दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन के जुझारू संघर्ष ने झुकाया केजरीवाल सरकार को
दिल्ली में आई.सी.डी.एस. स्कीम के तहत काम कर रही आँगनवाड़ी वर्कर्स और हेल्पर्स के 23 दिन लम्बे चले जुझारू संघर्ष के आगे केजरीवाल सरकार को अपने घुटने टेकने पड़े। अपनी माँगों को लेकर 7 दिनों तक अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठे आँगनवाड़ी कर्मचारियों की सारी तात्कालिक माँगों को केजरीवाल सरकार को बिना किसी शर्त के मानने को मज़बूर होना पड़ा। आँगनवाड़ी कर्मचारियों को यह जीत दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एंड हेल्पर्स यूनियन के नेतृत्व में हासिल हुई। यह पूरा आन्दोलन 7 जुलाई से आँगनवाड़ी कर्मचारियों के स्वतःस्फूर्त विरोध के नतीजे से जन्मा था, 7 जुलाई से दिल्ली के सिविल लाइन्स स्थित अरविन्द केजरीवाल के आवास पर आँगनवाड़ी कर्मचारी अपने पिछले 8-9 महीनों के मानदेय का भुगतान न होने को लेकर लगातार प्रदर्शन कर रहे थे। मगर किसी भी आंदोलन को सही दिशा और गति देने का काम केवल एक क्रांतिकारी यूनियन ही कर सकती है और आँगनवाड़ी कर्मचारियों के संघर्ष को सही नेतृत्व देने का काम दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एंड हेल्पर्स यूनियन ने किया। आँगनबाडी के कर्मचारी लगातार 7 जुलाई से अरविन्द केजरीवाल के घर के बाहर प्रदर्शन कर रहे थे। पर न तो केजरीवाल सरकार ने आँगनवाड़ी की इन महिलाओं की परेशानियों को जानने की कोई कोशिश की और नहीं ही उनसे बात करने तक की ज़हमत उठाई। बिगुल मज़दूर दस्ता शुरूआत से ही आँगनवाड़ी कर्मचारियों के संघर्ष का समर्थन कर रहा था। स्वतःस्फूर्त खड़े हुए इस आन्दोलन में हिस्सा ले रहे आँगनवाड़ी कर्मचारियों के बीच से आँगनवाड़ी कर्मचारियों की अपनी क्रांतिकारी यूनियन का जन्म हुआ, जिसमें ट्रेड यूनियन जनवाद के सिद्धान्तों के तहत चुने हुए प्रतिनिधियों की एक कमिटी का गठन किया गया। इसके बाद इस पूरे आंदोलन को क्रांतिकारी चेतना के साथ आगे बढ़ाया गया। शुरूआती माँगों में आँगनवाड़ी के कर्मचारियों की माँग थी की उन्हें स्थायी किया जाए, उनकी आय की श्रेणी सुनिश्चित की जाए और प्रोहत्साहन राशि की बजाय आय दी जाए और इस आय का भुगतान हर महीने सुनिश्चित समय तक किया जाए साथ ही सभी कर्मचारियों को पहचान पत्र दिया जाए, शीतकालीन और ग्रीष्म कालीन अवकाश दिए जाए। अपनी इन्ही सभी माँगों को लेकर आँगनवाड़ी कर्मचारी अरविन्द केजरीवाल के घर के आगे प्रदर्शन कर रहे थे। मगर सरकार ने प्रदर्शनकर्मियों की मांगों की कोई सुध नहीं ली। अपनी बात को सरकार तक पहुँचाने के लिए आँगनवाड़ी कर्मचारियों ने 16 जुलाई को सिविल लाइन्स से लेकर विधान सभा तक एक चेतावनी रैली निकली और अगले दिन यानी 17 जुलाई को आँगनवाड़ी कर्मचारियों ने दिल्ली सचिवालय पर एक विशाल प्रदर्शन का आयोजन करके केजरीवाल सरकार को