बुश के ऊपर स्वतन्त्र समाज की व्यथित कर देने वाली अभिव्यक्ति!
काजल
साल 2008 अमेरिका और ख़ास तौर पर जॉर्ज डब्ल्यू बुश के लिए काफ़ी यादगार वर्ष रहा। सबसे पहले तो अमेरिका तीस के दशक के बाद की सबसे बड़ी मन्दी का शिकार हुआ और 2008 ने इस मन्दी को नयी गहराइयों तक जाते देखा। टी.वी. चैनल हो या फ़िर अख़बारों के पन्ने, बुश जहाँ भी नज़र आए, इस आर्थिक संकट के प्रभाव से ग्रस्त दिखे। फ़िर साल के ख़त्म होते-होते उनकी रिपब्लिकन पार्टी राष्ट्रपति चुनाव भी हार गई और बुरी तरह से हारी। और अगर ये सब काफ़ी नहीं था तो बुश ने इराक़ में, उसी इराक़ में जिसे आम तौर पर अमेरिका पूरी दुनिया में अपने साम्राज्यवादी प्रोजेक्ट की हाली जीतों में से एक के रूप में प्रचारित करने की कोशिश करता है, जूते भी खाए! जी हाँ, हम बात कर रहे हैं उस घटना की जिसमें बग़दाद में हुए एक संवाददाता सम्मेलन में एक इराक़ी पत्रकार मुंतदर अल-ज़ैदी ने एक के बाद एक अपने जूते बुश पर फ़ेंके। बुश पर जूते फ़ेंकते समय ज़ैदी ने जो बात कही वह सारी इराक़ी जनता की भावना का प्रतिनिधित्व करती है। जै़दी ने कहा, “ये रहा विदाई चुम्बन, कुत्ते!” दुनिया के सबसे शक्तिशाली व्यक्ति ने जो दुनिया के सर्वशक्तिशाली देश का राष्ट्रपति है, कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि राष्ट्रपति के तौर पर उनके कार्यकाल का अन्त इस किस्म की विदाई से होगा। बुश मानसिक तौर पर काफ़ी व्यथित हुए होंगे। एक तो उनके पूरे कार्यकाल में उन्हें एक बेवकूफ़ व्यक्ति के रूप में प्रचारित किया गया जिसे राजनीति का क ख ग भी नहीं आता, दूसरी ओर उन्होंने जहाँ हाथ डाला तबाही मिली। और अब जाते-जाते दुनिया भर की जनता को आज़ाद करने का ये सिला मिला है!!?? जूते!!??
बहरहाल, चूँकि इस साहसिक कार्रवाई को अंजाम एक संवाददाता सम्मेलन में दिया गया इसलिए मिनटों में दुनिया भर के मीडिया में इसका जमकर प्रसारण हुआ। इस घटना के अगले ही दिन इण्टरनेट पर ऐसे गेम्स चालू हो गये जिसमें सामने बुश दिखलाई पड़ते हैं और आपको जूते से बुश पर निशाना लगाना होता है! जितने जूते बुश को मारेंगे, आपको उतने अंक मिलेंगे! तुर्की के एक जूता बनाने वाले ने बताया कि अल-ज़ैदी का जूता उसकी दुकान से बनकर गया था और अब से उस किस्म के जूते की ब्राण्ड का नाम वे ‘बुश जूता’ रख रहे हैं! उनका कहना है बुश जूते को खरीदने के लिए उन्हें दुनिया भर से ऑर्डर मिलने लगे हैं।
वहीं दूसरी तरफ़, इस अपमानजनक घटना के बाद, जॉर्ज बुश ने अपनी झेंप छिपाने का पूरा प्रयास किया और इस पूरी वारदात की एक दिलचस्प लेकिन विचारणीय व्याख्या प्रस्तुत की। अपने ऊपर जूतों से हमले को बुश अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के रूप में देखते हैं। बुश बताते हैं कि यह एक स्वतंत्र समाज की निशानी थी। सद्दाम हुसैन के काल के दौरान चूँकि इराक़ परतन्त्र था और तानाशाही के अधीन था इसलिए सद्दाम हुसैन को ऐसा कोई हमला नहीं झेलना पड़ा। अमेरिकी शैली जनतंत्र के स्थापित होते ही स्वतंत्र समाज ने अपनी अभिव्यक्ति दे दी। शायद इसी को अमेरिकी लोग ‘कोलैटरल डैमेज़’ कहते होंगे! ख़ैर, बुश ने जूता खाने को इराक में अमेरिकी शैली के जनतन्त्र की सफ़लता का सबूत माना। कहा जा सकता है कि यह व्याख्या आने वाले समय में शोध का विषय बनी रहेगी!
