सत्यम कम्पनी के घोटाले पर अचरज कैसा?

सत्यप्रकाश

मारियो पूज़ो ने अपने प्रसिद्ध उपन्यास ‘गॉडफ़ादर’ में प्रसिद्ध महान फ्रांसीसी उपन्यासकार बाल्ज़ाक को उद्धृत करते हुए लिखा था-“हर सम्पत्ति साम्राज्य की बुनियाद में अपराध होता है।” उससे भी पहले फ्रांसीसी दार्शनिक प्रूधों ने कहा था-“सम्पत्ति चोरी है!” पहले ये सारी अभिव्यक्तियाँ ख़ारिज तो नहीं की जाती थीं लेकिन उन्हें साहित्यिक अभिव्यक्तियाँ माना जाता था। लेकिन पूँजीवाद के नंगे होते जाने के साथ तो यह एक शाब्दिक यथार्थ बनता जा रहा है। अपने बुढ़ापे और मृत्यु की तरफ़ बढ़ती पूँजीवादी दुनिया एकदम स्ट्रिप्टीज़ पर आमादा है!

M_Id_56265_satyamबाल्ज़ाक और प्रूधों की अभिव्यक्तियों को देश की सबसे बड़ी आई.टी. कम्पनी सत्यम ने चरितार्थ कर दिया। नये साल की शुरुआत में सत्यम कम्प्यूटर्स नाम की देश की सबसे बड़ी आई.टी. कम्पनी के प्रमुख रामलिंगम राजू द्वारा किये गये 7,000 करोड़ रुपये के घोटाले ने मन्दी से डगमगाती भारतीय अथर्व्यवस्था को तगड़ा झटका दिया है। सत्यम कम्प्यूटर्स उन्हीं कम्पनियों में से एक हैं जो एक वास्तविक उत्पादन से अलग, गैर-उत्पादक गतिविधियों के विराट कारोबार से बेहिसाब कमाई करती रही है। आज के पूँजीवाद का तीन–चौथाई से भी ज्यादा हिस्सा शेयर बाज़ार, बैंकिंग, बीमा जैसी वित्तीय गतिविधियों, मीडिया, मनोरंजन और तमाम किस्म की सेवाओं के कारोबार से चलता है। सत्यम, इन्फ़ोसिस, विप्रो जैसी आईटी या साफ्टवेयर कम्पनियों के कारोबार का बड़ा हिस्सा भी इन्हीं गैर-उत्पादक गतिविधियों के लिए होता है जो दुनिया की वास्तविक सम्पदा में कुछ भी इजाफ़ा नहीं करते।

वैसे तो पूँजीवाद ख़ुद ही एक बहुत बड़ी डाकेजनी के सिवा कुछ नहीं है लेकिन मुनाफ़ा कमाने की अन्धी हवस में तमाम पूँजीपति अपने ही बनाये कानूनों को तोड़ते रहते हैं। यूरोप से लेकर अमेरिका तक ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं जो बिल्कुल साफ़ कर देते हैं पूँजीवाद में कोई पाक-साफ़ होड़ नहीं होती। शेयरधारकों को खरीदने-फ़ँसाने, प्रतिस्पर्धी कम्पनियों की जासूसी कराने, रिश्वत खिलाने, हिसाब-किताब में गड़बड़ी करने जैसी चीजें साम्राज्यवाद के शुरुआती दिनों से ही चलती रही हैं। सत्यम ने बहीखातों में फ़र्जीवाड़ा करके साल-दर-साल मुनाफ़ा ज्यादा दिखाने और शेयरधारकों को उल्लू बनाने की जो तिकड़म की है वह तो पूँजीवादी दुनिया में चलने वाला एक छोटा-सा फ्रॉड है। राजू पकड़ा गया तो वह चोर है – लेकिन ऐसा करने वाले दर्जनों दूसरे पूँजीपति आज भी कारपोरेट जगत के बादशाह और मीडिया की आँखों के तारे बने हुए हैं।

