इज़रायली जियनवादियों का फ़िलिस्तीनी जनता पर नया हमला
अपराजेय है फिलिस्तीनी जनता का प्रतिरोध

अभिनव

Palestinians-carry-wounde-001-2008-12गत 27 दिसम्बर को इज़रायल ने एक बार फ़िर गाज़ा पट्टी पर हमला करके फ़िलिस्तीनियों का नरसंहार शुरू कर दिया। 1967 के अरब-इज़रायल युद्ध के बाद यह इज़रायल का सबसे बड़ा हमला है जिसमें यह टिप्पणी लिखे जाने तक करीब 800 फ़िलिस्तीनी अपनी जानें गवाँ चुके हैं और करीब 2000 फ़िलिस्तीनी इसमें घायल हो चुके हैं। इसमें बड़ी संख्या में निर्दोष बच्चे और औरतें शामिल हैं। जनवरी के पहले सप्ताह में संयुक्त राष्ट्र द्वारा चलाए जाने वाले एक स्कूल पर इज़रायली सेना ने हमला करके 40 मासूम बच्चों की हत्या कर दी। कहने की ज़रूरत नहीं है कि फ़ासीवादी ज़ियनवादियों ने एक बार फ़िर अपनी नृशंसता, अमानवीयता और बर्बरता का सबूत दिया है। इस तरह के हमलों के अलावा भी इज़रायल बीच-बीच में फ़िलिस्तीनियों पर हमला करता रहता है और निर्दोष फ़िलिस्तीनी नागरिकों की जानें लेता रहता है। यह सारा नरसंहार अमेरिका की शह पर और उसके द्वारा दिये गये उन्नत हथियारों के बल पर किया जाता है। अपने आप में इज़रायल की ताक़त कितनी है यह सभी जानते हैं। सिर्फ़ और सिर्फ़ अमेरिका की मदद से और अन्य साम्राज्यवादी देशों की नकली नपुंसक आलोचना-निन्दा-भर्त्सना और मौन समर्थन के बल पर इज़रायल पूरे मध्य-पूर्व में हेकड़ी और दादागीरी दिखलाता फ़िरता है। इस दादागीरी का सबसे बड़ा निशाना फ़िलिस्तीन है जो लगभग छह दशकों से अपनी मुक्ति और एक राष्ट्र के रूप में अपने अस्तित्व के अधिकार के लिए लड़ रहा है। फ़िलिस्तीनी जनता के बहादुराना संघर्ष इज़रायली ज़ियनवादी हमलावरों के अत्याधुनिक हथियारों के दम पर कुचला नहीं जा सकता, यह बात पिछले पचास-साठ वर्षों में साबित हो चुकी है। फ़िलिस्तीनी जनता के प्रतिरोध को जितनी बर्बरता से कुचलने की कोशिश की जाती है वह उतना ही ज़बर्दस्त होता जाता है। इज़रायल के नवीनतम हमले के बाद भी यही बात साबित हो रही है।

Gaza-war-2008-12इज़रायली प्रधानमन्त्री एहुद ओल्मर्ट का दावा था कि यह हमला हमास द्वारा इज़रायली शहरों पर किये गये रॉकेट हमले के जवाब में किया गया है। पूरे विश्व का साम्राज्यवादी मीडिया इसी बात को दुनिया भर की जनता के सामने पेश कर रहा है कि हमलावर इज़रायल नहीं बल्कि हमास है। लेकिन क्या यही सच है? आइये, तथ्यों पर एक निगाह डालते हैं।

हमास के रॉकेट हमले यूँ ही नहीं किये गये थे। इसके कुछ तात्कालिक कारण थे और कुछ दूरगामी कारण। तात्कालिक कारण दो हैं। पहला तात्कालिक कारण 5 नवम्बर की एक घटना है। 5 नवम्बर को इज़रायली सेना ने हमास के 5 कार्यकर्ताओं को गाज़ा पट्टी में पकड़ा और उनकी हत्या कर दी। इसके बाद गाज़ा पट्टी में बुनियादी वस्तुओं की आपूर्ति की लाइनों को इज़रायल ने काटना शुरू कर दिया। इसके कारण पूरे गाज़ा में हालात बेहद ख़राब होने लगे। इसके बारे में संयुक्त राष्ट्र ने दिखावे के लिए इज़रायल को आगाह भी किया लेकिन जैसा कि समझा जा सकता था अमेरिकी हवलदार इज़रायल पर इसका कोई असर नहीं होना था।

