‘पोलेमिक’ द्वारा मारूति मज़दूरों के संघर्ष पर व्याख्यान
दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों द्वारा गठित ‘पोलेमिक’ द्वारा दिल्ली यूनीवर्सिटी के स्टूडेण्ट ऐक्टीविटी सेन्टर में “मारूति वर्कर्स स्ट्रगलः व्हाट वेण्ट रांग विषय पर बातचीत की गई। ज्ञात हो कि मारूति के मज़दूरों का संघर्ष इस साल मध्य में शुरू होकर लगभग ढाई महीने चला था। मज़दूरों की मुख्य माँग स्वतंत्र मज़दूर यूनियन बनाना था। यह संघर्ष अन्त में विफल रहा। मज़दूरों के नेतृत्व दे रहे मजदूर नेताओं ने लाखों रुपये लेकर मज़दूरों की पीठ में छूरा भोंका। मुख्य वक्ता के तौर पर बिगुल मजदूर दस्ता के सत्यम वर्मा ने, जो कि मज़दूरों के इस संघर्ष में उपस्थित रहे थे, विस्तृत विवरण रख संघर्ष में लगे मज़दूरों की स्थिति बतायी। बिगुल मजदूर दस्ता मारूति मजदूरों की हड़ताल के दौरान सक्रिय रूप से भागीदारी करते हुये पर्चे व नुक्कड़ सभाएँ कर मज़दूरों में अपनी बात ले जा रहा था। सत्यम ने कहा कि संघर्षो में मजदूरों के जुझारूपन तथा स्वतः स्फूर्तता का बुद्धिजीवी, मज़दूर कार्यकर्त्ताओं तथा खुद कई मजदूर संगठनों द्वारा गैर-आलोचनात्मक जश्न मनाया जा रहा था। इस बात को एक सकारात्मक के तौर पर पेश किया जा रहा था कि इस आन्दोलन में कोई राजनीतिक नेतृत्व मौजूद नहीं है। अराजकतावाद, अराजकतावादी संघाधिपत्यवाद तथा अर्थवाद के चुंगल में फँसकर पहले भी मज़दूर आन्दोलन अन्धी गलियों में भटकता रहा है। अब जबकि एक सूझबूझ वाले राजनीतिक नेतृत्व के अभाव में यह आन्दोलन असफल हो गया है तो तात्कालिक फ़ायदा उठाने के लिए पहुँची सारी ट्रेड यूनियनें और मज़दूर संगठन ग़ायब हैं और कोई इस बात का समाहार नहीं कर रहा है कि असफलता के कारण क्या रहे? यही सही वक्त है जबकि यह समझा जाय कि मज़दूर आन्दोलन को आज एक क्रान्तिकारी विचारधारा और राजनीतिक नेतृत्व की ज़रूरत है। बातचीत के दौरान करीब 40 छात्र, अध्यापक व कई मज़दूर कार्यकर्ता मौजूद थे। सत्यम ने चर्चा सत्र में कई मुद्दों पर लोगों के सवालों के जवाब दिये। इस बातचीत में पी.यू.डी.आर के परमजीत सिंह, दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स के अनिर्बन, कॉरेसपोन्डेन्स के परेश व साहिल व अन्य संगठन के लोगों ने भी हिस्सा लिया।
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, नवम्बर-दिसम्बर 2011
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