकारों को हासिल करने के लिए दर-दर भटकना पड़ता है। आज हरियाणा में ही नहीं बल्कि पूरे भारत में दलित उत्पीड़न के मामले पहले से कहीं ज़्यादा संख्या में सामने आ रहे हैं। दलित उत्पीड़न की घटनाओं को हम समाज में विभिन्न रूपों में देख सकते हैं। कुछ ही दिनों पहले राजस्थान के डांगावास में भी दलितों पर भयंकर किस्म का हमला किया गया था। इस हमले में तीन जानें गयी और दर्जनों लोग बुरी तरह से घायल हुए थे। इस हमले के पीछे ज़मीन का पुराना मामला था। यहाँ पर भी स्थानीय प्रशासन और नेताशाही पूरी तरह से हमलावर जाटों के पक्ष में दिखायी दिये। पूरे देश भर में भाजपा सरकार के आने के बाद इस तरह के मसलों में बढ़ोत्तरी दर्ज़ की गयी है।

जनता के बीच भी जातिगत बँटवारे की मानसिकता गहरायी से जड़ जमाये हुए है और इसे खाद-पानी देने का काम तमाम पूँजीवादी राजनीतिक दल करते हैं। दलित विरोधी सोच और जातिवाद का इस्तेमाल वोट बैंक की राजनीति के लिए किया जाता है। तमाम तरह के दलित आबादी के झण्डाबदार बनने वाले भी बड़ी-बड़ी बातें करने के बाद पूँजी की ताक़त के सामने लहालोट होते देखे जा सकते हैं। इन सब बातों से ज़ाहिर होता है कि भारतीय समाज में कैसे लोगों में दलित विरोधी मानसिकता काम करती है और उस मानसिकता का पूँजीवादी व्यवस्था किस ढंग से इस्तेमाल करती है। सबसे पहली बात तो ये है कि आज हमारे सामने जो तमाम दलित उत्पीड़न की घटनाएँ सामने आ रही हैं उसके खिलाफ़ पुरज़ोर आवाज़ उठायी जाये। साथ ही बिना किसी भेदभाव के सभी जाति-धर्म की मेहनतकश आबादी के बीच शिक्षा, रोज़गार, महँगाई, बेरोज़गारी, ग़रीबी, स्वास्थ्य जैसे साझा मुद्दों पर वर्ग एकजुटता कायम की जाये। सवर्ण आबादी के बहुत बड़े गरीब तबके को यह समझ लेना चाहिए कि आज की हमारी तमाम समस्याओं का समाधान आपसी वर्ग एकजुटता और संघर्ष के द्वारा ही किया जा सकता है। तमाम तरह के वोटों के व्यापारी हमारे हितों का धन्धा ही करते हैं। साथ ही हमें यह भी समझना होगा कि इन सारी समस्याओं को हम टुकड़ों-टुकड़ों में हल करने की कोशिश न करें क्योंकि ऐसा करना असम्भव है। इन सभी समस्याओं की जड़ एक ही है यानी लूट और अन्याय पर टिकी पूँजीवादी व्यवस्था। हमारे समूचे संघर्ष का निशाना यह पूरी व्यवस्था होनी चाहिए।

मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, मई-अक्‍टूबर 2015

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