यूजीसी द्वारा परीक्षाएँ कराये जाने के विरोध मे देशभर में प्रदर्शन
सभी परीक्षाओं को रद्द करो!
छात्रों को मौत के मुँह में ढकेलना बन्द करो!

कोरोना महामारी के इस भयंकर दौर में जब हर रोज़ भारत में 50 हज़ार से अधिक मामले सामने आ रही हैं, संक्रमित लोगों की संख्या के मामले में भारत दुनिया में तीसरे स्थान पर पहुँच गया है, ऐसी स्थिति में दिशा छात्र संगठन के कार्यकर्ता यह माँग कर रहे थे कि महामारी के मद्देनज़र सभी परीक्षाओं को निरस्त किया जाये और इसके मद्देनज़र यूजीसी के कार्यालय पर संयुक्त प्रदर्शन भी आयोजित किए गये थे। लेकिन छात्रों-युवाओं के विरोध को नज़रअन्दाज़ करते हुए लेकिन यूजीसी ने विश्वविद्यालयों में परीक्षा कराने का फ़ैसला लिया। यूजीसी के इस निर्णय ख़िलाफ़ दिशा छात्र संगठन द्वारा इलाहाबाद विश्वविद्यालय, पटना विश्वविद्यालय, महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय रोहतक, गोरखपुर विश्वविद्यालय, आदि विश्वविद्यालयों में विरोध प्रदर्शन किया गया। ग़ौरतलब है कि यूजीसी के फ़ैसले के मुताबिक़ परीक्षाएँ चाहे ऑनलाइन आयोजित की जायें या ऑफ़लाइन, दोनों ही तरीक़े अव्यावहारिक व छात्र-विरोधी साबित होंगे। एक ओर तो ऑनलाइन परीक्षा देने के लिए कम्प्यूटर व इण्टरनेट कनेक्शन सभी छात्रों के पास उपलब्ध नहीं है, तो दूसरी ओर बढ़ते संक्रमण को देखते हुए जल्दबाज़ी मे ऑफ़लाइन परीक्षा आयोजित कराना ख़तरनाक हो सकता है। यूजीसी का कहना है कि यह छात्रों की योग्यता और भविष्य का सवाल है। लेकिन यूजीसी को विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसरों की कमी, लाइब्रेरी, लैब आदि सुविधाओं के अभाव में योग्यता का तर्क नहीं दिखाई देता है। ज़ाहिर है कि कोरोना महामारी के इस भयंकर दौर में योग्यता का हवाला देकर परीक्षाएँ आयोजित कराकर छात्रों को मौत के मुँह में ढकेला जा रहा है ताकि कोरोना संकट की भयंकरता पर पर्दा डाला जा सके। फ़ासीवादी भाजपा सरकार और संघ परिवार का पिछलग्गू संगठन एबीवीपी (अखिल भारतीय विद्यार्थी संगठन) भी इस छात्र-विरोधी फ़ैसले का स्वागत कर रहा है। दिशा छात्र संगठन की यह माँग है कि सभी परीक्षाओं को तत्काल रद्द कराया जाये और वैकल्पिक मार्किंग प्रणाली से छात्रों को प्रमोट किया जाये।

छात्रों के व्यापक विरोध के बावजूद परीक्षाएँ कराने के दुखद परिणाम आने भी शुरू हो गये हैं। परीक्षा देकर मुज़फ़्फ़रपुर की एक छात्रा की मृत्यु हो चुकी है।

