पटना विश्वविद्यालय में फ़ीस वृद्धि के ख़िलाफ़ आन्दोलन
आम तौर पर भाजपा सरकार जब से सत्ता में आयी है तभी से शिक्षा-विरोधी और छात्र-विरोधी नीतियाँ लागू कर रही है। यूजीसी को ख़त्म करने की कोशिश हो या उच्च शिक्षा के बजट में कटौती। इन सारे क़दमों से उनके इरादों को साफ़ तौर पर समझा जा सकता है। इसी क्रम में मोदी सरकार नयी शिक्षा नीति- 2020 लेकर आयी जिसके तहत देशभर के उच्च शिक्षण संस्थानों में कई तरह के बदलावों को देखा जा सकता है। कहीं पर सीबीसीएस प्रणाली लागू हो रही है तो कहीं चार वर्षीय स्नातक कोर्स (FYUP)।
नयी शिक्षा नीति-2020 के तहत बिहार के सबसे प्रमुख विश्वविद्यालय पटना विश्वविद्यालय में शैक्षणिक सत्र 2022 से सीबीसीएस प्रणाली लागू कर दी गयी जिसके तहत छात्रों को “चॉइस” के नाम पर कई तरह के झूठे वादों के साथ-साथ कई तरह की मुसीबतों का भी सामना करना पड़ा।
इसके तहत स्नातक कोर्स में भी सेमेस्टर प्रणाली लागू हुई और फ़ीस में भी वृद्धि हो गयी। हालाँकि सीबीसीएस लागू करने के बाद भी विश्वविद्यालय के ढाँचागत सुविधा में कोई वृद्धि नहीं हुई और न ही शिक्षकों के ख़ाली पदों को भरा गया। पहले से कार्यरत शिक्षकों एवं कर्मचारियों पर काम का दबाव भी बढ़ गया। फ़ीस वृद्धि के बाद फ़ीस लगभग दुगुनी हो गयी।
फ़ीस वृद्धि की जानकारी होते ही दिशा छात्र संगठन के कार्यकर्ताओं ने तुरन्त पहलक़दमी लेते हुए इसके ख़िलाफ़ पर्चा निकालकर छात्रों को एकजुट करना शुरू किया। प्रचार के अन्य माध्यमों से भी छात्रों तक फ़ीस वृद्धि के ख़िलाफ़ एकजुट होने और आन्दोलनरत होने की बात पहुँचायी गयी। पटना कॉलेज से शुरु करते हुए पटना विश्वविद्यालय के अन्य कॉलेजों में भी इस बात को पहुँचाया गया। कई बार विश्वविद्यालय प्रशासन का घेराव किया गया। शुरुआत में विश्वविद्यालय प्रशासन इस पूरे मसले पर कोई कार्रवाई नहीं कर रहा था लेकिन आम छात्रों के साथ मिलकर दिशा छात्र संगठन ने विश्वविद्यालय प्रशासन को आन्दोलनरत छात्रों से मिलने, बढ़ी हुई फ़ीस जमा करने की अन्तिम तिथि बढ़ाने लिए मजबूर किया। इसके बाद भी फ़ीस वृद्धि वापस लेने पर विश्वविद्यालय प्रशासन के अड़ियल रवैये पर दिशा छात्र संगठन ने अपने आन्दोलन को और तेज़ किया जिससे कि जिला प्रशासन को मजबूर होकर आन्दोलन कर रहे छात्रों के प्रतिनिधिमण्डल को राजभवन ले जाना पड़ा। वहां प्रतिनिधिमण्डल की मुलाक़ात बिहार के ज्वाइण्ट सेक्रेटरी से हुई। इसके बाद फ़ीस वृद्धि वापस लेने के आश्वासन के साथ-साथ पटना विश्वविद्यालय के कुलपति से प्रतिनिधिमण्डल की मुलाक़ात सुनिश्चित की गयी। इसके बाद कुलपति को भी इस प्रतिनिधिमण्डल से मिलना पड़ा। अन्त में कुछ दिनों के बाद विश्वविद्यालय प्रशासन को फ़ीस वृद्धि में कटौती करनी पड़ी और बढ़ी हुई फ़ीस का एक बड़ा हिस्सा कम कर दिया गया।