ख़ैर, दिल को बहलाने के लिए तो यह व्याख्या अच्छी है ही! वैसे क्या बुश इतना नहीं समझ पाए होंगे कि यह अमेरिकी साम्राज्यवाद के चेहरे पर एक करारा तमाचा (जूता!!!) है? यह पूरे मध्य-पूर्व में अमेरिकी साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ गुस्से और नफ़रत की एक अभिव्यक्ति मात्र था। ज्ञात हो कि जूता मारने का मध्य-पूर्व में अपमान के निकृष्टतम रूपों में से एक माना जाता है। जहाँ तक अमेरिकी स्टाइल जनतन्त्र का प्रश्न है, तो उसके बारे में तो सारी दुनिया जानती ही है। खुद अमेरिका में अश्वेतों, अप्रवासियों और व्यवस्था का विरोध करने वाले लोगों का जिस किस्म का बर्बर दमन किया जाता है उसकी मिसाल शायद ही पूरी दुनिया में कहीं मिले। इसके अलावा, पूरी दुनिया पर अपने एक साम्राज्यवादी देश के रूप में उभरने के बाद से ही अमेरिका जिस किस्म की दादागीरी, दमन, हत्याकाण्ड, नरसंहार थोपता रहा है उससे भी अमेरिकी शैली के जनतन्त्र के बारे में काफ़ी कुछ पता चलता है।
अल-ज़ैदी के परिवावालों ने कहा है कि अल-ज़ैदी द्वारा जूते फ़ेंके जाने के पीछे की वजह 2003 में अमेरिका द्वारा इराक़ पर किया गया अन्यायपूर्ण हमला और इसी वजह से बुश के लिए उसकी बेपनाह नफ़रत थी। उसके भाई ने बताया कि जेल में अल-जैदी के साथ बहुत बेरहमी से पेश आया जा रहा है। 14 दिसम्बर को उसकी गिरफ्तारी के कुछ घण्टे बाद ही उसे सुरक्षाकर्मियों द्वारा बुरी तरह से पीटा गया और सिगरेट से जलाया गया। इसके आगे कुछ और कहने की ज़रूरत नहीं है। लेकिन अल-ज़ैदी के गिरफ्तार होने के बाद ही उसकी रिहाई के लिए तुर्की से लेकर इण्डोनेशिया और मध्य-पूर्व के हर देश की जनता सड़कों पर उतर आई और इराक़ी दूतावास का घेराव करने लगी। इसी से पता चलता है कि अल-जैदी एक नायक बन चुका है। मध्य-पूर्व की जनता के लिए हर वह व्यक्ति नायक होता है जो अमेरिकी साम्राज्यवाद का विरोध करता है। अल-ज़ैदी ने अमेरिका के मुँह पर ऐसा प्रतीकात्मक तमाचा मारा है जिसने अमेरिकी दम्भ को गहरी चोट पहुँचाई और और उसके साम्राज्यवादी अहंकार को काफ़ी आहत किया है। ज़ाहिर है, कि अल-ज़ैदी के साथ अब अमेरिकी शैली के जनतन्त्र के सारे प्रयोग किये जाएँगे। लेकिन ज़ैदी ने भी जेल से बयान दिया है कि अगर उन्हें ऐसा मौका मिला तो फ़िर वे ऐसा ही करेंगे। ज़ाहिर है! हम भी इसकी ताईद करते हैं!
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, जनवरी-मार्च 2009
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