अपनी माँगों का ज्ञापन सौंपा। मगर इतने पर भी सरकार की तरफ से कोई कार्यवाही करना तो दूर आँगनवाड़ी कर्मचारियों को कोई आश्वासन तक नहीं दिया गया। लेकिन अपने संघर्ष को दृढ़ता से आगे बढ़ाते हुए आँगनवाड़ी कर्मचारियों ने 18 जुलाई से क्रमिक भूख हड़ताल पर बैठने का निर्णय लिया और साथ ही अपनी ताकत का सही आकलन लगाते हुए यूनियन और आँगनवाड़ी कर्मचारियों की आम सहमति से ये तय किया गया कि जब तक अपनी यूनियन का देशव्यापी विस्तार नहीं किया जाता और अपनी ताकत को और नहीं बढ़ाया जाता तब तक स्थायी कर्मचारी होने की माँग को मनवाने के लिए सरकार पर दबाव डालना मुश्किल होगा क्योंकि इसके लिए एक केन्द्रीय कानून में संशोधन की आवश्यकता होगी। यहीं से इस आंदोलन में स्थायी होने की दीर्घकालिक मांगों के साथ साथ तात्कालिक माँगें जोड़ दी गयीं जिनको लेकर हड़तालकर्मी क्रमिक भूख हड़ताल पर बैठे। यह क्रमिक भूख हड़ताल पूरे 5 दिन चली। इस दौरान पर्चे निकाल कर केवल आँगनवाड़ियों में ही नहीं बल्कि दिल्ली की आम जनता, विश्वविद्यालयों में पढ़ाने वाले अध्यापकों के बीच भी आँगनवाड़ी के कर्मचारियों के संघर्ष का समर्थन करने और उनके इस संघर्ष में हर सम्भव मदद करने की अपील भी की गयी। पर्चों और पोस्टरों के ज़रिये आँगनवाड़ी कर्मचारियों के संघर्ष को व्यापक जनता तक ले जाया गया। हर बीतते दिन के साथ हड़ताल स्थल यानी केजरीवाल के आवास के बाहर आँगनवाड़ी कर्मचारियों की संख्या बढ़ती जा रही थी मगर इस के बावजूद केजरीवाल सरकार ने हड़तालकर्मियों की कोई सुध नहीं ली। अपने संघर्ष को अगले चरण में लेकर जाते हुए और निर्णायक फैसला करते हुए 23 जुलाई से आँगनवाड़ी कर्मचारियों ने अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठने की घोषणा की। लगातार केजरीवाल सरकार तक अपनी बात पहुँचाने के लिए आँगनवाड़ी कर्मचारियों ने दिल्ली सचिवालय, विधान सभा से लेकर केजरीवाल के घर पर लगने वाले जनता दरबार तक में अपने ज्ञापन सौंपे। मगर जब हर जगह अपनी बात को लेकर जाने के बावजूद सरकार के उदासीन रवैये में कोई फ़र्क नहीं आया तब आँगनवाड़ी कर्मचारियों ने अपने जायज़ हक-अधिकारों को हासिल करने के लिए केजरीवाल के घर के आगे ही अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठना मुनासिब समझा। जैसे कि कोई भी लड़ाई या संघर्ष आसान नहीं होता उसी तरह इस आन्दोलन में भी आँगनवाड़ी कर्मचारियों को अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ा। सबसे पहला ख़तरा तो इस आंदोलन को भितरघातियों और सीटू, एसयूसीआई जैसे तमाम दलालों से था, जो लम्बी चल रही हड़ताल को तुड़वाने के लिए लगातार यूनियन के खि़लाफ़ कुत्साप्रचार कर रहे थे। ग़ौरतलब बात यह है कि आँगनवाड़ी कर्मचारियों की सबसे बड़ी यूनियन सीटू से सम्बद्ध है इसके बावजूद आंगनवाड़ी कर्मचारियों के संघर्ष को मज़बूत करने की बात करने की बजाय सीटू के