“पुस्तक एक पीढ़ी की अपने बाद आने वाली पीढ़ी के लिए आत्मिक वसीयत होती है, मृत्यु के कगार पर खड़े वृद्ध की जीवन में पहले डग भर रहे नवयुवक के लिए सलाह होती है, ड्यूटी पूरी करके जा रहे सन्तरी का ड्यटी पर आ रहे सन्तरी को आदेश होती है… पुस्तक भविष्य का कार्यक्रम होती है।”
अलेक्सान्द्र हर्ज़ेन
“कोई भी ताक़त उस विचार को आने से नहीं रोक सकती जिसका वक़्त आ गया हो।”
विक्टर ह्यूगो
रूसी क्रान्ति के नेता लेनिन के जन्मदिवस (22 अप्रैल) के अवसर पर
“मज़दूरों में वर्ग चेतना केवल बाहर से ही लायी जा सकती है, यानी केवल आर्थिक संघर्ष के बाहर से, मज़दूरों और मालिकों के क्षेत्र के बाहर से। वह जिस एकमात्र क्षेत्र से आ सकती है, वह राज्यसत्ता तथा सरकार के साथ सभी वर्गों के आपसी संघर्षों का क्षेत्र है। इसलिए इस सवाल का जवाब कि मज़दूरों तक राजनीतिक ज्ञान ले जाने के लिए क्या करना चाहिए, केवल यह नहीं हो सकता कि “मज़दूरों के बीच जाओ” – अधिकतर व्यावहारिक कार्यकर्ता, विशेषकर वे लोग, जिनका झुकाव “अर्थवाद” की ओर है, यह जवाब देकर ही सन्तोष कर लेते हैं। मज़दूरों तक राजनीतिक ज्ञान ले जाने के लिए सामाजिक जनवादी कार्यकर्ताओं को आबादी के सभी वर्गों के बीच जाना चाहिए – अपनी सेना की टुकड़ियों को सभी दिशाओं में भेजना चाहिए।”
“अर्थवादी” और आतंकवादी स्वयंस्फूर्तता के दो छोरों की पूजा करते हैं; “अर्थवादी” “शुद्ध मजदूर आन्दोलन” की स्वयंस्फूर्तता की पूजा करते हैं, जबकि आतंकवादी उन बुद्धिजीवियों के प्रज्ज्वलित क्रोध की स्वयंस्फूर्तता की पूजा करते हैं, जिनमें क्रान्तिकारी कार्य को मज़दूर आन्दोलन से जोड़ने की या तो क्षमता नहीं होती या इसका अवसर नहीं मिलता। जो लोग इस बात की सम्भावना में विश्वास खो चुके हैं, या जिन्होंने कभी इसपर विश्वास नहीं किया, उनके लिए अपने क्रोध तथा क्रान्तिकारी क्रियाशीलता को व्यक्त करने के लिए आतंक के विसा कोई दूसरा मार्ग ढूँढ़ना सचमुच कठिन है।”
– लेनिन ‘क्या करें?’ से
“जिसे ‘क़ानून की रूह’ और ‘परंपरा’ कहते हैं वह सभी जड़़मतियों के भेजे में घड़ी की तरह का एक ऐसा सादा यन्त्र पैदा कर देती है जिसकी कमानी के हिलने-डुलने से ही जड़तापूर्ण विचारों के पहिये घूमने लगते हैं। हर एक जड़मति का नारा होता है- जैसा जो अब तक रहा है वैसा ही हमेशा बना रहेगा। मरी मछली की ही तरह जड़मति भी दिमाग की तरफ़ से नीचे की ओर सड़ना शुरू करते हैं।”
मक्सिम गोर्की
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, जनवरी-अप्रैल 2015
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