आतंकवादी हिन्दू नहीं संघ है

ज्ञानेन्द्र, दिल्ली

पिछले दिनों हमारे संघ ने कहा और अकसर कहता ही रहता है कि हिन्दू आतंकवादी नहीं हो सकता। सही फरमाया संघ ने, पर बात ज़रा अधूरी और अस्पष्ट कही। इस नरो वा कुंजरो की भाषा को स्पष्ट करने की आवश्यकता महसूस हो रही है। मैं माननीय संघ से अनुरोध करता हूँ कि कृपा करके निम्न बिन्दुओं को स्पष्ट करने की कृपा करें।

सबसे पहला सवाल तो यही है कि हिन्दू से आपका आशय क्या है? अगर आपका आशय उन करोड़ों लोगों से है जो खेतों, खदानों, कारख़ानों, कार्यालयों में रात-दिन पसीना बहाकर अपनी रोटी का जुगाड़ करते हैं तो आपका उक्त कथन बिलकुल सत्य है। वाकई इनमें से किसी ने भी समझौता एक्सप्रेस में बम विस्फोट के बारे में कभी भी नहीं सोचा। भण्डारकर संस्थान को जलाने या किसी इंसान को ज़िन्दा आग में झोंक देने के बारे में भी कभी नहीं सोचा। इनमें से किसी ने अजमेर शरीफ दरगाह में बम विस्फोट कर हिन्दुओं को वहाँ न जाने का आतंक पैदा करने के बारे में भी कभी नहीं सोचा। क्योंकि यह हिन्दू समुदाय सबसे अधिक देशभक्त और शान्तिपूर्ण है। इन सब कायरतापूर्ण घिनौने कार्यों के बारे में तो आप संघी ही सोच सकते और कर सकते हैं, कोई सामान्य हिन्दू तो कदापि नहीं।

आगरा, बजरंग दल के कार्यकर्ता 2008 के दशहरे की पूजा के दौरान

परन्तु तब भी आपका कथन अधूरा है, और आप अर्धसत्य कह रहे हैं। क्योंकि इस मेहनतकश समुदाय के सिर्फ हिन्दू ही नहीं बल्कि सभी धर्मावलम्बी सबसे अधिक देशभक्त और शान्तिपूर्ण हैं। लोकतन्त्र, समानता और भाईचारा के भाव से उनका कोई बैर नहीं है। उनके लिए सभी सर्वप्रथम मानव हैं उनके सभी दुःख-दर्द समस्याएँ साझा हैं, जब तक कि आपका विषैला प्रचार इनके दिमाग़ों को विषाक्त न कर दे।

और अगर हिन्दू से आपका आशय संघ और उसके अनुषांगिक संगठनों, शिवसेना, बजरंगदल आदि से है तो मुझे आश्चर्य है कि आप झूठ क्यों बोल रहे हैं, क्या आप भी किसी से डरते हैं?

ऊपर के पैरा में लिखित घटनाएँ क्या आपके द्वारा अंजाम नहीं दी गयीं? असीमानन्द, सुनील जोशी जैसे आपके समर्पित और कर्मठ कार्यकर्ता आदि झूठे बयान दे रहे हैं? ऊपर लिखित घटनाएँ यदि असत्य या काल्पनिक हों या उनमें आप की भागीदारी न हो तो कृपया जन-सामान्य को सूचित करने की कृपा करें। क्योंकि उक्त घटनाओं का मैं साक्षी तो हूं नहीं, समाचार माध्यमों से ही उक्त को जान सका हूँ तो हो सकता है कि वे झूठी हों। किसी साजिश के तहत आपके ख़िलाफ उक्त समाचारों को गढ़ा गया हो।