दलालों ने आँगनवाड़ी कर्मचारियों से हड़ताल तोड़ने को कहा। सीटू के दलाल बार-बार कर्मचारियों के बीच जाकर हर साल 2 सितम्बर को होने वाली अपनी रस्मी कवायद के दिन प्रदर्शन करने की गुहार लगा रहे थे। इन दलालों ने आँगनवाड़ी कर्मचारियों को अपना मोहरा बना कर हड़ताल को तोड़ने की हर मुमकिन कोशिश की। लेकिन आँगनवाड़ी के कर्मचारियों ने इन तमाम विजातीय तत्वों को खदेड़ कर बाहर का रास्ता दिखा दिया। भरसक प्रयास करने के बाद भी इन दलालों और लफ्फ़ाजों की कोई चाल काम नहीं आई और आँगनवाड़ी कर्मचारियों ने इन्हे इनकी असली औकात दिखा कर बाहर कर दिया। वहीं दूसरी ओर हड़तालकर्मियों को परेशान करने और आंदोलन को कमज़ोर करने के लिए सरकार सुपरवाइज़रों और सीडीपीओ से लगातार दबाव बनवा रही थी कि अगर हड़ताल में शामिल होंगे तो नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा, अलग-अलग केन्द्रों पर पुलिस की धमकियों से लेकर तमाम तरह से दबाव कर्मचारियों पर बनाए जा रहे थे। हड़ताल स्थल पर शौचालय की व्यवस्था न करवाना, पानी के टैंकर को हटवा देने, तबियत बिगड़ने पर डॉक्टरी सहायता न पहुँचाने और पुलिस को भेज हड़तालकर्मियों के तम्बू को उखड़वाने जैसी तमाम कोशिशों के बावजूद न तो दलाल और न ही सरकार आँगनवाड़ी के संघर्ष को तोड़ पाये। आँगनवाड़ी कर्मचारियों ने अपनी परेशानियों को दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग के सामने भी रखा मगर नजीब जंग ने आँगनवाड़ी कर्मचारियों को सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग के सचिव से जाकर मिलने की सलाह दी। 7 दिन लम्बी चली अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल और जनता द्वारा पैदा किये गए दबाव के कारण केजरीवाल सरकार को आँगनवाड़ी कर्मचारियों के आगे घुटने टेकने पर मजबूर होना पड़ा। जो सरकार 22 दिनों से आँगनवाड़ी कर्मचारियों की माँगों को अनसुना कर रही थी उसी के मुखिया अरविन्द केजरीवाल ने खुद आँगनवाड़ी कर्मचारियों के एक प्रतिनिधि मंडल को 29 जुलाई को वार्ता के लिए आमंत्रित किया। यह वही सरकार थी जिसके महिला एवं बाल विकास विभाग के मंत्री संदीप कुमार और सेक्रेटरी आँगनवाड़ी कर्मचारियों से मिलने के लिए समय निकालने को तैयार नहीं थे मगर जनता की एकता और आँगनवाड़ी कर्मचारियों के जुझारू संघर्ष को देख कर न केवल संदीप कुमार आँगनवाड़ी कर्मचारियों से मिले बल्कि खुद अरविन्द केजरीवाल ने आँगनवाड़ी कर्मचारियों की सभी तात्कालिक मांगों को बिना किसी शर्त स्वीकार करते हुए उनके ज्ञापन व माँगपत्रक को स्वीकार करने पर लिखित सहमति देते हुए हस्ताक्षर किये। और साथ ही प्रतिनिधि मण्डल में मौजूद कर्मचारियों को यह भरोसा दिलाया की वह जल्द से जल्द सभी माँगों को लागू भी कर देंगे। अपनी शानदार जीत की खुशी मनाते हुए आँगनवाड़ी कर्मचारियों ने सिविल लाइन्स से विधान सभा तक एक शानदार विजय जुलूस