इन्हीं दोनों तात्कालिक कारणों से ही दूरगामी कारण जुड़े हुए हैं। 2005 में इज़रायल को गाज़ा पट्टी से अपनी सेना हटाकर उसे फ़िलिस्तीनियों के हवाले करना पड़ा। इसके पीछे दो कारण थे। एक तो फ़िलिस्तीनियों का वीरतापूर्ण संघर्ष जिसने इज़रायली ज़ियनवादियों को एक हद तक झुकाया। दूसरा कारण था इज़रायल के शासक वर्ग का ही दो धड़ों में बँट जाना। एक धड़ा दमन की बर्बर नीतियों को जारी रखना चाहता था तो दूसरा फ़िलिस्तीन के साथ एक समझौता करने के पक्ष में था। दूसरा पक्ष इज़रायली आम जनता के उस हिस्से की नुमाइंदगी कर रहा था जो फ़िलिस्तीन के साथ संघर्ष से थक चुके थे जिसके कारण उन्हें लम्बे समय से अनिश्चितता और असुरक्षा की भावना और डर के साये तले जीना पड़ रहा था। पाँच दशकों के संघर्ष ने दिखला दिया था कि फ़िलिस्तीन के अस्तित्व को कुचला नहीं जा सकता और कोई समझौता करके उस क्षेत्र में सह-अस्तित्व ही एकमात्र विकल्प है।

हमास के रॉकेट हमलों के पीछे एक दूसरी वजह थी इज़रायल द्वारा गाज़ा पट्टी छोड़े जाने के बाद भी उसपर हवा, पानी और ज़मीन के रास्ते नियंत्रण रखना। इज़रायली वायुसेना और जलसेना गाज़ा पर अपना नियंत्रण बरकरार रखे हुए थी जिसके कारण गाज़ा पर फ़िलिस्तीनियों को अधिकार देने का कोई ख़ास अर्थ नहीं रह गया था। यह हमास और फ़िलिस्तीनियों के लिए स्वीकार्य नहीं था। असल में, हमास की चुनावों में जीत और समझौतापरस्त पी.एल.ओ. को इज़रायली पचा नहीं पाए थे। यह उनकी हताशा और चिढ़ थी जिसके कारण वे कोई बहाना ढूँढ रहे थे हमला करने का। एक और कारण भी था। इज़रायल में चुनाव करीब हैं और ज़ियनवादी लहर और जनता के बीच अस्तित्व की असुरक्षा को बढ़ाकर ज़ियनवादी ओल्मर्ट सत्ता में बने रहना चाहता है और इसीलिए यह हमला भी किया गया ताकि चुनावों में युद्धोन्माद और तथाकथित आत्मरक्षा और “अस्तित्व के अधिकार” की लहर पर सवार होकर असुरक्षा-बोधग्रस्त इज़रायलियों के वोटों की फ़सल की कटाई की जा सके।

