कॉलेज प्रशासन के तानाशाहीपूर्ण रवैये के ख़िलाफ़ ‘पटना आर्ट कॉलेज’ के छात्रों का आन्दोलन
गत 28 अप्रैल को पटना के कला एवं शिल्प महाविद्यालय में आठ छात्रों पर अनुशासनहीनता का झूठा आरोप लगाकर अनिश्चित काल के लिए उन्हें निलम्बित कर दिया गया था| इस अन्यायपूर्ण फैसले के विरोध में छात्रों ने 2 मई से अपने आन्दोलन की शुरुआत की जिसमें निलम्बन वापसी और प्रभारी प्राचार्य की बर्खास्तगी की माँग प्रमुख थी| आन्दोलन की शुरुआत एक छोटी सी घटना से हुई| विगत 21 अप्रैल को कॉलेज के एक छात्र ‘विश्वेन्द्र’ ने वहाँ के एक निर्माण ठेकेदार को हॉस्टल से अवैध तरीके से बिजली कनेक्शन लेने से रोका तो ठेकेदार ने बेरहमी से उसकी पिटाई की, उसे कॉलेज के प्राचार्य के सामने भी पीटा गया और प्राचार्य चन्द्रभूषण श्रीवास्तव ने इस पर चूँ तक नहीं की। जब कॉलेज के छात्रों ने प्रभारी प्राचार्य चन्द्रभूषण श्रीवास्तव से इस मामले को लेकर कार्रवाई करने की माँग की तो प्राचार्य ने कॉलेज के ही आठ छात्रों पर अनुशासनहीनता का आरोप लगाकर उन्हें निलम्बित कर दिया| जब इस मसले पर विश्वविद्यालय प्रशासन भी सुनने को तैयार नहीं हुआ तो इसके विरोध में छात्रों ने 2 मई से निर्दोष छात्रों की निलम्बन वापसी और प्रभारी प्राचार्य की बर्खास्तगी की माँग को लेकर आन्दोलन की शुरुआत की| यह आन्दोलन महज़ एक इस छोटी सी घटना का परिणाम नहीं था बल्कि यह लम्बे समय से प्रशासन के अन्यायपूर्ण रवैये और कॉलेज में चल रही प्राचार्य की तानाशानी का परिणाम था| चन्द्रभूषण श्रीवास्तव की नियुक्ति के ऊपर भी छात्रों के सवाल थे| प्रशासन द्वारा एक ऐसे प्राचार्य को नियुक्त किया गया जिसने कला के क्षेत्र से स्नातक भी नहीं किया था| उसके इतर प्रभारी प्राचार्य चन्द्रभूषण श्रीवास्तव के कार्यकाल के दौरान कॉलेज गुण्डागर्दी का अड्डा बना हुआ था| उनका जातिवादी और स्त्री विरोधी रुख भी जग जाहिर था| इन्ही कारणों से छात्रों ने प्राचार्य की बर्खास्तगी को लेकर आन्दोलन की शुरुआत की| आन्दोलन के शुरुआती दौर में छात्र कॉलेज के गेट पर 9 दिनों तक धरने पर बैठे परन्तु जब प्रशासन की तरफ से कोई पहल नही ली गयी तो छात्रों ने अनिश्चितकालीन अनशन पर बैठने का फ़ैसला लिया| हालाँकि यह फ़ैसला जल्दबाजी में लिया गया फ़ैसला था क्योंकि तब तक छात्रों ने सारे रास्ते नहीं तलाशे थे| भूख हड़ताल में 9 लोग शामिल थे, ‘दिशा छात्र संगठन’ की तरफ से भास्कर और रितेश भी इसमें शामिल रहे| भूख हड़ताल के करीब 5-6 दिनों बाद छात्रों की हालत गम्भीर होने पर भी विश्वविद्यालय कुलपति वाई.सी. सिम्हाद्री के कानों में जूं तक नही रेंगी| साफ़ तौर पर चन्द्रभूषण श्रीवास्तव को वि.वि. प्रशासन का मौन समर्थन प्राप्त था| कुलपति वाई.सी. सिम्हाद्री के कार्यकाल के दौरान उनके छात्र विरोधी रवैये से सभी वाकिफ़ हैं| जब अनशन से कोई परिणाम नहीं निकलता दिखा तो 21 मई को कला महाविद्यालय के छात्र कुलपति आवास पर अपनी माँगों को लेकर गये परन्तु वहाँ उलटे कुलपति ने अपने अंगरक्षक द्वारा छात्रों पर हवाई फ़ायर करवा दिये| इस घटना का विरोध करते हुए एवं अपनी माँगों को लेकर 31 मई को राजभवन तक छात्रों ने मार्च निकाला| छात्रों के एक प्रतिनिधिमण्डल से राजभवन के विशेष पदाधिकारी ने बातचीत