निकाला जिसमे 3000 से भी ज़्यादा आँगनवाड़ी कर्मचारियों ने हिस्सा लिया। विजय जुलूस में आँगनवाड़ी कर्मचारियों ने ‘अपनी एकता ज़िन्दाबाद’ और ‘दिल्ली स्टेट आंगनवाड़ी वर्कर्स एंड हेल्पर्स यूनियन ज़िन्दाबाद’ के नारे लगाये। विजय जुलूस के बाद आँगनवाड़ी कर्मचारियों ने फिर से अपनी सभा सिविल लाइन्स पर आरम्भ की। सभा में तात्कालिक माँगों को माने जाने की जीत के मायनों और आगे के संघर्ष के बारे में बात की गयी। महिला एवं बाल विकास विभाग के मंत्री संदीप कुमार और डिप्टी डायरेक्टर सौम्या ने सभा में आकर आँगनवाड़ी कर्मचारियों से बात की और साथ ही वार्ता के बाद ड्राफ्ट किये गए आर्डर की एक कॉपी को दिल्ली स्टेट आंगनवाड़ी वर्कर्स एंड हेल्पर्स यूनियन के प्रतिनिधियों को सौंपा। दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एंड हेल्पर्स यूनियन की कानूनी सलाहकार शिवानी ने बताया कि अभी सरकार ने केवल हमारी तात्कालिक माँगें जिनमें पिछले 8-9 महीनों के बकाये मानदेय के तुरन्त भुगतान, पहचान पत्र देने, हर महीने की 10 तारीख तक भुगतान करने, सबला स्कीम के भत्ते के भुगतान और बीमा की माँगें मानी है। और साथ ही वेतन बढ़ोतरी की बात भी अरविन्द केजरीवाल ने कही है। शिवानी ने कहा की अपनी दीर्घकालिक माँगों जैसे कि सरकारी कर्मचारी का दर्ज़ा पाने, न्यूनतम वेतन, ईएसआई व पीएफ आदि के लिए आँगनवाड़ी कर्मचारी अपना संघर्ष जारी रखेंगे। मगर जैसा तमाम सरकारें करती है वैसा ही कुछ केजरीवाल सरकार ने भी किया 3 दिन का समय बीत जाने के बाद भी सभी कर्मचारियों के बकाये वेतन का भुगतान नहीं किया गया जिसके चलते 9 अगस्त को जंतर मंतर पर दिल्ली स्टेट आंगनवाड़ी वर्कर्स एंड हेल्पर्स यूनियन ने सभी आंगनवाड़ी कर्मचारियों की एक आम सभा बुलाकर फिर से सरकार पर दबाव बनाने और आगे की रणनीति पर बातचीत की। आंगनवाड़ी कर्मचारियों ने 16 अगस्त को फिर से जंतर मंतर पर अपना महाजुटान आयोजित कर केजरीवाल सरकार से उनके द्वारा स्वीकार की गयी तात्कालिक माँगों को जल्द से जल्द पूरा करने की माँग की। इस सभा में करीब साढ़े तीन हज़ार आँगनवाड़ी कर्मचारी एकत्र हुए। नतीजतन, केजरीवाल सरकार ने सारा वेतन बकाया भुगतान कर दिया है। मगर सबला स्कीम के बकाये के भुगतान की लड़ाई अभी जारी है।
साथ ही यूनियन की सदस्यता का विस्तार भी किया जा रहा है, मात्र 2 हफ्तों के भीतर 2500 लोगों ने यूनियन की सदस्यता हासिल की है। दिल्ली स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स एंड हेल्पर्स यूनियन आँगनवाड़ी कर्मचारियों के जायज़ हकों के लिए संघर्षरत है। अपनी इस जीत से आँगनवाड़ी कर्मचारियों में उत्साह और जोश है और सभी अपनी दीर्घकालिक माँगों को मनवाने के लिए संघर्ष करने के लिए तत्पर हैं।
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, मई-अक्टूबर 2015
'आह्वान' की सदस्यता लें!
आर्थिक सहयोग भी करें!