राष्ट्रीय शहरी रोज़गार गारण्टी अभियान देश के अलग-अलग हिस्सों में ज़ोर-शोर से जारी
‘हर हाथ को काम दो वरना गद्दी छोड़ दो’

नौजवान भारत सभा व दिशा छात्र संगठन विगत छह माह से राष्ट्रीय शहरी रोज़गार गारण्टी अभियान चला रहे हैं। इस अभियान के तहत उत्तर प्रदेश के लखनऊ, गोरखपुर, नोएडा, ग़ाज़ियाबाद आदि क्षेत्रों में, पंजाब के लुधियाना और चण्डीगढ़, बंगाल के कोलकाता, महाराष्ट्र के मुम्बई और दिल्ली में जगह–जगह अभियान टोली नुक्कड़ सभाओं, घर–घर अभियान, सांस्कृतिक कार्यक्रम और साइकिल यात्राओं द्वारा रोज़गार के अधिकार को शहरी बेरोज़गारों और ग़रीबों के बुनियादी हक़ के तौर पर स्थापित करने की माँग को प्रचारित कर रही है। इस अभियान के तहत दिल्ली के करावल नगर, मुस्तफाबाद बाद आदि इलाकों में नुक्कड़ सभाओं, क्रान्तिकारी गीतों व सांस्कृतिक कार्यक्रमों, पोस्टरों आदि के जरिये रोज़गार गारण्टी के सन्देश को हर शहरी गरीब और बेरोज़गार तक पहुँचाया जा रहा है।

मालूम हो कि ग्रामीण बेरोज़गारों के लिए रोज़गार की योजना महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारण्टी कानून में सरकार ने यह माना है कि ग्रामीण आबादी को रोज़गार का अधिकार है। नौजवान भारत सभा और दिशा छात्र संगठन यह माँग करते हुए इस अभियान को चला रहे हैं कि यदि ग्रामीण ग़रीबों के रोज़गार को सरकार ने अपनी ज़िम्मेदारी माना है, हालाँकि साल में सौ दिन के ही लिए, तो शहर के ग़रीबों और बरोज़गारों को भी यह हक़ मिलना चाहिए। ऐसा ख़ास तौर पर इसलिए भी होना चाहिए कि शहर में बेरोज़गारी का आलम गाँवों से भी भयंकर है। इस अभियान के तहत वितरित किये जा रहे परचे में स्पष्ट शब्दों में बताया गया है कि रोज़गार का हक आम जनता का जन्मसिद्ध अधिकार है, चाहे वह गाँवों में रहती हो या शहरों में। यह सवाल और भी प्रासंगिक नजर आता है जब हम कुछ बुनियादी आँकड़ों पर निगाह डालते हैं। आज शहरों में बेरोज़गारी की वृद्धि दर करीब 10 प्रतिशत है। गाँवों में यह 7 प्रतिशत से नीचे है। शहरों में काम करने योग्य हर 1000 लोगों में से महज 337 लोगों के पास रोज़गार है, जबकि गाँवों में यह संख्या 417 है। शहर के कुल युवाओं में से 60 प्रतिशत बेरोज़गार हैं जबकि गाँवों में यह हिस्सा 45 प्रतिशत है। शहरी भारत में हर वर्ष 1 करोड़ नये बेरोज़गार जुड़ते हैं जो काम की तलाश में रहते हैं। शहरी भारत में काम करने वाले योग्य लोगों की आबादी करीब 3 प्रतिशत प्रति वर्ष की रफ़्तार से बढ़ रही है, जबकि रोज़गार पैदा होने की बात तो दूर वे तेजी से घट रहे हैं। शहरों में जो आबादी रोज़गार–प्राप्त है उसमें से करीब 40 प्रतिशत ठेका, दिहाड़ी या पीस रेट पर काम कर रही है और उसे साल के आधे समय भी रोज़गार प्राप्त नहीं होता। लेकिन चूँकि रोज़गारशुदा होने की सरकारी परिभाषा यह है कि अगर कोई व्यक्ति साल के 73 दिन 8 घण्टे काम करता है तो उसे रोजग़ारशुदा माना जाता है, इसलिए यह आबादी रोजग़ारशुदा मान ली जाती है। कायदे से यह आबादी अर्द्ध–बेरोज़गारों में गिनी जानी चाहिए। अगर इस आबादी को बेरोज़गारों की आबादी में जोड़ दें तो शहरों की कुल आबादी का 80 फीसदी या तो बेरोज़गार है या अर्द्धबेरोज़गार। ऐसे में शहरों के बेरोज़गारों के लिए रोज़गार गारण्टी करना सरकार की जिम्मेदारी बनती है। इस ज़िम्मेदारी को पूरा करके सरकार कोई उपकार नहीं करेगी और न ही इस भावी योजना के तहत मिलने वाला 100–200 दिनों का रोज़गार शहर के ग़रीबों को धन्नासेठ बना देगा। यह तो न्यूनतम स्तर पर जीविकोपार्जन को भी सुनिश्चित नहीं कर सकता। यह महज़ एक फौरी राहत दे सकता है इसलिए इसे एक मध्यवर्ती माँग से अधिक का दर्जा नहीं दिया जा सकता। वास्तव में पूरे समाज को ग़रीबी और बेरोज़गारी के दंश से मुक्ति एक ऐसी व्यवस्था में ही मिल सकती है जिसमें उत्पादक वर्ग ही सत्ता पर काबिज़ हों और हर निर्णय लेने का अधिकार उनके हाथ में हो।

शहरी रोज़गार गारण्टी अभियान के स्वयंसेवक दस्ते घर–घर पहुँचकर हस्ताक्षर भी जुटा रहे हैं। आने वाली 1 मई, यानी मज़दूर दिवस के दिन देश के अलग–अलग हिस्सों से हज़ारों की संख्या में मज़दूर, छात्र–युवा और स्त्रियाँ दिल्ली में जन्तर–मन्तर पर इकट्ठा होंगे और सरकार को माँग–पत्रक और लाखों हस्ताक्षरों के साथ एक ज्ञापन सौंपेंगे। शहरी रोज़गार गारण्टी अभियान द्वारा उठायी गयी पाँच मांगें इस प्रकार हैं-

1. नरेगा की तर्ज पर शहरी बेरोज़गारों और गरीबों के लिए शहरी रोज़गार गारण्टी योजना बनायी और लागू की जाए। 

2. इस योजना के तहत शहरी बेरोज़गारों को साल में कम से कम 200 दिनों का रोजगार दिया जाय।

3. इस योजना में मिलने वाले काम पर न्यूनतम मज़दूरी के मानकों के अनुसार भुगतान किया जाए।

4. इस योजना के तहत रोज़गार न दे पाने की सूरत में बेरोज़गारी भत्ता दिया जाए, जो जीविकोपार्जन के न्यूनतम स्तर को कायम रख पाने के लिये पर्याप्त हो।

5. इस योजना को पूरे भारत में लागू किया जाय।

(आह्वान टीम)

मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, मार्च-अप्रैल 2010

 

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