मैंने तो पढ़ा है कि लश्कर-ए-तैयबा, जे.के.एल.एफ., हिज़बुल मुज़ाहिदीन आदि विस्फोटों, हत्याओं आदि के तुरन्त बाद समाचार माध्यमों आदि को स्वयं सूचित करते हुए अपनी ज़िम्मेदारी कबूल करते थे और शासन को अपने मकसद के बारे में चेतावनी जारी करते थे। ओसामा बिन-लादेन भी ऐसा ही करता था। पर आप तो बेहद डरपोक हैं, कायर हैं। आपके कारनामों को उजागर करने के लिए सरकारी जाँच एजेंसियों को एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाना पड़ रहा है। अगर ऐसा नहीं है तो आप इन जाँच एजेंसियों के झूठ का पर्दाफ़ाश क्यों नहीं करते तथा उपरोक्त घटनाओं के असली सूत्रधारों का भण्डाफोड़ क्यों नहीं करते। हालाँकि आप उपरोक्त में से कुछ में अपनी भागीदारी पहले ही स्वीकार कर चुके हैं।

अब ज़रा आपके कुछ और भी कदमों का जायज़ा ले लिया जाये तो आपका असली रूप निखरकर सामने आ जाये। आपकी इच्छा और आज्ञानुसार आपके कारकूनों ने श्रीनगर में गणतन्त्र दिवस पर तिरंगा फहराने का अभियान ले रखा है, हालाँकि आपकी असली मंशा तो भगवा फहराने की रही होगी? लेकिन क्या करें मजबूरी में तिरंगे से ही सन्तोष करना पड़ रहा है, हालाँकि जम्मू कश्मीर का मुख्यमन्त्री तो तिरंगा ही फहरायेगा कोई और झण्डा नहीं। लेकिन मजबूरी है कि आप कश्मीर को भारत के उपनिवेश के रूप में भारत का अभिन्न अंग बनाये रखना चाहते हैं, अवसरों की समानता और जनपक्षधर जनवादी मूल्यों के आधार पर नहीं। क्योंकि जनवाद तो आपको फूटी आँख भी नहीं सुहाता। हो भी क्यों नहीं आप अपने आदि गुरु नीत्से की गुरु परम्परा के योग्य शिष्य और परम्परा वाहक जो हैं। यदि आप लोकतन्त्र के सेवक होते तो आप कश्मीर को बल और सेना की बदौलत भारत संघ में मिलाकर रखने की बजाय भारत में वह माहौल निर्मित करने का प्रयास करते जिससे कश्मीरी अपने आपको भारत का अंग मानने के बारे में सोचते। यदि आप भारत की जनता को एक सुरक्षित भविष्य, हर हाथ को काम, हर बच्चे को समुचित शिक्षा, हर बीमार को सम्पूर्ण इलाज और हर नागरिक को मानवीय गरिमा तथा सम्मान के साथ जीने की गारण्टी दे सकते तो कौन बेवक़ूफ था जो इस देश से अलग होने की सोचता। लेकिन यहाँ तो 40 करोड़ से ऊपर लोग हाथों में डिग्रियाँ लेकर सड़कों की खाक छान रहे हैं तथा भुखमरी और हताशा की वजह से जान गवाँ रहे हैं। करोड़ों लोग दवा-इलाज के अभाव में हर साल काल-कवलित होते हैं। करोड़ों बच्चे समुचित शिक्षा से वंचित हैं। और करोड़ों लोग भीषण सर्दी-गर्मी में खुले आसमान के नीचे ख़ाली पेट बिना नींद के सोने को विवश हैं। जब आप ऐसे दिवालिया हैं तो कश्मीरी अगर आपसे अलग होकर अपने भविष्य का स्वयं निर्णय और निर्माण करना चाहते हैं तो क्या गुनाह कर रहे हैं?

परन्तु कश्मीरी ही नहीं इस देश का हर मेहनतकश इस बात को अच्छी तरह जानता है कि ऐसा सुरक्षित भविष्य न तो आप संघ के लोग और न ही यह भारत का लोकतन्त्र ही दे सकता है। यह भविष्य तो मात्र इस देश के श्रमशील लोग ही दे सकते हैं, जब वे इस पूँजी आधारित नकली लोकतन्त्र के मोहपाश से पूर्णतः मुक्त होकर किसी क्रान्तिकारी नेतृत्व में उठ खड़े होंगे और राज सत्ता को अपने बलिष्ठ हाथों में अधिग्रहित कर लेंगे।

 

मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, जनवरी-फरवरी 2011

 

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