और अन्त में सबसे महत्वपूर्ण दूरगामी कारण। यह है फ़िलिस्तीनियों के दिलों में इज़रायली ज़ियनवादियों और अमेरिकी साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ गहरी नफ़रत जो छह दशकों के अमानवीय और बर्बर दमन के कारण पैदा हुई है। इस नफ़रत के कारण फ़िलिस्तीनियों के लिए इज़रायल का अस्तित्व तक स्वीकार कर पाना मुश्किल बन जाता है। इज़रायल को बसाये जाने और फ़िलिस्तीनियों को उस ज़मीन से खदेड़े जाने का मुद्दा आधुनिक विश्व इतिहास के सबसे विवादास्पद मुद्दों में से एक है। उस पर यहाँ विस्तार से बात नहीं की जा सकती। लेकिन इज़रायल के बनने के बाद भी वहाँ से जबरन खदेड़े गये फ़िलिस्तीनियों ने इज़रायल की ज़मीन पर अपना दावा नहीं छोड़ा। यहूदियों को उस ज़मीन पर प्राचीन दावा था क्योंकि वही उनकी मूल भूमि थी जहाँ से आगे वे विश्व भर में फ़ैले और द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद यहूदी शरणार्थियों को जहाँ लाकर बसाया गया। यह एक जटिल विषय है। यह सच है कि इज़रायल के अस्तित्व के इतने वर्ष बीत जाने के बाद उसे ख़त्म नहीं किया जा सकता। लेकिन उतना ही बड़ा सच यह भी है कि फ़िलिस्तीन एक वास्तविकता है जिसे अमेरिकी साम्राज्यवाद अपने हितों के मद्देनज़र मान्यता नहीं देता और उसका दमन जारी रखता है। फ़िलिस्तीन की विजय और उसकी मान्यता अरब जनता और अमेरिकी साम्राज्यवाद के बीच के अन्तरविरोध में अरब जनता की एक बड़ी मनोवैज्ञानिक और प्रतीकात्मक राजनीतिक विजय होगी। इतने बड़े परिवर्तन का राजनीतिक और रणनीतिक ख़र्चा उठा पाने की औक़ात पहले ही अपने आंतरिक अन्तरविरोधों से डगमगाये हुए विश्व साम्राज्यवादी के पास नहीं है। संक्षेप में कहा जाय तो यही प्रमुख वजह है जिससे कि फ़िलिस्तीन समस्या का समाधान नहीं हो पा रहा है। इसका समाधान क्या हो सकता है यह एक अलग चर्चा का विषय है। हम अपनी मूल चर्चा पर वापस लौटते हैं।

यही वे तात्कालिक और दूरगामी कारण थे जिनसे हमास ने इज़रायल पर रॉकेट हमले शुरू किये। यह साम्राज्यवादी मीडिया का झूठा प्रचार है कि हमलावर हमास है। हमलावर हमेशा की तरह इज़रायली ज़ियनवादी फ़ासीवादी हैं जो हमेशा की तरह फ़िलिस्तीनी जनता के नरसंहार पर आमादा हैं। कहने के लिए यह हमला हमास के सफ़ाये के लिए किया गया है जिससे पहले एहुद ओल्मर्ट ने न रुकने का दावा किया है। यहाँ पर कुछ सवाल हमारे लिए ग़ौरतलब हैं।