नयी शिक्षा नीति के विरोध में प्रदर्शन

छात्रों-युवाओं और बुद्धिजीवियों के तमाम विरोध को दरकिनार करते हुए दिनांक 29 जुलाई के दिन ‘नयी शिक्षा नीति 2020’ को मोदी सरकार के कैबिनेट ने मंजूरी दे दी। यह शिक्षा नीति शिक्षा के क्षेत्र में सरकारी निवेश को घटायेगी और बड़ी पूँजी के लिए शिक्षा के दरवाज़े खोलेगी। व्यापक मेहनतकश जनता के बेटे-बेटियों के लिए शिक्षा प्राप्त करने के रास्ते और भी सँकरे हो जायेंगे। मोदी सरकार द्वारा जन-विरोधी नयी शिक्षा नीति – 2020 लागू किये जाने का दिशा छात्र संगठन की इलाहाबाद तथा गोरखपुर की इकाईयों के कार्यकर्ताओं ने विरोध किया। इस जन-विरोधी शिक्षा नीति के मसौदे को पहले फ़ासीवादी मोदी सरकार द्वारा निहायत ही अलोकतांत्रिक तरीके से लोगों के सामने आने से रोका गया। फिर अचानक बहुत कम समय देकर इसपर सुझाव माँगने खानापूर्ति की गयी। इसके बावजूद देश भर से बहुत से सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने सरकार को पत्र लिखे और जगह-जगह इसके ख़िलाफ़ कार्यक्रम आयोजित किये, लेकिन कोरोना महामारी के इस दौर में सरकार ने आपदा को अवसर में बदलते हुए इस जन-विरोधी शिक्षा नीति को लागू कर दिया। दिशा छात्र संगठन शिक्षा को आम जनता से दूर कर मुट्ठी भर देशी-विदेशी लुटेरों की तिजोरी में क़ैद करने व शिक्षा के माध्यम फ़ासीवादी संघ-भाजपा के एजेण्डों को लागू करने के लिए बनायी गयी इस नीति को वापस लेने की माँग करता है।

आलोचना अवमानना नहीं है।

उच्चतम न्यायालय द्वारा वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशान्त भूषण को न्यायालय की अवमानना का दोषी ठहराने के ख़िलाफ़ देश भर में जगह-जगह विरोध प्रदर्शन आयोजित किए गये। नौजवान भारत सभा, दिशा छात्र संगठन और स्त्री मुक्ति लीग के कार्यकर्ताओं ने भी दिल्ली, इलाहाबाद, देहरादून समेत जगह-जगह इन कार्यक्रमों में भागीदारी की। इलाहाबाद के बालसन चौराहे पर आयोजित प्रदर्शन में दिशा छात्र संगठन और नौजवान भारत सभा के कार्यकर्ताओं ने क्रान्तिकारी गीत ‘वो सब कुछ करने को तैयार’, ‘हम जंगे-अवामी से कोहराम मचा देंगे’ और ‘जारी है हड़ताल’ की प्रस्तुति की तथा बातचीत रखी। देहरादून में सामाजिक संगठनों, कार्यकर्ताओं की ओर से राष्ट्रपति को पत्र लिखकर इसके ख़िलाफ़ ज्ञापन सौंपा गया।

स्त्री-बच्चे सब बर्बाद, इसकी जड़ में पूँजीवाद

कुलदीप सिंह सेंगर और चिन्मयानन्द जैसे स्त्री-उत्पीड़न के अपराधियों को बचाने में जी-जान लगा देने वाली सरकार के राज में महिलाओं और बच्चियों की सुरक्षा की उम्मीद करना बेमानी है। उत्तर प्रदेश में लगभग हर दिन स्त्री-उत्पीड़न की बर्बर घटनाएँ सामने आ रही हैं। अगस्त की शुरुआत में ही लखीमपुर खीरी और गोरखपुर में ऐसी ही बर्बर घटनाएँ सामने आयीं। लखीमपुर खीरी में एक दलित बच्ची के साथ बलात्कार करने के बाद बेरहमी से हत्या कर दी गयी। इसके दो ही दिन बाद गोरखपुर में एक लड़की के साथ बलात्कार करने और सिगरेट से दागने की घटना सामने आयी। पुलिस प्रशासन के रवैये को इसी से समझा जा सकता है कि लखीमपुर खीरी की घटना पर पुलिस ने पहले केवल हत्या का मामला दर्ज किया। इसके बाद जब मेडिकल रिपोर्ट में भी बलात्कार की बात सामने आयी तो पुलिस ने स्वीकार किया लेकिन भयानक यातना देने की बात पुलिस ने नहीं मानी। स्त्री मुक्ति लीग, दिशा छात्र संगठन और नौजवान भारत सभा के कार्यकर्ताओं ने इन घटनाओं के खिलाफ़ इलाहाबाद, गोरखपुर, चित्रकूट आदि जगहों पर विरोध प्रदर्शन करके अपराधियों को सख़्त से सख़्त सज़ा देने की माँग की।

