देश का हर दूसरा बच्चा शोषण-उत्पीड़न का शिकार
हर जगह पूँजीवादी संस्कृति, सभ्यता और समाज की पतनोन्मुखता और सड़ाँध मारती मरणोन्मुखता ही नज़र आ रही है। बच्चे अपने घरों में सुरक्षित नहीं हैं। जिन मस्तिष्कों को ऊँची उड़ानें भरनी हैं उन्हें कुण्ठित और ग्रंथिग्रस्त कर दिया जा रहा है। मनोरोगियों की समाज में भरमार होती जा रही है।