मोदी सरकार के घोटालों की लम्बी होती  फ़ेहरिस्त

वर्षा

घोटालों की मार को ख़त्म करने का नारा देते हुए आयी भाजपा सरकार के सत्तारूढ़ होने के बाद भी घोटाले और वित्तीय अनियमितताएँ जारी हैं। आज़ादी के बाद से बननी शुरू हुई घोटालों की फ़ेहरिस्त में इस बार भी कई बड़े घोटाले शामिल हुए हैं। जहाँ एक तरफ देश की कमान सम्भाल रहे नरेन्द्र मोदी ‘मेक इन इण्डिया’, ‘स्किल इण्डिया’ जैसे नारे देकर सबके विकास का राग अलाप रहे हैं, वहीं इसी राग के साथ देश के नेता-नौकरशाह जनता की गाढ़ी कमाई से ऐय्याशी के बाद भी अपनी धुन में घोटाले किये जा रहे हैं। ललित गेट घोटाला, पंकजा मुण्डे़ घोटाला, तावड़े घोटाला, व्यापम घोटाला, खनन विभाग में घोटाला, राष्ट्रीय शहरी आजीविका योजना (एन.यू.एल.एम.) घोटाला और अब सबको पीछे छोड़ते हुए पनामा मामले का भी नाम आया है। इस प्रकार से कई बड़े घोटाले बुर्जुआ मीडिया की ‘मेहरबानी’ के चलते जनता के सामने आये हैं। इस बार हुए घोटालों और वित्तीय अनियमितताओं की फ़ेहरिस्त में हुई बढ़ोत्तरी ने साबित कर दिया है कि सरकार बेशक नयी है लेकिन घोटालों की रफ़्तार वही है।

इस लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी पर 10,000 करोड़ से अधिक लगाने वाले पूँजीपति वर्ग को तोहफे देने की शुरुआत सरकार ने पहला बजट आने से ही कर दी थी जिसमें शिक्षा, रोजगार आदि के मद में भारी कटौती के बाद बजट का बड़ा हिस्सा (5.90 लाख  करोड़) इस देश के पूँजीपति वर्ग को कर माफी, बिजली माफ़ी व अन्य रियायतों के रूप में दे दिया गया था। अब घपलों-घोटालों, कमीशनखोरी, दलाली, घूस आदि के द्वारा उनकी सेवा करने के साथ-साथ इस देश के नेताओं-नौकरशाहों द्वारा अपनी सात पीढ़ियों के जीविकोपार्जन का इन्तजाम भी बखूभी किया जा रहा है। वैसे तो भाजपा का शासन काल कम ही रहा है लेकिन घोटालों की तीव्रता के मामले में इसका इतिहास कांग्रेस से दो कदम आगे ही रहा है। इन ‘‘देशभक्त बन्धुओं’’ ने तो कारगिल युद्ध में मारे गये भारतीय सैनिकों के ताबूत ख़रीदने में भी घोटाला कर दिया था। सेना के लिए ख़रीद में दलाली खाते और रिश्वत लेते हुए भाजपा के पुराने अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण भी साक्षात पकड़े गये थे। भाजपा के दिग्गजों दिलीप सिंह जूदेव और येदुरप्पा के रिश्वत लेने और घोटाले करने के कारनामों को भला कौन भूल सकता है? इतिहास में ज्यादा न जाते हुए आइये मोदी सरकार के लगभग  डेढ़ वर्ष के शासनकाल में हुए घोटालों पर एक निगाह डालें।

महाराष्ट्र में महिला एवं बाल कल्याण विभाग में एक बड़ा घोटाला हुआ। इस विभाग द्वारा एकात्मिक बाल विकास योजना चलायी जाती है जिसमे आंगनवाड़ी केन्द्रों में पढ़ने वाले बच्चों को पोषणयुक्त आहार मुहैया कराया जाता है। इस योजना के तहत 206 करोड़ रुपयों का घोटाला किया गया। इसमें बिना किसी सरकारी प्रक्रिया के 80 करोड़ रुपयों की चिक्की खरीदने का मामला सामने आया है। इस घोटाले में महाराष्ट्र की महिला एवं बाल कल्याण विभाग की मंत्री पंकजा मुण्डे की संलिप्तता पायी गयी है। इसी राज्य के शिक्षा मंत्री विनोद तावड़े भी घोटालों और फ़र्जी डिग्री के चलते सुर्खियों में रहे हैं। उनकी डिग्री फ़र्जी होने का मामला सामने आने के साथ-साथ स्कूलों में लगने वाले ‘फ़ायर एक्स्टिंग्युशर’ लगाने के लिए किये गये अनुबन्ध में 1.91 करोड़ का घोटाला भी तावड़े द्वारा ही किया गया है। महाराष्ट्र के शिक्षा जगत के घोटाले के बाद मध्य प्रदेश का व्यापम घोटाला पिछले दिनों काफी सुर्खियों में रहा। काफी समय से चल रही धाँधलेबाजी के बाद इस बार कुछ बड़े खुलासे हुए जिसमें मध्य प्रदेश के राज्यपाल राम नरेश यादव, भाजप नेता और पूर्व शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकान्त शर्मा, ओपी शुक्ला जैसे कई मंत्रियों और आई. ए.एस. अधिकारियों के नाम सामने आये हैं। इसका खुलासा होने के दौरान गवाह के रूप में मौजूद लगभग 50 लोगों ने अपनी जानें गँवायी हैं। इन मंत्रियों के भारी-भरकम वेतन भत्ते होने के बावजूद कमाई की हवस इस कदर है कि सूखे की मार झेल रहे और आये दिन आत्महत्या कर रहे ग़रीब किसानों के बीच इनके घोटाले जारी हैं। अरावली की पहाड़ियाँ भी इनसे बच नहीं पायी। वहाँ खनन विभाग द्वारा खानों को बिना कारण बन्द किया जाता था और दोबारा खोलने के लिए एक बड़ी रकम ली जाती थी। इसी में 45,000 करोड़ का घोटाला किया गया। इस घोटाले में खनन विभाग के सचिव अशोक की गिरफ्तारी पिछले वर्ष होने के बाद भी खानों का खुलना और बन्द होना जारी है।