कानपुर राजकीय बालगृह (बालिका) में कोरोना संक्रमण और यौन उत्पीड़न के ख़िलाफ़ प्रदर्शन

उत्तर प्रदेश सरकार के शरण गृह और बालगृह लड़कियों के लिए नर्क से भी बदतर साबित हुए हैं। पिछले दिनों कानपुर के बाल संरक्षण गृह में रह रहीं 171 लड़कियों में से सात गर्भवती और 57 कोरोना संक्रमित पायी गयी हैं। अहम बात है कि इनमें से एक को छोड़कर बाक़ी की उम्र 18 साल से कम है। मामले का खुलासा हो जाने के बाद अब प्रशासन लीपापोती करने में लग गया है। प्रशासन का कहना है कि बालिका गृह में लाए जाने से पहले से ही ये किशोरियाँ गर्भवती थीं। प्रशासन ने आनन-फ़ानन बालिका गृह को सील कर दिया गया है जिससे वहाँ उपलब्ध रिकॉर्ड भी सील हो गया, जिससे मामले की समुचित जाँच भी संभव नही हो पा रही है। कानपुर के स्वरूपनगर स्थित राजकीय बालगृह (बालिका) में मैनेजमेण्ट और प्रशासन की लापरवाही की वजह से लड़कियों के कोरोना संक्रमित पाए जाने के ख़िलाफ़ स्त्री मुक्ति लीग और दिशा छात्र संगठन ने इलाहाबाद, गोरखपुर और चित्रकूट आदि शहरों में विरोध प्रदर्शन कर दोषियों को जल्द से जल्द सख़्त सज़ा देने की माँग की।

संरक्षण गृह में हुए यौन उत्पीड़न को सामान्य घटना के तौर पर नहीं देखा जा सकता है! बालिका गृह में यौन उत्पीड़न का यह कोई पहला मामला नही है इससे पहले भी मुज़फ़्फ़रपुर, देवरिया, प्रतापगढ़, पटना और देश के न जाने कितने शेल्टर होम्स में लड़कियाँ पूँजीवादी-पितृसत्ता के हवस का शिकार बन चुकी है। जो संरक्षण गृह बालिकाओं की सुरक्षा के लिए बनाये गये हैं वह लड़कियों के खिलाफ़ होने वाले अपराधों का अड्डा बन चुके हैं। सत्ता-प्रशासन और पूँजीवादी-पितृसत्ता के गठजोड़ से इन पाशविक घटनाओं के लिए ज़िम्मेदार अपराधी आसानी से बच निकलते है।

शेल्टरों में यौन शोषण की घटना ने आज पूरी व्यवस्था पर सवाल खड़ा किया है। यह घटना मानवद्रोही, सड़ाँध मारती पूँजीवादी व्यवस्था की प्रातिनिधिक घटना है। इस घटना ने राजनेताओं, प्रशासन, नौकरशाही सबको कटघरे में खड़ा कर दिया है!

 अमर शहीद चन्द्रशेखर आज़ाद के जन्मदिवस (23 जुलाई ) पर परिचर्चा का आयोजन

एचएसआरए के महान क्रान्तिकारी चन्द्रशेखर आज़ाद के जन्मदिवस पर हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, उत्तरखण्ड, दिल्ली आदि राज्यों में विभिन्न हिस्सों में “चन्द्रशेखर आज़ाद की क्रान्तिकारी विरासत और आज का समय” विषय पर परिचर्चा का आयोजन किया गया।