इस पूरे आन्दोलन में दिशा छात्र संगठन के नेतृत्व में आम छात्रों की एकजुटता के दम पर ही जीत हासिल की गयी। आन्दोलन की इस जीत ने छात्रों के बीच यह बात स्थापित कर दिया कि छात्रों के मुद्दों को लेकर केवल स्वतन्त्र क्रान्तिकारी छात्र संगठन ही आर-पार की लड़ाई लड़ सकता है और एक मुकम्मल अंजाम तक पहुँचा सकता है। पटना विश्वविद्यालय में कई चुनावबाज़ पार्टियों के छात्र संगठन और नेताओं के अलावा छात्रसंघ भी मौजूद है लेकिन न तो किसी छात्र संगठन ने और न ही छात्रसंघ ने इस पूरे मसले को गम्भीर रूप से लिया। सिर्फ़ ज्ञापन सौंपने की रस्मी कवायद को अंजाम दिया गया। बाद में दिशा छात्र संगठन के नेतृत्व में बढ़ते आन्दोलन के दबाव में आकर आन्दोलन के अन्तिम चरण में उन्हें भी शामिल होना पड़ा लेकिन इसके बाद भी उसने विश्वविद्यालय प्रशासन से किसी न किसी समझौते पर इस आन्दोलन को ख़त्म करने की कोशिश की। छात्रों की एकजुटता ने इस कोशिश को सफल होने नही दिया।
पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ ही नहीं बल्कि कैम्पस में मौजूद तमाम चुनावबाज़ पार्टियों के छात्र संगठनों ने भी इस पूरे मसले पर कोई कार्रवाई नहीं की क्योंकि यह उनके लिए मसला ही नहीं था। तथाकथित लेफ्ट पार्टियों के छात्र संगठन पहले तो पूरे आन्दोलन से ग़ायब रहे और अन्तिम समय में छात्रों के बीच जाकर उनकी पहलक़दमी को रोकने की हरचन्द कोशिश करते नज़र आये। उन्होंने आम छात्रों को गिरफ़्तार हो जाने तथा करियर बर्बाद हो जाने तक का डर दिखाया ताकि वे इस आन्दोलन में हिस्सेदारी न करें। हालांकि ऐसा हुआ नहीं और बड़ी संख्या में आम छात्रों ने इस आन्दोलन में भागीदारी की।
इस आन्दोलन ने छात्रों के बीच यह स्थापित किया कि आज के समय में छात्र राजनीति में आम छात्रों के मुद्दों को लेकर किसी भी चुनावबाज़ पार्टी के छात्र संगठन आर-पार की लड़ाई नहीं लड़ सकते क्योंकि फ़ीस वृद्धि से लेकर कोई भी छात्र-विरोधी नीतियाँ उनकी ही आका पार्टियाँ लागू करती है। इसीलिए आज छात्र राजनीति में एक ऐसे छात्र संगठन की आवश्यकता है जो किसी चुनावबाज़ पार्टी से सम्बन्धित न हो और जो आम छात्रों के मुद्दों को लेकर समझौता विहीन एवं जुझारू तरीक़े से लड़े।
दिशा छात्र संगठन एक ऐसा ही स्वतन्त्र क्रान्तिकारी छात्र संगठन है जो आम छात्रों की पहल पर बना है।
इस पूरे आन्दोलन ने आम छात्रों को यह भी सिखाया की लड़ाई केवल फ़ीस वृद्धि तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसके आगे सीबीसीएस प्रणाली, नयी शिक्षा नीति-2020 के साथ-साथ इस मुनाफ़े पर आधारित व्यवस्था को भी उखाड़ फेंकने की आवश्यकता है जिसमें शिक्षा एक बाज़ारू माल बन गयी है जिसे केवल वही हासिल कर सकता है जिसके पास पैसा है।
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