दिल्ली में नगर निगम चुनावों पर नौजवान भारत सभा द्वारा भण्डाफ़ोड़ अभियान और पर्चा श्रृंखला
अप्रैल में दिल्ली में नगर निगम चुनाव हुए। इसमें एक बारगी सभी चुनावबाज़ नंगे होकर सड़क पर दौड़ पड़े। लेकिन अपनी चालाकी से और धूर्तता से जनता के एक हिस्से को बेवकूफ़ बनाने में वे हर बार ही सफ़ल हो जाते हैं। इस बार मतदाताओं के केवल 48 प्रतिशत हिस्से ने ही वोट डाले। लेकिन चुनाबाज़ मदारियों से किसी बुनियादी बदलाव की उम्मीद तो उन्हें भी नहीं है जो वोट डालने गये।
इस बार के चुनावों के दौरान नौजवान भारत सभा ने सभी चुनावबाज़ों के बारे में किसी भी बचे-खुचे भ्रम को नोचकर फ़ेंक देने के लिए एक भण्डाफ़ोड़ अभियान चलाया। इस अभियान के दौरान चौराहों, नुक्कड़ों पर सभा करके सभी चुनावबाज़ मदारियों का कच्चा-चिट्ठा खोला गया। उनके पास आने वाले फ़ण्डों से जनता को अवगत कराया गया और उनकी धाँधलियों पर से पर्दा उठाया। इसके अलावा घर-घर जाकर नौजवान भारत सभा के कार्यकर्ताओं ने लोगों को इस बात पर सहमत करने का काम किया कि अब चुनावी राजनीति के सारे छल-छद्म उजागर हो चुके हैं और अब और इन्तज़ार करने का कोई तुक नहीं बनता। आज की ज़रूरत है क्रान्तिकारी संगठनों का एक व्यापक ताना-बाना खड़ा करके एक देशव्यापी क्रान्तिकारी पार्टी का निर्माण।
इस दौरान पर्चों की एक श्रृंखला निकाली गयी। इसमें पहला पर्चा था ‘एक कहानी’। इसमें जनता को एक ऋषि और चूहे की कहानी सुनाई गयी। इसमें चूहा ऋषि की दया और आशीर्वाद से पहले बिल्ली, फ़िर कुत्ता और फ़िर शेर बन जाता है। शेर बनने के बाद जब वह ऋषि को खाने के लिए ही लपकता है तो ऋषि उसे श्राप देकर कहते हैं ‘पुनर्मूषकोभव’! यानी फ़िर से चूहा बन जाओ। इसके बाद बताया गया कि इस कहानी में ऋषि जनता है और चूहा आज के भ्रष्टाचारी अपराधी नेतागण। आज ये नेता जनता के बल पर ही ‘शेर’ बने फ़िर रहे हैं। अब जब भी वे वोट माँगने आएँ तो उन्हें बस इतना कह दिया जाय-‘पुनर्मूषकोभव’! दिलचस्प बात यह रही कि कई चुनावी जुलूसों के दौरान इस पर्चे को पढ़ने वाले कुछ नौजवान छतों और गलियों से चिल्ला उठते थे-पुनर्मूषकोभव! इस अभियान का काफ़ी व्यापक प्रभाव गया और करावलनगर आदि क्षेत्रों में जनता ने इस पर काफ़ी सकारात्मक प्रतिक्रिया दी।
इसके बाद पर्चा श्रृंखला का दूसरा पर्चा निकला जिसमें चुनाव में होने वाले पूरे ख़र्च, पार्षद के पास आने वाले पूरे फ़ण्ड और विकास निधि और साथ ही अन्य ख़र्च का ब्यौरा था। इसमें साफ़ दिखलाया गया था कि तमाम चुनावी पार्टियों के लग्गू-भग्गू किस तरह से भ्रष्टाचार और जालसाज़ी करते हैं। पर्चे में उनसे सार्वजनिक ऑडिट कराने की माँग की गयी थी। इस पर्चे का प्रभाव और भी व्यापक रहा। जनता के एक बड़े हिस्से ने नेताओं और भ्रष्टाचारियों की निन्दा की और नौजवान भारत सभा के इस प्रयास की भूरि-भूरि प्रशंसा की। नौजवानों ने बड़ी संख्या में इस भण्डाफ़ोड़ अभियान में हिस्सा लिया।
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, जुलाई-सितम्बर 2007
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