आज़ाद का जन्म एक ग़रीब परिवार में हुआ था और उन्हें प्राथमिक शिक्षा पूरी करने का मौक़ा भी नहीं मिल सका था। इसी वजह से उनके बारे में बहुतेरे लोगों के मन में यह भ्रान्ति है कि उन्हें क्रान्तिकारी आन्दोलन के सैद्धान्तिक पहलुओं की कम समझ थी या इसमें उनकी कोई भूमिका नहीं थी। उनके सांगठनिक कौशल और प्रचण्ड साहस की तो चर्चा होती है पर उनकी वैचारिक प्रखरता को भुला दिया जाता है। भगतसिंह और आज़ाद के क्रान्तिकारी साथियों के संस्मरणों से पता चलता है कि वे महज़ सेनापति ही नहीं, बल्कि एच.एस.आर.ए. के नेतृत्वकारी मण्डल के एक प्रमुख भागीदार थे। भगतसिंह, भगवतीचरण बोहरा, सुखदेव आदि अधिक बौद्धिक क्रान्तिकारियों के विचारों को वे आँख मूँदकर नहीं स्वीकारते थे बल्कि उन पर पूरी बहस करते थे। सभी दस्तावेज़ों, बयानों, पर्चों आदि पर वे चर्चा करते थे और उनकी सहमति से ही वे जारी किये जाते थे। आज़ाद एच.आर.ए. और एच.एस.आर.ए. के बीच की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी थे और काकोरी काण्ड के बाद क्रान्तिकारी संगठन के बिखरे सूत्रों को जोड़कर उसका पुनर्गठन उन्हीं के नेतृत्व में हुआ था।

आज कोरोना संकट महामारी देशभर में तेज़ी से पैर पसार रही है और इसकी चपेट में बड़ी संख्या में देश की आम मेहनतकश आबादी आ चुकी है और और यह संख्या दिन प्रति दिन बढ़ती जा रही है। मोदी सरकार द्वारा बिना किसी तैयारी और योजना के लागू किया गया लॉकडाउन बुरी तरह से फ़ेल हो चुका है और अब पूँजीपतियों के गिरते मुनाफ़े की दर को रोकने के लिए फिर से बिना बड़े पैमाने की जाँच और किसी प्रकार की सुरक्षा के लॉकडाउन हटाकर फ़ासीवादी सरकार पूरे देश के छात्रों-कर्मचारियों-मेहनतकशों के जीवन व भविष्य को नरक में धकेल रही है। आज एक तरफ़ जब छात्र-नौजवान बेरोज़गारी के भयानक संकट के चलते निराशा-हताशा का शिकार होकर आत्महत्या करने पर मजबूर हो रहे हैं, जब कर्मचारी पहले से मिलने वाली सुविधाओं (पुरानी पेंशन आदि) से हाथ धोते जा रहे हैं और जब खेतों-कारखानों में हड्डी गलाने वाला मेहनतकश कमरतोड़ मेहनत के बाद भी नरक जैसी गन्दी झुग्गी-झोपड़ियों में जीने को मजबूर हैं। तब इस देश के सत्ताधारी देश में धर्म, मन्दिर-मस्ज़िद के नाम पर नफ़रत की आग भड़काने में जुटे हुए हैं। आज “आज़ाद” देश में बोलने तक पर पाबन्दियाँ लगायी जा रही हैं, सत्ताधारियों की जन-विरोधी नीतियों की आलोचना तक करने पर ज़ुबान पर ताला लगाया जा रहा है।

साम्राज्यवादी-पूँजीवादी शोषण-उत्पीड़न की बेड़ियों में जकड़ी देश की मेहनतकश जनता के दिलों तक आज़ाद के अधूरे सपनों को पहुँचाना और उनकी महान शहादत से प्रेरणा लेते हुए उन सपनों को पूरा करने का संकल्प लेना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

मोदी सरकार की ग़रीब-मज़दूर विरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ देशव्यापी प्रदर्शन