पहला सवाल यह है कि क्या हमास को कोई इज़रायली हमला ख़तम कर सकता है? तमाम प्रेक्षकों और विश्लेषकों का मानना है कि किसी भी इज़रायली हमले में यह दम नहीं है कि वह हमास को ख़तम कर सके। कारण यह है कि हमास के पीछे फ़िलिस्तीन की एक बड़ी संख्या खड़ी है। इसलिए नहीं कि उसका हमास की इस्लामी विचारधारा से कोई लेना-देना है। सभी जानते हैं कि पूरे मध्य-पूर्व में फ़िलिस्तीन, इराक और लेबनान वे देश हैं जिसकी जनता मुख्यतः सेक्युलर विचार रखती है और आधुनिक है। इस समर्थन का कारण यह है कि हमास ही वह संगठन है जो इज़रायली हमलावरों और अमेरिकी साम्राज्यवाद के सामने मज़बूती से डटा हुआ है और ये दो शक्तियाँ फ़िलिस्तीनी जनता की नफ़रत का मुख्य निशाना हैं। हर फ़िलिस्तीनी इज़रायली ज़ियनवादियों और अमेरिकी साम्राज्यवाद को ही अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानता है और सही ही मानता है। इस समर्थन के कारण हमास फ़िलिस्तीनी जनता में घुल-मिल गया है और जनता के दुर्ग के भीतर से ही वह इज़रायलियों के ख़िलाफ़ छापामार संघर्ष चलाता रहा है और हमले करता रहा है। हमास को फ़िलिस्तीनी आम जनता से अलग कर निशाना बना पाना असम्भव है। इसीलिए इज़रायल का निशाना पूरी फ़िलिस्तीनी जनता बनती है और इसी नाते उसे भी सिर्फ़ हमास का नहीं बल्कि पूरी फ़िलिस्तीनी जनता की नफ़रत का निशाना बनना पड़ता रहा है और ऐसा ही आगे भी होगा। पूरी फ़िलिस्तीनी जनता को विश्व से समाप्त कर देना इज़रायल की औक़ात के बाहर है। ऐसे में पूरे अरब में उसके और अमेरिकी दमन के ख़िलाफ़ बग़ावत का ऐसा तफ़ू़ान खड़ा हो जाएगा जो उन्हें मध्य-पूर्व की ज़मीन से नेस्तनाबूद कर देगा। और चूँकि विश्व साम्राज्यवाद के भीतर भी तमाम धुरियाँ सक्रिय हैं और उनके आपसी अन्तरविरोध हैं इसलिए ऐसे विद्रोह से निपट पाना अमेरिका और उसके भाड़े के टट्टू इज़रायल के लिए नामुमकिन होगा। लुब्बेलुबाब यह, कि हमास को कुचल पाना इज़रायल के लिए मुमकिन नहीं प्रतीत होता। दूसरी बात यह है कि अगर एक बार को हम कल्पना करें कि हमास को इज़रायल नेस्तनाबूद कर देता है तो भी फ़िलिस्तीनी जनता का प्रतिरोध-युद्ध ख़त्म नहीं होगा। जब हमास नहीं था तो भी फ़िलिस्तीनी जनता लड़ रही थी। तब नेतृत्व पी.एल.ओ. के हाथ में था। उसके समझौतापरस्त होने और ग़द्दारी करने के बाद उसकी जगह हमास ने ले ली। कल हमास ख़त्म होगा तो उसकी जगह कोई और ले लेगा। और जैसा कि पहले भी हुआ है, अगर एक नेतृत्व और संगठन ख़त्म होता या भ्रष्ट होता है तो उसकी जगह उससे भी ज़्यादा रैडिकल और जुझारू कोई नेतृत्व और संगठन ले लेता है। अगर हमास ख़त्म हुआ तो मानकर चला जा सकता है उसकी जगह कोई उससे भी ताकतवर और रैडिकल संगठन लेगा। फ़िलिस्तीनी जनता के प्रतिरोध को कुचल पाना इज़रायल के लिए नामुमकिन है। अगर वह चैन और सुकून से जीना चाहता है तो उसे फ़िलिस्तीन नामक वास्तविकता को स्वीकारना होगा और उसके साथ अस्तित्वमान रहने के लिए अपने आपको तैयार करना होगा। इज़रायल के पूर्व प्रधानमन्त्री बेंजामिन नेतनयाहू ने भी इसी बात की ताईद की थी। इतने वर्षों के संघर्ष के बाद इज़रायली जनता का भी एक बड़ा हिस्सा इस बात को समझने लगा है कि इज़रायल-फ़िलिस्तीन समस्या का “दो-राज्य समाधान” ही सम्भव और वांछित समाधान है। लेकिन साम्राज्यवाद और उसके टुकड़ों पर पलने वाले जियनवाद के रहते यह समाधान प्राप्त नहीं किया जा सकता। इनके ख़िलाफ़ संघर्ष आज अरब जनता के एजेण्डे पर सबसे ऊपर है और इस संघर्ष के नतीजे पर ही इज़रायल-फ़िलिस्तीन समस्या का समाधान निर्भर करता है। फ़िलिस्तीनी जनता को कोई सेना और हथियारों का जखीरा नहीं हरा सकता।

 

मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, जनवरी-मार्च 2009

 

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