दलाली और परोपकार का धन्धा

नवीन, दिल्ली

करोड़पति बनने की सबसे पुरानी और बेहतरीन कला है, एक सर्वव्यापी, सबकी रक्षा करने वाला, सबको सुख, शान्ति और समृद्धि (तरक्की) देने वाले उस दयालु ईश्वर से मिलाने के काम में बिचौलिये और दलाल का धंधा करना! ज़ाहिर सी बात है सभी मनुष्यों को सुख-समृद्धी (तरक्की) और शान्ति चाहिए और अगर कोई कुछ फीस लेकर यह काम करता है तब तो यह एक तरह से परोपकारी धंधेवाला व्यक्ति हुआ! परोपकार के इस धन्धे में सदियों से साधु-सन्त, पंडित, मौलवी, पादरी, और बाबा लगे हुए हैं और दिन-दुगुनी रात-चौगुनी तरक्की भी कर रहे हैं।

sai babaइस धंधे की अभूतपूर्व तरक्की का एक प्रत्यक्ष उदाहरण है सत्य साईं बाबा के निजी कक्ष में मिला अपार सम्पत्ति का भण्डार जिसमें 98 किलो सोना, 307 किलो चाँदी, 11.5 करोड़ रुपये नकद तथा अनेकों हीरे-जवाहरात शामिल हैं। कुछ दिन बाद पुनः 76 लाख के गहने, 56.96 लाख रुपये का चांदी, 15.83 लाख रुपये का सोना अन्य आभूषण मिले। इसके कुछ दिन बाद केरल के पद्मनाभ मंदिर में अपार धन का खजाना मिला। अनुमानतः 5 लाख करोड़ की सम्पत्ति का आकलन है। वैष्णो देवी मन्दिर की आय भी रोजाना 40 करोड़ है। शिरडी साईं बाबा (महाराष्ट्र) के मन्दिर की प्रतिदिन की आय 60 लाख रुपये है। सिद्धी विनायक मन्दिर (मुम्बई) की सालाना आय 48 करोड़ है। गुजरात के अक्षरधाम मंदिर की वार्षिक आय 50 लाख रुपये मानी जाती है। इस तरह भारत में लाखों की संख्या में मन्दिर, मस्जिद, मठ और गुरुद्वारा हैं जिसके पास काले धन का अम्बार है जो शायद विदेशों में जमा काले धन से भी ज्यादा है।

इस धन्धे में सफल आय का मूल मंत्र है अव्वल दर्जे का धूर्त, पाखंडी, लालची और नौटंकीबाज होना। अगर आप लोकल स्तर पर यह काम करते है तो अंगूठा टेक भी चल जाएगा लेकिन अगर धन्धे को देश-विदेश में विस्तारित करना चाहते है तो पढ़ा लिखा होना ज़रूरी है। लेकिन कुछ ऐसे भी अंगूठा टेक हैं जिन्होंने ‘‘कड़ी मेहनत’’ से अपना धन्धा विदेशों मे भी फैलाया है। भारत में इस क्षेत्र में पांच, छः बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ हैं जो लम्बे समय से स्थापित हैं जिसकी करोड़ों शाखा और उपशाखाएं देश के छोटे गाँवों से लेकर बड़े शहरों तक व्याप्त है।

इन कम्पनियों में प्रमुख नाम हिन्दू धर्म, मुस्लिम धर्म, इसाई धर्म, जैन धर्म, सिख धर्म, बौद्ध धर्म आदि हैं। इन कम्पनियों की छोटी से बड़ी दुकान मन्दिरों, मस्जिदों, चर्च, मठों आदि के रूप में चप्पे-चप्पे में है जहाँ जनता को सर्वशक्तिमान शक्ति के दर्शन और सुख-शक्ति तक पहुँचाने की दलाली का काम करना होता है। छोटे स्तर के मन्दिरों, मस्जिदों आदि में काम करने के लिए दो-चार धर्म की किताबें, नहीं तो, वहाँ पर होने वाले दैनिक क्रिया-कलाप को सीख लें तो नौकरी लग जाती है। और रहने-खाने के साथ कमाने का इन्तजाम होता है। यहाँ वंशवाद के साथ-साथ धार्मिक अध्ययन और धन्नासेठों से साठगांठ के आधार पर लाखों-करोड़ों की कमाई है। यहाँ पर नौकरी पाना थोड़ा कठिन है लेकिन मुश्किल नहीं । यहाँ पर सभी तरह के हथकंडे अपनाने पड़ते हैं जैसे कि नेता लोग चुनाव जीतने के लिए करते हैं-धर्म, जाति, वंशवाद, ढ़ोंग, नौटकी, अपहरण, हत्या कुछ भी। आखिर लाखों-करोड़ों का सवाल है!

इसके अलावा स्वतंत्र रूप से काम करते हुए कोई व्यक्ति करोड़पति बन सकता है। स्वतंत्र रूप से काम जमाने के लिए थोड़ा समाज सुधार, परोपकार, पर्यावरण बचाव, योगा आदि-आदि की बात करते हुए अपना धंधा सेट कर सकता है। स्वतंत्र रूप से धंधा चलाने के लिए अव्वल दर्जे का धूर्त, लालची, नौटंकीबाज और अच्छा वक्ता होना चाहिए। इसमें भी अलग-अलग स्तर है जो विभिन्न वर्गों, समुदायों, क्षेत्रों में अपना प्रचार-प्रसार करते हैं। कुछ उदाहरण से बाते और स्पष्ट हो जायेगी जैसे श्री-श्री रविशंकर जिनका आधार भारत के उच्चमध्यवर्ग में है जिनको ये ‘आर्ट ऑफ लिविंग’ सिखाने के लिए 6000 रुपये से लेकर लाखों की फीस लेते हैं। ये कभी यमुना सफाई अभियान तो कभी कोई और सुधार काम करते रहते हैं। आसाराम बापू, आशुतोष महाराज, डेरा सच्चा सौदा, प्रजापति बह्मकुमारी जैसे लोगों का आधार निम्न मध्यवर्ग और अर्द्धसर्वहारा आबादी में होता है। ये समाज सुधार की थोड़ी नौटंकी और अलग-अलग किस्म से भक्ति संगीत करते रहते है। इनके आलावा बाबा रामदेव, निंरकारी जैसे लोग भी हैं जिनका मध्यवर्ग में ज्यादा आधार है। ये भी योगा सिखाने, दवाइयाँ बेचने, भण्डारा कराना, परोपकार का कुछ काम करते रहते हैं। दक्षिण भारत में अम्मा, सत्य साईं बाबा जैसे लोग का ज्यादा आधार है।

स्वतंत्र रूप से स्थापित ये परोपकारी बाबा और ईश्वर के दलाल करोड़ों के मालिक बन गए है और कोई काला धन वापस लाने की बात कर रहा है तो कोई भ्रष्टाचार मिटाने के लिए अन्ना हजारे के शो में फोटा खिंचवा रहा हैं। ये धन्धेबाज बाबा कभी भी मन्दिरों, मठों व अन्य धार्मिक स्थलों में छुपे हजारों-अरबों के काले धन के बारे में चूँ तक नहीं करते।

 

मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, जुलाई-अगस्‍त 2011

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