पाठक मंच
आदरणीय
संपादक महोदय
आह्वान का नियमित पाठक होने के कारण मैं कहना चाहूँगा कि पिछले अंक में अन्ना हजारे पर लेख वाकई प्रशंसनीय था, जहाँ एक तरफ छात्रों-नौजवानों की बड़ी आबादी अन्ना जी की राजनीति, सोच व जनलोकपाल को जाने बिना अंधा समर्थन कर रही थी। वही आह्वान में आपने इस विषय के उस पहलू पर जोर दिया। जो शायद ही किसी पत्रिका मे छपा हो। लेकिन मेरी एक शिकायत भी है कि पहले कवर पेज के अन्दर चार शहीदों के नाम और कोटेशन तो दिए गए हैं लेकिन उसमें ये नहीं बताया गया हैं कि वो किस आन्दोलन से इत्तेफाक रखते थे।
उम्मीद है आगे के अंकों में इन भूलों का ध्यान रखा जाएगा।
नवनीत प्रभाकर
दिल्ली विश्वविद्यालय
सम्पादक महोदय
मैंने आह्वान के पिछले दो अंक पढे हैं जो कि काफी उत्साहवर्धक एवं इस व्यवस्था को उजागर करने वाले थे। जैसे वर्तमान में भारत में भ्रष्टाचार का मुद्दा, फार्बिसगंज पुलिस दमन एवं श्रम कानूनों के उल्लंघन में मेट्रो मजदूरों द्वारा किये गये प्रदर्शन।
पिछले अंकों में भ्रष्टाचार के विरूद्ध अन्ना हजारे एवं उनकी टीम के द्वारा चलाये जा रहे आन्दोलन एवं उससे जुड़े मध्यवर्ग के चरित्र का काफी गहन विश्लेषण किया गया है। इसमें बताया गया है कि असल में भ्रष्टाचार का मुद्दा इस व्यवस्था से जुड़ा हुआ मुद्दा है तथा अन्ना हजारे एवं उनकी टीम की विचारधारा और राजनीति पर विश्लेषण प्रस्तुत कर बताया कि यह एक स्वतंत्र समाज के लिए कहाँ तक घातक सिद्ध हो सकती है। तथा पिछले अंक में भारत की शान समझी जाने वाली मेट्रो रेल में व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर किया गया।
इन अकों में विश्लेषित मुद्दो को पढ़ने के बाद मुझे लगता है कि यह युवा वर्ग के लिए काफी जरूरी पत्रिका है। एवं मेरी तरफ से एक सुझाव है कि आह्वान टीम एवं इसके पाठकों का वर्ष में कम से कम एक सम्मेलन अवश्य होना चाहिए। ताकि इसको बेहतर बनाने के पहलुओं पर चर्चा की जा सके।
गजेन्द्र सिंह
विधि संकाय, दिल्ली विश्वविद्यालय
अण्णा हजारेः- आम जनता में व्याप्त गुस्से को सोखने वाला इस भ्रष्टाचारी व्यवस्था का ‘‘शौक एब्जॉर्बर………..
प्रिय साथी,
मैं पिछले चार अंकों से ‘‘आह्वान’’ पढ़ रहा हूँ और अगले अंक के इंतजार में हूँ। लेकिन ‘‘आह्वान’’ के संदर्भ में यह मेरा पहला पत्र है। निश्चय ही यह एक बेहतरीन पत्रिका है। इसके सम्पादक व साथी लेखकों द्वारा देश के समसामयिकी मुद्दों, विज्ञान एवं शिक्षा के व्यापारीकरण के बारे में लिखे गये लेख प्रंशसनीय है।
खास तौर से तब जब देश भर में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने की एक बदबूदार हवा बही हुई है। पिछले दो अंकों में लिखा गया ‘‘अन्ना हजारे का भ्रष्टाचार विरोधी अभियान’’ पर विशेष लेख इस संड़ी-गली व्यवस्था को चलाने वाले धूर्त और ढोंगी लेागों के नकाबी चेहरे को देखने के लिए उचित दर्पण पेश करता है, और दर्शाता है कि किस तरह आम जनता में इस व्यवस्था के खिलाफ भड़के गुस्से को शांत करने के लिए पूँजीवादी व्यवस्था अन्ना हजारे जैसे समाज सुधारको का इस्तेमाल ‘शॉक एब्जॉर्बर के रूप में करती है। यह दर्पण अन्ना हजारे के आन्दोलन की साफ-साफ तस्वीर पेश करते हुए कहता है कि किस तरह यह आन्दोलन ‘‘खुद के द्वारा खुद के लिए’’ (इसी व्यवस्था के द्वारा इस व्यवस्था के बचाव के लिए) बड़ी चतुराई से सोची-समझी और रची गढ़ी हुई प्लानिंग है। दोनों अंकों में लिखे लेख को पढ़ कर मेरी आँखों पर से परदा हट गया और इस पूँजीवादी व्यवस्था एवं अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन रूपी ढ़ोग का चित्र स्पष्ट हो गया।
क्रान्तिकारी अभिवादन के साथ
विकास, दिल्ली
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, जुलाई-अगस्त 2011
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