मोदी सरकार की ग़रीब-मज़दूर विरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ आयोजित देशव्यापी प्रदर्शन में दिशा छात्र संगठन व नौजवान भारत सभा की टीमों देश में जगह-जगह भागीदारी की व प्रदर्शन आयोजित किए। कोरोना महामारी का फ़ायदा उठाते हुए मोदी सरकार ने श्रम क़ानूनों में बदलाव से लेकर अपने राजनीतिक विरोधियों की आवाज़ों को दबाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। उत्तर प्रदेश, हरियाणा समेत कई राज्यों में तीन साल के लिए श्रम क़ानून निरस्त कर दिये गये हैं। काम के घण्टों को आठ से बढ़ाकर बारह कर दिया गया है। पूँजीपतियों को मेहनत की लूट की खुली छूट दे दी गयी है। दिशा छात्र संगठन और नौजवान भारत सभा के कार्यकर्ताओं ने सभी श्रम क़ानूनों को लागू करने, कोरोना महामारी के दौरान मज़दूरों के परिवार के जीवन-यापन का ख़र्च सरकार द्वारा वहन करने, एपीएल-बीपीएल राशनकार्ड के बिना अनाज मुहैया कराने, मज़दूरी सहित अवकाश व रोज़गार की पूर्ण सुरक्षा देने, अनौपचारिक मज़दूरों जैसे ठेला चालक, रिक्शा चालक, रेहड़ी-खोमचा आदि को 15,000 रुपये प्रतिमाह नक़द गुज़ारा भत्ता देने आदि की माँग की।

पेट्रोलियम उत्पादों के बढ़ते दाम पर केन्द्र सरकार के रवैये के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन

दिशा छात्र संगठन और नौजवान भारत सभा की ओर से उत्तर प्रदेश, हरियाणा और बिहार के विभिन्न ज़िलों में पेट्रोलियम उत्पादों के बढ़ते दाम पर केन्द्र सरकार के रवैये के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन किया गया। अन्तरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की क़ीमत गिर कर 2004 के स्तर तक पहुँच गयी है लेकिन पिछले 23 दिनों में 21 बार पेट्रोल डीज़ल के दाम बढ़ाये जा चुके हैं। 2014 के बाद से पेट्रोलियम पदार्थों पर ड्यूटी 12 बार बढ़ायी जा चुकी है। ‘बहुत हुई महँगाई की मार’ का नारा देकर सत्ता में पहुँची भाजपा के सत्तासीन होने के बाद से अब तक पेट्रोल और डीज़ल पर ड्यूटी क्रमशः 248% और 794% तक बढ़ाया गया है। पेट्रोल-डीज़ल के बढ़ते दाम की सबसे भयानक मार आम आदमी, किसानों और मज़दूरों पर पड़ रही है। एक तरफ फ़ासीवादी सरकार द्वारा बिना किसी तैयारी के किये गये लॉकडाउन की वजह से लोगों का काम-धन्धा ठप्प हो गया है, करोड़ो लोगों का रोज़गार छिन चुका है तो वहीं पेट्रोल-डीज़ल के बढ़ते दामों की वजह से मालों की ढुलाई से लेकर कृषि उत्पादन तक के दाम आसमान छूने से करोड़ों लोगों के सामने भुखमरी का संकट पैदा हो गया है।

राजनीतिक कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी के ख़िलाफ़ प्रदर्शन

नौजवान भारत सभा व दिशा छात्र संगठन के संयुक्त आह्वान पर लॉकडाउन के दौरान दिल्ली दंगे के जांच के नाम पर सीएए विरोधी राजनीतिक व सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी के खिलाफ़ पटना के गोसाई टोला, उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, इलाहाबाद, अम्बेडकरनगर, चित्रकूट, लखनऊ सहित देश के विभिन्न राज्यों में विरोध प्रदर्शन आयोजित किया गया। गौरतलब है कि दिल्ली दंगो के जाँच के नाम पर पुलिस लगातार ही छात्रों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और अल्पसंख्यक युवाओं को मनमाने ढंग से उनके घरों से उठाकर पूछताछ कर रही है और उन्हें गिरफ़्तार कर रही है। सरकार अपने विरोध में उठने वाली हर लोकतांत्रिक आवाज़ को कुचलने पर आमादा है। कोरोना के चलते अब सरकार को जनान्दोलन का भी भय नहीं रह गया है। फ़ासीवादी सरकार की यह मंशा है कि एनआरसी-सीएए विरोधी आन्दोलन कोरोना लॉकडाउन के बाद फिर से शुरू न हो पाये। प्रदर्शनकारियों ने माँग की कि दिल्ली दंगे के नाम पर जिन छात्रों और राजनीतिक सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी हुई है उन्हें तुरन्त रिहा किया जाये और उसके असली गुनाहगार जैसे रागिनी तिवारी, कपिल मिश्रा, अनुराग ठाकुर को तुरन्त गिरफ़्तार किया जाये|