सत्यम कम्पनी के घोटाले में जितनी बातें सामने आयीं हैं वह तो पानी में तैरते विशाल हिमखण्ड का ऊपर दिखने वाला छोटा-सा हिस्सा भर है। इसकी सारी परतें तो सरकार भी उजागर नहीं करेगी। अगर ये पूरा घोटाला सामने आ गया तो वित्त का सारा हवाई कारोबार ही चरमराकर बैठ जायेगा। कारोबार की थोड़ी भी समझ रखने वाला कोई आदमी भी इतना तो समझ ही सकता है कि इतना बड़ा गोरखधन्धा दो-चार व्यक्तियों का खेल नहीं हो सकता। आँकड़ों की हेराफ़ेरी, सरकारी अधिकारियों-मंत्रियों आदि को मोटी घूस खिलाने से लेकर हर तरह के छल-छद्म का इस्तेमाल करके ही सत्यम कम्प्यूटर्स ने चन्द-एक सालों में दुनिया भर में दसियों हजार करोड़ का कारोबार फ़ैला दिया। आन्ध्र प्रदेश के भूतपूर्व मुख्यमंत्री चन्द्रबाबू नायडू और उनके धुर विरोधी वर्तमान मुख्यमंत्री वाई. राजशेखर रेड्डी दोनों से राजू के बहुत करीबी सम्बन्ध हैं जिसका वह जमकर फ़ायदा उठाता रहा है। फ़िर भी पूरे मामले को इस तरह पेश किया जा रहा है जैसे ये एक “बिगड़े हुए” आदमी की गलतियों का नतीजा है। बार-बार यह बताया जा रहा है कि ये तो महज एक भटकाव है। कानून को सख्ती से कार्रवाई करनी चाहिए ताकि दुनिया को यह पता लगे कि सारी कम्पनियाँ ऐसी ही नहीं हैं… वगैरह-वगैरह।

सत्यम कम्पनी और राजू ने जो कुछ किया उसमें कुछ भी अप्रत्याशित और चौंकाने वाला नहीं है। चन्द एक वर्षों में बेशुमार मुनाफ़ा कमाने वाली ज़्यादातर कम्पनियों की अन्दर की कहानी ऐसी ही है। सरकार से लेकर मीडिया तक इनका चेहरा चमकाने और इन्हें “चमकते भारत” के ‘आइकन’ बनाकर पेश करने में लगे रहते हैं। पूँजीवाद के अपने अन्दरूनी टकरावों की वजह से कभी-कभी इनमें से कुछ की असलियत सामने आ जाती है। कल तक जो राजू मीडिया का दुलारा और बिजनेस स्कूलों का मॉडल था वह रातों-रात खलनायक बन जाता है और गर्दन पकड़कर जेल की सलाखों के पीछे धकेल दिया जाता है। पूँजीवाद के नायक स्थायी नहीं हुआ करते। आज जो जगमगाते सितारे हैं कल वे गन्दगी के ढेर में पड़े दिखायी देते हैं।

मध्यवर्ग का एक भारी हिस्सा सत्यम कम्पनी के घोटाले पर हाय-तौबा मचा रहा है। ये वे लोग हैं जो पूँजीवाद की बहती गंगा में डुबकी तो मारना चाहते हैं लेकिन उसमें बहते मैले से छू जाने पर छी-छी करने लगते हैं। बिना कुछ किये शेयर बाज़ार में मुनाफ़ा कमाने की टुच्ची हवस में जब तक इन्हें कमाई होती रहती है तब तक ये पूँजी और बाज़ार की महिमा गाते रहते हैं लेकिन जैसे ही किसी घपले-घोटाले में इनकी पूँजी डूबती है तो ये कांय-कांय चिल्लाने लगते हैं। पूँजीवाद की अन्धी दौड़ में घुसे छुटभैयों के साथ ऐसा अक्सर ही होता रहता है। मन्दी के दौर में ऐसी घटनाएँ और बढ़नी ही हैं। इनकी बस खिल्ली ही उड़ायी जा सकती है। ये तथाकथित “छोटे निवेशक” सहानुभूति नहीं नफ़रत के हकदार हैं!

ऐसी घटनाएँ बुर्जुआ न्याय के असली वर्ग चरित्र को भी नंगा कर देती हैं। हजारों करोड़ का चूना लगाने वाले राजू और उसके अपराध में भागीदार लोगों को कोई तकलीफ़ न हो, इसका ख्याल पुलिस भी रख रही है, उनकी पैरवी के लिए वकीलों की पूरी फ़ौज खड़ी हो जायेगी और हो सकता है कि कुछ सज़ा और कुछ जुर्माने के बाद वे बच भी जायें। उनकी अरबों की सम्पत्ति तो बनी ही रहेगी। दूसरी ओर अगर अपने बच्चों को भूख और बीमारी से बचाने के लिए कोई गरीब दस रुपये की भी चोरी कर ले तो उसे पीट-पीटकर सड़क पर ही मार डाला जायेगा या फ़ौरन जेल के सीखचों में कैद कर दिया जायेगा।

 

मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, जनवरी-मार्च 2009

 

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