मैं सज़ा की माँग करता हूँ
पाब्लो नेरूदा (अनुवाद: नीलाभ अश्क)
अपने इन्हीं दिवंगतों के नाम पर
मैं सज़ा की माँग करता हूँ
जिन्होंने हमारे वतन को ख़ून से छिड़का, उनके लिए
मैं सज़ा की माँग करता हूँ
उसके लिए जिसके हुक़्म पर यह जुर्म किया गया
मैं माँगता हूँ सज़ा
उस ग़द्दार के लिए जो इन देहों पर कदम रखता
सत्ता में आया, मैं सज़ा की माँग करता हूँ
उन क्षमाशील लोगों के लिए जिन्होंने इस जुर्म को माफ़ किया
मैं सज़ा की माँग करता हूँ
मैं नहीं चाहता हर तरफ़ हाथ मिलाना और भूल जाना,
मैं उनके ख़ून सने हाथ नहीं छूना चाहता।
मैं सज़ा की माँग करता हूँ।
मैं नहीं चाहता वे कहीं राजदूत बना कर भेज दिये जायें,
न यहाँ देश में ढँके-छुपे रह जायें
जब तक कि यह सब गुज़र नहीं जाता।
मैं चाहता हूँ न्याय हो
यहाँ खुली हवा में ठीक इसी जगह।
मैं उन्हें सज़ा दिये जाने की माँग करता हूँ।
I ask for punishment
For these our dead, I ask for punishment.
For those who spilled blood in our country,
I ask for punishment.
For the executioner who sent us murder,
I ask for punishment.
For those who prospered from our slaughter,
I ask for punishment.
For he who gave the order that caused our agony,
I ask for punishment.
For those that defended this crime,
I ask for punishment.
I don’t want them to offer us
Their hands – soaked in our own
Blood: I want them punished.
I don’t want them as ambassadors,
Or living comfortably in their homes:
I want to see them tried
here in this plaza, here in this place.
I demand punishment.
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पाब्लो की क्राँतिकारी कविता।
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