पूँजीपति वर्ग की सेवा में लगी भाजपा सरकार के तमाम मंत्री पूँजीपतियों की सेवा में नतमस्तक होकर लगे हैं। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने खुलेआम आईपीएल में निवेश करने वाले पूँजीपति ललित मोदी को लंदन भागने में मदद की। मामला सामने आने पर दलीलें पेश की गयी कि यह मदद महज मानवीय आधार के चलते की गयी थी क्योंकि ललित मोदी अपनी पत्नी का कैंसर का इलाज कराने लन्दन जा रहे थे और यह दीगर बात है कि बाद में वे समुद्र किनारे ‘हसीनाओं’ के साथ रंगरेलियाँ मनाते हुए अपनी फ़ोटो शेयर करते नज़र आये। राजस्थान की जनता के हाल बेशक बेहाल हों किन्तु ललित मोदी को मदद पहुँचाने में वहाँ की मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे भी कभी पीछे नहीं रही थी, चाहे मामला राजस्थान में ज़मीन हड़पने में मदद करने का हो या ललित मोदी पर चल रहे मुकदमे में उनके दस्तखत करने का हो वसुन्धरा जी की सेवाएँ हमेशा हाज़िर रहीं। यह अकारण नहीं है कि हर पाँच वर्षों के बाद एक-एक नेता चुनाव के वक्त अपनी सम्पत्ति की घोषणा करता है और उसके बाद यह दस से बीस गुना बढ़ जाती है। ये इन मंत्रियों द्वारा अपने आकाओं की सेवा और हर सम्भव मदद का ही सुपरिणाम है। अगर गौर करें तो यह कोई हैरत वाली बात नहीं है क्योंकि सबसे बड़े भ्रष्टाचार यानी श्रम की लूट के द्वारा अर्जित मुनाफ़े में से ही धन हासिल करके और फिर इस पैसे को चुनाव में लगाकर ही ये नेता मंत्री अपने मुकाम तक पहुँचते हैं। सत्ता में आते ही भ्रष्टाचार और घोटालों के द्वारा पूँजीपति घरानों की खुले हाथ से सेवा की जाती है। और हमारे “प्राचीन संस्कृति” को मानने वाले बन्धु इस अति प्राचीन दस्तूर को कहाँ छोड़ने वाले थे कि ‘एक हाथ दे और एक हाथ ले’।

अब यह जगजाहिर हो चुका है कि बड़े-बड़े नारों के साथ आयी केन्द्र की भाजपा सरकार न महँगाई दूर कर पायी न ही भ्रष्टाचार, न रोजगार के अवसर पैदा कर पायी और न ही अच्छे दिन ही ला पायी। 15 लाख की बात को तो स्वयं भाजपा अध्यक्ष अमित शाह जी ही अपने मुखारविन्द से चुनावी जुमला घोषित कर चुके हैं भले ही उनकी इस बात के लिए मोदी जी को न जाने किन-किन उपाधियों से विभूषित होना पड़ा। वायदे तो रह गये धरे के धरे और अब भाजपा जनता को लव ज़िहाद, धर्मान्तरण, घर वापसी, देशद्रोह, गाय, जाति, धर्म, क्षेत्र जैसे मुद्दों में उलझाकर पूँजीपति घरानों की बढ़िया मैनेजिंग कमेटी साबित होने के काम में एड़ी से चोटी तक का जोर लगा रही है। हर बार की तरह शिक्षा, रोज़गार, महँगाई दूर करने, ग़रीबी हटाने के नाम पर ‘वही ढाक के तीन पात’। इन तमाम मदों में घोटालों की झड़ी लगना ही बताता है कि इस मानवद्रोही व्यवस्था में इस तरह का भ्रष्टाचार अपरिहार्य है जो पूँजीपतियों को अवैध कमाई का मौका देने के साथ-साथ हर संभव सेवा उपलब्ध कराता है। ऐसे समाज में जहाँ हर काम लोगों की ज़रूरतों को पूरा करने की बजाय निजी मुनाफ़े के लिए हो; उसमें भ्रष्टाचार ही हो सकता है। ये तमाम वित्तीय अनियमितताएँ और घोटाले इसी व्यवस्था के अभिन्न अंग हैं। जिस व्यवस्था में लोगों के श्रम का शोषण कानूनी हो उसके रहते घोटालों को होना  ही है; असल में ये केवल पूँजीवादी व्यवस्था के ही उपोत्पाद (बाईप्रोडक्ट) हैं। स्थिति में इस बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ने वाला कि कुर्सी पर कौन बैठा है। वह चाहे मौनव्रतधारी मनमोहन हों या कभी न चुप होने वाले मोदी।

मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान,मार्च-अप्रैल 2016

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