राजस्थान और मध्य प्रदेश:‘हिन्दुत्व’ की नयी प्रयोगशालाएँ

कविता

गुजरात में नरेन्द्र मोदी की फ़िर जीत से भगवा ब्रिग्रेड के हौसले बुलन्द हैं।इससे उत्साहित होकर उन्होंने अपना फ़ासिस्ट अभियान और तेज़ कर दिया है।

 गुजरात के अलावा खासकर उन दो प्रमुख राज्यों-राजस्थान और मध्य प्रदेश में जहाँ उनकी सरकारें हैं, वहाँ तथाकथित हिन्दुत्व की नयी प्रयोगशालाओं को बनाने का काम ज़ोरों पर हैं। जहाँ एक ओर दोनों प्रदेशों के समूचे सामाजिक-सांस्कृतिक ताने-बाने को भगवा रंग में रंगने की कवायदें लगातार जारी हैं वहीं अल्पसंख्यक आबादी के ऊपर सुनियोजित हमले भी किये जा रहे हैं-बिलकुल गुजरात की तर्ज़ पर। अल्पसंख्यक आबादी इस लगातार इस खौफ़ के साये तले जी रही है कि क्या यहाँ भी गुजरात 2002 दुहराया जायेगा?

पिछले 23–24 दिसम्बर को चित्तौड़गढ़ जिले के कपासन तहसील में लगभग आधे दर्जन गाँवों में सुनियोजित ढंग से निशाना बनाकर मुसलमानों के घरों, दुकानों, खेतों में खड़ी फ़सलों, ट्यूबवेलों और वाहनों को जला डाला गया। ‘हिन्दुत्व’ के रणबाँकुरों के इस पराक्रम-प्रदर्शन का कारण यह था उन्हें एक मुसलमान के खेत में गाय की हडि्डयाँ मिली थीं। बस क्या था, ‘धर्म रक्षकों’ का खून खौला देने के लिए यह काफ़ी था। विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल ने बन्द का आह्वान किया और इसी दौरान शौर्य के इन करतबों को अंजाम दे दिया। बाद में एक स्वतंत्र जाँच टीम को यह पता चला कि गाय का शव माँगू लाल जाट के कुएँ में पाया गया था। खेत में जो हडि्डयाँ मिली थीं वे कहाँ से आयी थीं यह अभी तक रहस्य बना हुआ है।

विहिप और बजरंग दल के बन्द के दौरान ही उग्र भीड़ ने सिन्धियों का टोला नामक मुस्लिम बहुल झुग्गी में घुसने की कोशिश की जिसे पुलिस ने रोक दिया। इसपर भीड़ ने दो पुलिसकर्मियों को पकड़ लिया जिन्हें छुडाने के लिए पुलिस को गोली चलानी पड़ी थी जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गयी थी। एक हिन्दू युवक की मौत की आड़ में धर्मरक्षकों ने ‘विधर्मियों’ को सबक सिखा दिया।

स्वतंत्र जाँच टीम से पता चले तथ्य इसके पर्याप्त प्रमाण हैं कि राजस्थान में भी गुज़रात की तर्ज पर तैयारियाँ चल रही हैं। गाँवों में मुसलमानों को चुन–चुन कर निशाना बनाया गया। हमले का निशाना बने लोगों ने जाँच ठीम को बताया कि दंगाइयों के जत्थे मोटरयाइकिलेां पर पेट्रोल भरे कण्टेनर लेकर घूम रहे थे और उनके हाथों में मुसलमानों के घरों और दुकानों की सूचियाँ थीं।

 ‘हिंसा पर काबू पा लेने’ की पुलिसिया कवायदों के बाद अब इन गाँवों की मुसलमान आबादी वापस लौटी भी है तो वह बेहद ख़ौफ़ में है। उनका सामाजिक बहिष्कार किया जा रहा है। उन्हें जान से मार डालने की खुल्लमखुल्ला धमकियाँ दी जा रही हैं और दहशतज़दा लोग जब पुलिस के पास रिपोर्ट दर्ज कराने जा रहे हैं तो नामदज रिपोर्ट नहीं दर्ज की जा रही है। ज़ाहिर है कि पुलिस को भी हिदायतनामे जारी किये जा चुके हैं।

इन गाँवों में जिस सुनियोजित ढंग से हमले हुए उससे स्पष्ट हे कि आर.एस.एस. की फ़ासीवादी मशीनरी जोर-शोर से सक्रिय है। ‘विधर्मियों द्वारा गोमाता के वध’ की अफ़वाह कुशलता से फ़ैलायी गयी जिससे उनके वध के लिए ‘हिन्दू शूरवीरों’ को ललकारा जा सके और आर्थिक रूप के उनकी कमर तोड़ी जा सके। ट्यूबलवेलों और पानी का छिड़काव करने वाली प्रणाली के ध्वस्त हो जाने के कारण सैकड़ों बीघे ज़मीन पर खड़ी फ़सलें तबाही के कग़ार पर खड़ी हैं।

