दवा उद्योग का घिनौना सच!
क्या डाक्टरों की यह संस्था इस तथ्य से इंकार कर सकती है कि ऐसे डाक्टरों की कमी नहीं जो चिकित्सा बाज़ार में बैठकर मुनाफा पीटने की हवस में कसाइयों की तरह ग़रीबों-बेबसों को हलाल करते हैं? झोलाछाप डाक्टरों पर लगाम लगाने के लिए समय-समय पर सरकार से ज़ोरदार माँग करने वाले आईएमए को कभी यह ख़्याल क्यों नहीं आता कि वह सरकारी अस्पतालों के ढाँचे को बेहतर बनाने और जनस्वास्थ्य के समूचे तन्त्र को मज़बूत बनाने के लिए सरकार से माँग करे और ज़रूरत पड़े तो सड़कों पर भी उतरे। असलियत तो यह है कि ज़्यादातर सरकारी अस्पतालों में और निजी प्रैक्टिस कर रहे एमबीबीएस, एमडी डाक्टर ही नकली या ग़ैरज़रूरी महँगी दवाओं से मरीज़ों की पर्ची भर देते हैं।