के बाद इस मामले पर कार्रवाई करने का आश्वासन दिया परन्तु इस पर भी कोई कार्रवाई नहीं की गयी| इसी दौरान आन्दोलन के बीच में ही प्रशासन ने परीक्षा की तिथि घोषित कर दी| यह एक तरह से आन्दोलन को तोड़ने की कोशिश भी थी| छात्रों ने परीक्षा के बहिष्कार का फैसला किया और इसको लेकर जब छात्र परीक्षा का बहिष्कार करने परीक्षा भवन पहुँचे तब बिहार में सत्तासीन पार्टी जदयू के छात्र संगठन ‘छात्र समागम’ से जुड़े लोगों ने आन्दोलनकारी छात्रों के साथ मारपीट की जिसमें कई छात्र गंभीर रूप से घायल हुए और इस घटना के उपरान्त उल्टा आर्ट कॉलेज के ही 6 छात्रों पर झूठी एफ़.आई.आर. दायर कर दी और उन्हें हिरासत में ले लिया गया| आन्दोलन को महीने से ऊपर होने को था, राजभवन से लगातार वार्ता चल रही थी परन्तु अपनी समस्याओं का कोई हल न निकलता देख व सरकार एवं विश्वविद्यालय प्रशासन की बेरुखी से तंग आकर कॉलेज के एक दलित छात्र नितीश ने आत्महत्या करने का प्रयास किया| हालाँकि समय रहते उसे बचा लिया गया| गौतलब है कि नितीश के साथ पहले से ही प्राचार्य द्वारा घटिया व्यवहार किया जाता रहा है और इसके ख़िलाफ़ उसने शिकायत भी दर्ज करायी थी पर परिणाम शून्य|
लगभग डेढ़ महीने तक प्रशासन और मौजूदा नितीश सरकार चुप्पी साधे रहे और इनके द्वारा आन्दोलन को तोड़ने की कोशिशें होती रही पर छात्र अपनी माँगों को लेकर डटे रहे| आखिर में लगातार हो रहे प्रदर्शन के दबाव में अन्ततः वि.वि. प्रशासन ने निलम्बित छात्रों की अस्थाई वापसी व प्राचार्य को एक महीने की छुट्टी देने का फैसला किया है परन्तु अभी भी कॉलेज में स्थायी प्राचार्य की बहाली नहीं की गयी है| प्रभारी प्राचार्य के रूप में प्रोफेसर ‘अरूण कमल’ को नियुक्त किया गया है| साथ ही गिरफ़्तार छात्रों को भी बेल मिल चुकी है परन्तु छात्र अभी भी प्रभारी प्राचार्य चन्द्रभूषण श्रीवास्तव की पूर्ण बर्खास्तगी की माँग को लेकर डटे हुए हैं| इसी क्रम में इस मामले पर राज्य सरकार को घेरने के लिए विधानसभा तक प्रतिरोध मार्च निकाला गया| रिपोर्ट लिखे जाने तक संघर्ष जारी है| इस आन्दोलन के दौरान यह साफ़ देखने को मिला कि चुनावबाज पार्टियों के छात्र संगठनों के कारण आन्दोलन को किस कदर नुकसान होता है| आन्दोलन को अपने नेतृत्व में रखने के लिए इन तथाकथित ‘क्रान्तिकारी’ छात्र संगठनों ने छात्रों के हित को परे रखकर हर हथकण्डे का इस्तेमाल किया| डेढ़ महीने से ऊपर जब आन्दोलन खिंचा तो अन्त में आन्दोलन में शामिल छात्रों की संख्या भी बेहद कम होती गयी | यह देखते हुए भी कि कुल 200 छात्रों की संख्या में से मात्र 15-20 छात्र ही सक्रिय थे, तो भी आन्दोलन को खींचा गया| इस आन्दोलन से एक चीज़ स्पष्ट रूप से साबित हो गयी कि किस प्रकार अपना मतलब निकालने के लिए चुनावी पार्टियों के छात्र संगठन किसी भी आन्दोलन को ले डूबते हैं| यह साफ़ है कि हम चुनावी दलों के पिछलग्गू छात्र संगठनो पर निर्भर नहीं रह सकते| हमें अपना विकल्प खुद निर्मित करना होगा और छात्र राजनीति में एक ऐसा विकल्प खड़ा करना होगा जो किसी भी चुनावी पार्टी का पिछलग्गू छात्र संगठन न हो|
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान,मई-जून 2016
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