इन हमलों के डेढ़ महीने बाद भी इनमें शामिल किसी एक व्यक्ति के खिलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं की गयी है। राज्य सरकार को ‘राजधर्म’ की भी कोई परवाह नहीं, वह खुला भेदभाव का रवैया अपना रही है। हमले की शिकार मुसलमान आबादी अपने टूटे हुए आशियानों में किसी तरह रह रही है। सरकार से उन्हें राहत की एक फ़ूटी कौड़ी भी नहीं मिली जबकि पुलिस फ़ायरिंग में मारे गये हिन्दू युवक को चार लाख रुपये की सहायता आनन–फ़ानन में पहुँचा दी गयी।

पूरे राजस्थान में यही हाल है। समूची मुसलमान आबादी आतंक के साये में एक-एक दिन काट रही है। पूरी राज्य मशीनरी को साध लिया गया है। कब कोई गोधरा जैसा बहाना बनाकर राज्य भर में ‘शौर्य-प्रदर्शन’ शुरू हो जाये, कहा नहीं जा सकता।

मध्य प्रदेश की स्थिति भी कमोबेश ऐसी ही है। स्कूली स्तर से लेकर माध्यमिक स्तर तक के पाठ्यक्रम बदले जा चुके हैं। पौराणिक कल्पनाओं को इतिहास के नाम पर पढ़ाया जा रहा है। नैतिक शिक्षा के नाम पर प्राचीन काल के अन्धविश्वासों, स्त्री विरोधी पुरातन विचारों और मूल्यों-मान्यताओं की घुट्टी पिलायी जा रही है। बाबा रामदेव से भी आगे बढ़कर योग को विज्ञान के रूप में प्रचारित किया जा रहा है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह से लेकर प्रदेश मंत्रिमण्डल के तमाम सदस्य सूर्य नमस्कार और अन्य यौगिक अभ्यासों में शामिल होकर मीडिया के लिए तस्वीरें खिंचा रहे हैं और जनता के जेहन में विज्ञान और आनुभाविक ज्ञान का घालमेल पका रहे हैं।

राज्य मशीनरी किस तरह खुले पक्षपात पर उतर आयी है इसका सबसे ज्वलन्त प्रमाण है प्रो.राजीव सब्बरवाल हत्याकांड के अभियुक्तों का खुला बचाव और उनका संरक्षण। चूँकि हत्यारे संघ परिवार के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के हैं इसलिए सौ खू़न माफ़। पुलिस ने एफ़ आई आर ही कमज़ोर कर दी थी जिससे राज्य के हाईकोर्ट ने पर्याप्त सबूतों के अभाव में अभियुक्त को बरी कर दिया। प्रो. सब्बरवाल के परिवार वालों को लगातार डराया-धमकाया गया। उधर, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह डंके की चोट पर अस्पताल का निरीक्षण करने के बहाने इस काण्ड के हत्यारोपित से मिलने पहुँच जाते हैं।

 भोपाल के गोशाला प्रकरण में भी आग अभी सुलग रही है। इसे रह-रहकर सुलगाया जाता रहता है। ये सब इस बात के साफ़ संकेत हैं कि मध्यप्रदेश में भी तैयारियाँ अन्दर ही अन्द चल रही हैं।

इन दोनों ही राज्यों में मेहनतकश जनता के आन्दोलनों की कमज़ोर ऐतिहासिक पृष्ठभूमि रही है और सामाजिक-सांस्कृतिक ढाँचे में सामन्ती मूल्य-मान्यताएँ और सांस्कृति के अवशेष आज भी काफ़ी मौजूद हैं। पूँजीवादी राजनीति के दायरे में सिन्धिया राजघराने की ग़रीब जनता के बीच आज भी पकड़ का कारण आम हिन्दू जनता की पुराने राजे-रजवाड़ों को देवतुल्य मानने की दिमागी ग़ुलामी ही है जिससे आज भी वह पूरी तरह उबर नहीं पायी है। राजनीतिक स्वतंत्रता के बाद भी वहाँ औद्योगिक विकास बेहद कम होने से औद्योगिक मज़दूर वर्ग की तादाद बहुत कम है। वामपन्थी-प्रगतिशील वैचारिक-सांस्कृतिक आन्दोलन भी मुख्यतः इन्दौर–जबलपुर–भोपाल के महानगरीय दायरे में ही सिमटा हुआ है। इन्हीं सब कारणों से साम्प्रदायिक फ़ासीवादी ताक़तों को अपना एजेण्डा आगे बढ़ाने के लिए उर्वर भूमि मिली हुई है।

गुज़रात के बाद राजस्थान और मध्यप्रदेश के रूप में इन दो नयी प्रयोगशालाओं में का लगातार आगे बढ़ता प्रयोग सभी प्रगतिशील, जनवादी और धर्मनिरपेक्ष लोगों के सामने गम्भीर चुनौती के रूप में खड़ा है। साम्प्रदायिक फ़ासीवादी ताकतों के मंसूबों को अगर चकनाचूर करना है तो देशभर में अपनी गोलबन्दी तेज़ करनी होगी। बहादुर, इंसाफ़पसन्द और प्रगतिचेता युवाओं को अँधेरे की इन काली ताक़तों के खिलाफ़ आने वाले दिनों में सड़कों पर मोर्चा लेने के लिए कटिबद्ध हो जाना होगा।

 

 

मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, जनवरी-मार्च 2008

 

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