पाठक मंच
कृष्ण कुमार, गाँव: शिमला, कलायत, कैथल (हरियाणा)
सम्पादक महोदय, मैं पिछले तीन वर्ष से आह्वान का पाठक हूँ। मुझे आह्वान पत्रिका पढ़ना बहुत अच्छा लगता है। इसके सभी लेखों को मैं ध्यान से पढ़ता हूँ। इस पत्रिका के लेख समाज की समस्याओं का गहराई से विश्लेषण करते हैं। आज समाज में ऐसी पत्रिकाओं की बहुत आवश्यकता है क्योंकि ये वैकल्पिक मीडिया का काम भी बख़ूबी करती है। पूँजीवादी मीडिया जहाँ जनता को गुमराह कर रहा है वहीं आह्वान जैसी पत्रिका उन्हें सही दिशा देने में प्रयासरत है। आज का बिकाऊ मीडिया युवाओं को भ्रम का शिकार बनाकर उन्हें ऐतिहासिक सच्चाइयों से भी विमुख कर रहा है। आज स्कूल, कॉलेज और अन्य शिक्षण संस्थानों में पढ़ाई का भगवाकरण किया जा रहा है और छात्रों को सच्चाई से दूर रखा जा रहा है। मैं अपना एक अनुभव आप सभी से साझा करना चाहता हूँ। कुछ ही दिन पहले मैं जलियावाला बाग (अमृतसर) गया था। जब मैं वहाँ पर मौजूद अपने शहीदों की धरोहर का अवलोकन कर रहा था तो उसी दौरान मेरी दृष्टि चार युवाओं पर पड़ी जो लगभग 18 से 22 साल की उम्र के रहे होंगे। ये नौजवान शहीदों से जुड़ी यादगार और धरोहर को कृत्रिम (‘आर्टिफीसियल’) बता रहे थे। जब मैंने उन्हें बताया की ये वास्तविक हैं और उन्हें जलियावाला काण्ड की इतिहाससिद्ध सच्चाई से अवगत कराया तो ही वे सहमत हुए। लेकिन इस दौरान उनके साथ हुई बातचीत में उनके बहस करने, तर्क करने आदि के स्तर से साफ़ पता चल रहा था कि किस प्रकार युवाओं को अज्ञानता के अन्धेरे में धकेला जा रहा है। ज़्यादा दिन नहीं हुए जब स्मृति ईरानी जैसी कम पढ़ी-लिखी महिला शिक्षा मंत्रालय की सर्वेसर्वा बनकर शिक्षण संस्थाओं पर भगवाकरण थोप रही थी, उनके बदलने के बाद अब प्रकाश जावड़ेकर एम.एच.आर.डी. मंत्री बन गये किन्तु ज़ाहिर है बदलाव सिर्फ़ चेहरे में हुआ है नीतियाँ वही रहने वाली हैं। जब से भाजपा सत्ता में आयी है तबसे और भी तेजी से इतिहास का विकृतीकरण हुआ है। इस मुद्दे पर ज़रूर ध्यान दिया जाना चाहिए और सरकार की नीतियों का विरोध होना चाहिए। आह्वान पत्रिका ने हरियाणा में हुई आरक्षण के नाम पर राजनीति और गुण्डागर्दी की पोल खोलकर रख दी है और सरकार द्वारा लोगों को बाँटने की राजनीति का पर्दाफ़ाश किया है। सदाचारी संघी फासीवादी सत्ताधारियों की चाल-चरित्र की पूरी सच्चाई को जनता के सामने रखने का काम भी पिछले अंक में हुआ है। आह्वान राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय दोनों से जुड़े मुद्दों पर सटीक जानकारी देती है। अभी हाल ही में ‘अमेरिकी चुनाव और ट्रम्प परिघटना’ लेख पढ़ा जो अमेरिकी राजनीति के विषय में अच्छी जानकारी मुहैया करवाता है। सैल्फी लेने का चलन आज-कल बहुत बढ़ गया है। पूँजीवाद किस प्रकार अलगाव की कुसंस्कृति आज परोस रहा है उसे समझने में पिछले अंक से काफ़ी मदद मिली। हमारे समाज में इस तरह की पत्रिकाओं की कमी है, हमें इसे सुचारू रूप से चलाते हुए समाज के हर तबके तक पहुँचाना चाहिए। मैं सम्पादक मण्डल से अपील करूँगा की आह्वान को मासिक करने की कोशिश की जाय।
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान,मई-जून 2016
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