आज़ादी के 73 सालों का सफ़रनामा

नौजवान भारत सभा द्वारा महाराष्ट्र, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा आदि राज्यों मे “आज़ादी के 73 वर्ष, शहीदों का सपना और आज का भारत” विषय पर चर्चा आयोजित की गयी । चर्चा के दौरान आजादी के आन्दोलन और क्रान्तिकारियों के सपनों के भारत के बारे में विस्तार से बातचीत की गयी। भारत को 1947 में अधूरी आज़ादी मिली थी, वह महज़ सत्ता हस्तान्तरण थी जिसके बाद भूरे अंग्रेज़ हम पर शासन कर रहे हैं। आज़ादी के बाद जितनी भी पार्टियों ने देश के शासन की बागडोर सँभाली आम जनता के हित में काम करने के बजाय केवल पूँजीपतियों की चाकरी ही की। यही वजह है कि आज़ादी के 73 वर्ष बाद भी देश के किसानों, मजदूरों के जीवन में कोई विशेष बदलाव नहीं हुआ है। अमीरी-ग़रीबी की खाई लगातार बढ़ती जा रही है। भगतसिंह और बाक़ी क्रान्तिकारियों के सपने आज भी अधूरे हैं और उन्हें पूरा करने के लिए देश के नौजवानों को एक बार फिर से एकजुट होने की ज़रूरत है। भगतसिंह का सपना एक ऐसे समाज का था जिसमें एक व्यक्ति द्वारा दूसरे का शोषण नहीं किया जा सके मगर आज शोषण और लूट बदस्तूर जारी है। देश की आम आबादी शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार आवास जैसे बुनियादी सुविधाओं से भी महरूम हैं, दूसरी ओर अरबपतियों की संख्या में लगातार इज़ाफ़ा हो रहा है।

मन्दिर का झुनझुना नहीं, शिक्षा-चिकित्सा-रोज़गार रोज़गार चाहिए!

कोरोना महामारी के भयंकर दौर में देश की मेहनतकश जनता परेशान है। बहुत बड़ी आबादी भूख, बेरोज़गारी और असमय मृत्यु के ख़तरे से जूझ रही है। पेट भरने की जद्दोजहद में, जब कोरोना संक्रमण की रफ़्तार हर रोज़ नये रिकॉर्ड बना रही है, मेहनतकश जनता संक्रमण के ख़तरे और मौत से जूझते हुए अमानवीय परिस्थितियों में काम कर रहे हैं। कुल संक्रमित मामलों की संख्या देश में 20 लाख से ऊपर पहुँच चुकी है। अयोध्या और आसपास के जिलों में घाघरा/सरयू नदी में आयी बाढ़ के चलते सैकड़ों गाँवों में पानी घुस चुका है। लेकिन फ़ासीवादी मोदी सरकार अपने पुराने फ़ासीवादी एजेण्डे को अंजाम देते हुए आपदा के इस दौर को इवेंट में बदलकर अयोध्या में राम मन्दिर का शिलान्यास किया। इसी के साथ ही 5 अगस्त ही वह तारीख़ है, जब फ़ासीवादी मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और धारा 35-ए ख़त्म करके उसे तीन हिस्सों में विभाजित कर दिया था। कश्मीर की जनता पर नये दमनचक्र की शुरुआत के एक साल पूरा होने पर उसी दिन राम मन्दिर के निर्माण की शुरुआत करके भाजपा और संघ परिवार एक ही तीर से कई निशाने साधने में लगे हुए हैं। इसके ख़िलाफ़ पूरे उत्तर प्रदेश में नौजवान भारत सभा और दिशा छात्र संगठन की विभिन्न इकाइयों ने प्रदर्शन किया।

मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान,जुलाई-अक्‍टूबर 2020

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