लेनिन ज़िन्दाबाद

बेर्टोल्ट ब्रेष्ट

पहली जंग के दौरानLenin (3)
इटली की सानकार्लोर जेल की अन्धी कोठरी में
ठूँस दिया गया एक मुक्ति योद्धा को भी
शराबियों, चोरों और उच्चकों के साथ।
ख़ाली वक़्त में वह दीवार पर पेन्सिल घिसता रहा
लिखता रहा हर्फ़-ब-हर्फ़ –
लेनिन ज़िन्दाबाद!

ऊपरी हिस्से में दीवार के
अँधेरा होने की वजह से
नामुमकिन था कुछ भी देख पाना
तब भी चमक रहे थे वे अक्षर – बड़े-बड़े और सुडौल।
जेल के अफ़सरान ने देखा
तो फौरन एक पुताई वाले को बुलवा
बाल्टी-भर क़लई से पुतवा दी वह ख़तरनाक इबारत।
मगर सफ़ेदी चूँकि अक्षरों के ऊपर ही पोती गयी थी
इस बार दीवार पर चमक उठे सफ़ेद अक्षर:
लेनिन ज़िन्दाबाद!

तब एक और पुताई वाला लाया गया।
बहुत मोटे ब्रुश से, पूरी दीवार को
इस बार सुर्ख़ी से वह पोतता रहा बार-बार
जब तक कि नीचे के अक्षर पूरी तरह छिप नहीं गये।
मगर अगली सुबह
दीवार के सूखते ही, नीचे से फूट पड़े सुर्ख़ अक्षर –
लेनिन ज़िन्दाबाद!

तब जेल के अफ़सरान ने भेजा एक राजमिस्त्री।
घण्टे-भर वह उस पूरी इबारत को
करनी से खुरचता रहा सधे हाथों।
लेकिन काम के पूरा होते ही
कोठरी की दीवार के ऊपरी हिस्से पर
और भी साफ़ नज़र आने लगी
बेदार बेनज़ीर इबारत –
लेनिन ज़िन्दाबाद!

तब उस मुक्तियोद्धा ने कहा,
अब तुम पूरी दीवार ही उड़ा दो!

The Unconquerable Inscription

Bertolt Brecht

During the war
In a cell of the Italian prison in San Carlo
Full of imprisoned soldiers, drunks and thieves
A socialist soldier, with an indelible pencil, scratched on the wall:
Long live Lenin!
High above, in the semi-dark cell, hardly visible, but
Written in large letters.
As the warders saw it, they sent for a painter with a bucket of lime.
And with a long stemmed brush he whitewashed the threatening inscription.
Since, however, with his lime, he painted over the letters only
Stood above in the cell, now in chalk:
Long live Lenin!

Next another painter daubed over the whole stretch with a broad brush
So that for hours it disappeared, but towards morning
As the lime dried, the inscription underneath was again conspicuous:
Long live Lenin!

Then dispatched the warder a bricklayer with a chisel against the inscription
And he scratched out letter by letter, one hour long
And as he was done, now colourless, but up above in the wall
But deeply carved, stood the unconquerable inscription:
Long live Lenin!

Now, said the soldier, get rid of the wall!

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