जनचेतना द्वारा क्रान्तिकारी, प्रगतिशील साहित्य की पुस्तक प्रदर्शनी

जनचेतना सचल वाहन की 70 दिन की पुस्तक प्रदर्शनी 6 जनवरी से 17 मार्च तक दिलशाद गार्डन तथा दिल्ली विश्वविद्यालय (आर्ट्स फ़ैकल्टी, हिन्दू कालेज, रामजस कालेज, स्कूल आफ़ बिजनस, सत्यवती कालेज, श्रदानन्द कालेज आदि तमाम कालेजों, हास्टलों तथा उससे सटे तमाम आवासीय परिसरों और बाज़ारों) में लगाई गई। फ़िलहाल यह प्रदर्शनी दिल्ली के रोहिणी, बादली आदि इलाकों में जारी है।

दिल्ली विश्वविद्यालय और दिलशाद गार्डन इलाके में जारी प्रदर्शनी के दौरान जनचेतना सचल प्रदर्शनी वाहन पर ‘दिशा छात्र संगठन’ और ‘नौजवान भारत सभा’ के वालंटियर मौजूद थे। ये कार्यकर्ता वहाँ आने वाले नौजवानों और नागरिकों को जनचेतना की पूरी सांस्कृतिक-वैचारिक मुहिम से अवगत करा रहे थे और बता रहे थे आज के समय में जनता के इंकलाबी आन्दोलनों को खड़ा करने के लिए एक क्रान्तिकारी संस्कृति और क्रान्तिकारी वैकल्पिक मीडिया को खड़ा करना बेहद ज़रूरी है। सभी मीडिया घराने, चैनल, अखबार आदि किसी न किसी पूँजीपति घराने या कारपोरेट घराने के हाथ में हैं जो उसी संस्कृति और ख़बरों को लोगों तक पहुँचाते हैं जिसमें उनका हित होता है। यही कारण है कि मीडिया तर्क, वैज्ञानिकता, संवेदनशीलता आदि का माध्यम होने की बजाय खाऊ-पिऊ संस्कृति, अन्धविश्वास, ढकोसले, अमीरों की संस्कृति और गलाजत के प्रचार-प्रसार का जरिया बना हुआ है। बच्चों और नौजवानों की पूरी की पूरी पीढ़ियों की मानसिकता और संस्कृति को सांस्कृतिक-वैचारिक कचरा दूषित कर रहा है। ऐसे में एक वैकल्पिक क्रान्तिकारी संस्कृति की मुहिम के तौर पर जनचेतना देश के अलग-अलग हिस्सों में पुस्तक प्रदर्शनियाँ लगाता रहा है। इस प्रदर्शनी में न सिर्फ़ पूँजीवादी मीडिया की सच्चाई को उजागर किया गया बल्कि एक वैकल्पिक संस्कृति की मिसाल भी पेश की गई।

प्रदर्शनी में भगतसिंह, राहुल सांकृत्यायन, राधा मोहन गोकुलजी, प्रेमचन्द, आदि जैसे प्रखर भारतीय चिन्तकों, विचारकों, साहित्यकारों की रचनाएँ मौजूद थीं तो वहीं विश्व भर के प्रसिद्ध क्रान्तिकारियों और चिन्तकों की रचनाएँ भी मौजूद थीं, जैसे, कार्ल मार्क्स, एंगेल्स, लेनिन, स्तालिन, माओ, क्रोपॉटकिन, लिओ तोलस्तोय, गोर्की, चेखव, तुर्गनेव, दोस्तोयेव्स्की, अप्टन सिंक्लेयर, हावर्ड फ़ास्ट, आदि। इन पुस्तकों के अतिरिक्त वहाँ क्रान्तिकारी विचारों के प्रचार-प्रसार के लिए तमाम अखबार और पत्र-पत्रिकाएँ मौजूद थीं, जैसे, ‘मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान’, ‘नई समाजवादी क्रान्ति का उद्घोषक बिगुल’, ‘दायित्वबोध’, ‘सृजन परिप्रेक्ष्य’ पंजाबी पत्रिकाएँ ‘ललकार’ व ‘प्रतिबद्ध’, अंग्रेज़ी पत्रिका ‘प्रैक्सिस कलोकियम’, आदि। इसके अलावा वहाँ क्रान्तिकारी गीतों का कैसेट ‘उजाले के दरीचे’ भी मौजूद था।

दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रदर्शनी के दौरान धर्मध्वजाधारी संघी भगवा ब्रिगेड ने एक बार फ़िर अपनी नस्ल दिखाई और क्रान्तिकारी विचारों के प्रचार-प्रसार की इस मुहिम पर हमला किया। ज्ञात हो कि जनचेतना की प्रदर्शनियों पर संघी गुण्डे पहले भी मेरठ, गाज़ियाबाद आदि में हमला कर चुके हैं। दिल्ली में होने वाला हमला उनका नवीनतम हमला था जिसमें उनके छात्र विंग अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के गुण्डे अपने प्रादेशिक नेता के नेतृत्व में आए थे। लेकिन यहाँ दिशा छात्र संगठन के वालंटियरों ने उनका मुँहतोड़ जवाब दिया और इन हमलावरों को वहाँ से मारकर खदेड़ दिया। इससे पता चलता है कि फ़ासीवादी गिरोह सिर्फ़ झुण्ड में पौरुष दिखला सकते हैं और वह भी कमज़ोर लोगों पर। जहाँ भी इंकलाबी नौजवान सीना तानकर उनके सामने टिक गये, वहाँ वे दुम दबाकर भाग खड़े होते हैं। इसके बाद कैम्पस के भीतर जनचेतना की पुस्तक प्रदर्शनी लगातार ठाठ से लगी और अपने समय को पूरा करने के बाद ही वहाँ से रवाना हुई।

मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, अप्रैल-जून 2009

 

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