अमर शहीद राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ को याद करते हुए

इन्द्रजीत

रामप्रसाद बिस्मिल (जन्म : 11 जून, 1897, शहादत : 19 दिसम्बर 1927)

रामप्रसाद बिस्मिल (जन्म : 11 जून, 1897, शहादत : 19 दिसम्बर 1927)

अमर शहीद राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ को कौन नहीं जनता! देश की आज़ादी के आन्दोलन में सशस्त्र विद्रोह की बात करने वाली धारा एच.आर.ए. (हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन) के ये प्रमुख नेता थे। ज़िन्दादिल और बहादुर क्रान्तिकारी के साथ बिस्मिल उर्दू ज़बान के बेहतरीन शायर भी थे। हथियारों के लिए धन प्राप्त करने के मकसद से काकोरी नामक जगह पर रेल से अंग्रेेजी खजाना लूटने में इसी दल का हाथ था। चन्द्रशेखर ‘आज़ाद’, अशफ़ाक उल्ला खां, रोशन सिंह, राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी आदि आदि बिस्मिल के हमराही थे। राम प्रसाद बिस्मिल सनातनी हिन्दू होते हुए भी अशफ़ाक उल्ला खां के ज़िगरी यार थे। बिस्मिल-अशफ़ाक की दोस्ती आज भी हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे और साझे संघर्ष का प्रतीक है। ज्ञात हो एच.आर.ए. की धारा ही आगे चलकर एच.एस.आर.ए. में विकसित हुई जिससे भगतसिंह, बटुकेश्वर दत्त, सुखदेव, भगवती चरण वोहरा, दुर्गावती और राजगुरू आदि जैसे क्रान्तिकारी जुड़े व चन्द्रशेखर ‘आज़ाद’ इसके कमाण्डर-इन-चीफ़ थे। हमारे इन शहीदों ने एक समता मूलक समाज का सपना देखा था। भरी जवानी में फाँसी का फ़न्दा चूमने वाले इन शहीदों को देश की खातिर कुर्बान हुए लम्बा समय बीत चुका है। अग्रेजी राज भी अब नहीं है लेकिन बेरोजगारी, भुखमरी, ग़रीबी और अमीर-ग़रीब की बढ़ती खाई से हम आज भी आज़िज हैं। चन्द वोटों के वास्ते जाति और धर्म के झगड़ों और दंगों की आग में देश को झोंकने के प्रयास आज भी किये जा रहे हैं। कहने को देश में लोकतंत्र है परन्तु यह धनतंत्र और डण्डातंत्र में तब्दील होकर रह गया है। जिनके पूर्वजों ने अंग्रेजों के सामने सदा पूँछ हिलायी, गोरों को माफ़ीनामे लिख-लिखकर दिये और जाँबाज क्रान्तिकारियों की मुखबिरी की वे ही आज देशभक्ति के प्रमाण-पत्र बाँटने के ठेकेदार बने बैठे हैं! देशी-विदेशी लुटेरे हिन्दुस्तानी आवाम का आज भी खून-पसीना निचोड़कर उसे सिक्कों में ढाल रहे हैं और तमाम सरकारें इन लुटेरों की सरपरस्ती कर रही हैं। आज हमें अपने शहीदों के विचारों को न केवल जानना होगा बल्कि उन्हें जन-जन तक भी पहुँचाना होगा तथा उनपर हमें अमल भी करना होगा। जनसैलाब का फ़िर से एक जलजला खड़ा करना होगा जिससे जनता की छाती पर कायम पूँजी का महल चकनाचूर हो जाये और एक शोषण विहीन समाज का निर्माण हो जिसका सपना हमारे शहीदों ने देखा था। बिस्मिल और उनके साथियों को यही हमारी सच्ची श्रद्धांजली होगी।

अमर शहीद रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ की याद में पेश हैं दो ग़जलें –

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाजुए क़ातिल में है।
ऐ शहीदे-मुल्को-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार
अब तेरे हिम्मत की चर्चा गैर की महफ़िल में है।
रहबरे राहे मुहब्बत रह न जाना राह में
लज्जते सहराने वर्दी दूरिए मंजिल में है।
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमां
हम अभी से क्या बताएँ क्या हमारे दिल में है।
आज फिर मक़तल में क़ातिल कह रहा है बार बार
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है।
खींचकर लायी है हमको क़त्ल होने कि उम्मीद
आशिकों का आज जमघट कूचा-ए-क़ातिल में है।
अब न अगले वलवले हैं और न अरमानों की भीड़
एक मिट जाने की हसरत अब दिले-बिस्मिल में है।

  • राम प्रसाद ‘बिस्मिल’

उरूजे कामयाबी पर कभी हिन्दोस्ताँ होगा
रिहा सैयाद के हाथों से अपना आशियाँ होगा।
चखायेंगे मज़ा बर्बादिए गुलशन का गुलचीं को
बहार आ जायेगी उस दम जब अपना बाग़बाँ होगा।
ये आये दिन की छेड़ अच्छी नहीं ऐ ख़ंजरे क़ातिल
पता कब फ़ैसला उनके हमारे दरमियाँ होगा।
जुदा मत हो मेरे पहलू से ऐ दर्दे वतन हरगिज़
न जाने बाद मुर्दन मैं कहाँ औ तू कहाँ होगा।
वतन की आबरू का पास देखें कौन करता है
सुना है आज मक़तल में हमारा इम्तिहाँ होगा।
शहीदों की चिताओं पर जुड़ेंगे हर बरस मेले
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा।
कभी वह दिन भी आयेगा जब अपना राज देखेंगे
जब अपनी ही ज़मीं होगी जब अपना आसमां होगा।

जगदम्बा प्रसाद मिश्र ‘हितैषी’

मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान,मई-जून 2016

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