पाठक मंच

उपन्यास-परिचय देना फ़िर से शुरू करें

‘आह्वान’ मिल रहा है। इसकी सामग्री प्रशंसनीय है। मेरा सुझाव यह है कि इसमें उपन्यास परिचय का जो स्तम्भ था उसे फ़िर से शुरू किया जाना चाहिए। इसे बन्द ही क्यों किया? आगे अपनी विस्तृत प्रतिक्रिया भेजने का प्रयास करूँगा।

– कपिलेश भोज, सोमेश्वर

(उत्तरांचल)

‘आह्वान’ मुझे बहुत ही पसन्द है। मगर बहुत कम शिक्षित होने के कारण बहुत कुछ समझने में मुझे कठिनाई होती है। 2002 का एक अंक मैंने पढ़ा था। उसमें पावेल कोर्चागिन की जीवनी पढ़ी। वह लेखक सचमुच बहुत महान था जिसने इतना सबकुछ सहने के बावजूद अपने अन्तिम समय तक संघर्ष किया। वह कितना मेहनती, साहसी इंसान था। क्या आज के समाज में इतना मेहनती इंसान होगा? अगर कोई पावेल के समान अपने समय का उपयोग करता है, क्रान्तिकारी विचारों के साथ अपने जीवन के हर पल में संघर्ष करते हुए जीता है, तो मैं उससे मिलना चाहूँगी और खुद भी पावेल जैसा बनना चाहूँगी।

– रंजना ज्योति, सोनिया विहार

दिल्ली

छात्र-युवा आन्दोलन का उद्घोषक है आह्वान

साथी सम्पादक,

‘आह्वान’ का जनवरी-मार्च, 2007 का अंक मिला और पढ़ा भी। यह एक बेहतरीन पत्रिका है। यह एक नये छात्र-युवा आन्दोलन के लिए बहुत ही सहायक है। मुझे आह्वान के सभी लेख ही अच्छे लगे। विशेषकर, इसका सम्पादकीय छात्र-युवा आन्दोलन को नयी दिशा देने का काम करता है। ‘आह्वान’ पत्रिका को पढ़कर ऐसा लगता है मानो यह एक आह्वान कर रहा है-उठो नौजवानो! किस सोच में डूबे हो? भविष्य तुम्हारा आह्वान कर रहा है। पंख फ़ैलाकर दूर आसमान में उड़ चलो! आज समय यही कह रहा है और शहीदों की आत्माएँ पुकार रही हैं! शहीदों के सपनों को साकार करने के लिए एक नया समाज बनाने के लिए नौजवानों को आगे आना ही होगा। यही आह्वान का निर्भीक उद्घोष है।

आज ऊपरी तौर पर देखने पर ऐसा लगता है कि सबकुछ शान्त है। कहीं कोई आन्दोलन नहीं है। कैम्पसों में चुप्पी छाई हुई है। लेकिन अन्दरूनी हक़ीक़त कुछ और है। युवाओं के दिल में गुस्सा है। बस इस गुस्से को सही दिशा देने की ज़रूरत है। उन्हें क्रान्तिकारी विचारधारा से परिचित कराने की ज़रूरत है। तभी सही मायने में भगतसिंह के सपनों को साकार करने की दिशा में हम आगे बढ़ सकेंगे। और यही काम ‘आह्वान’ कर रहा है।

अभिवादन सहित,

रवि शर्मा, जयपुर

(राजस्थान)

आह्वान देश के हर युवा तक पहुँचना ज़रूरी…

आह्वान पत्रिका प्राप्त हुई। यह बेहद ज़रूरी पत्रिका है। पूरे देश स्तर पर ही नहीं पूरे दुनिया भर में जिस तरीके से भूमण्डलीकरण उदारीकरण का दौर चल रहा है, इसे एक तरह से साम्राज्यवाद का दूसरा चेहरा कहा जा सकता है। इसको नंगा करने का काम आह्वान कर रही है।

हमारे यहाँ ग्वालियर में एक दौर में तमाम वामपंथी संगठन काम करते थे जो मज़दूर आन्दोलन में सक्रिय थे। लेकिन बिड़ला कॉटन मिल बन्द होने के बाद से आन्दोलन बिखरना शुरू हो गया। जब आन्दोलन तेज़ था उस समय तमाम छात्र-युवा संगठन भी छात्र-युवा आन्दोलन को सक्रियता के साथ चला रहे थे। लेकिन मज़दूर आन्दोलन के बिखराव के साथ ही छात्र-युवा आन्दोलन भी बिखराव का शिकार हो गया। यही आज पूरे देश की कहानी है। ऐसे दौर में ‘आह्वान’ छात्रों-युवाओं में नये सिरे से मानवता के मूल्यों को पैदा कर रहा है और एक बार फ़िर आन्दोलन को खड़ा करने के लिए विचारों का प्रचार-प्रसार कर रहा है। इस रूप में ‘आह्वान’ आज देश के हरेक युवा तक पहुँचना ज़रूरी है और इस रूप में यह एक बेहद ज़रूरी पत्रिका है।

-पवन करण, ग्वालियर

(मध्य प्रदेश)

आह्वान शिक्षित करता है

साथियों को क्रान्तिकारी अभिवादन,

अभिनव जी,

मैं आह्वान का पिछले 3 वर्षों से पाठक हूँ। आज पहली बार अपना कोई पत्र भेज रहा हूँ। कूरियर के माध्यम से इसके पहले भी एक पत्र और कुछ कविताएँ मैंने पाठक मंच के लिए भेज चुका हूँ। लेकिन कूरियर सर्विस की दिक्कत की वजह से वह आप तक नहीं पहुँच सका। ‘आह्वान’ की सामग्री एक उद्वेलन पैदा करती है और साथ में शिक्षित भी करती है। उम्मीद है ‘आह्वान’ अपनी यह भूमिका निभाता रहेगा।

-अमित संजीदा, अम्बाला कैण्ट.

(हरियाणा)

आह्वान इंकलाब का परचम है…

आदरणीय भाई।

‘आह्वान’ मिली। ‘आह्वान’ मानवता के हित इंकलाब का परचम है। इसकी अंतर्वस्तुओं में गूँजती बातें, इंकलाब का नारा है, भुजाओं का फ़ड़कना और मुट्ठियों का भिंचना, कुछ कर गुज़रने के संकल्प की प्रतिबद्धता है। मूल्यों के हित क्रान्ति के इस हरावल दस्ते में देश के हर युवा की एकजुटता ज़रूरी है। एक नया मानवीय इतिहास रचने को सदियों से शोषित-वंचित और उत्पीड़ित मानवता के हित दरिन्दों के ख़िलाफ़ कुछ सार्थक कर गुज़रना ही आदमी होने की पहचान है। मैं सोचता हूँ कि काश, अपनी रचनाधर्मिता के अलाव कुछ और कर पाता।

-डा. गिरिजा शंकर मोदी,

सम्पादक – ‘आज की कविताएँ’

शब्द सदन, सिकन्दरपुर (बरविग्घी)

मिरजान हाट, भागलपुर (बिहार)

प्रिय साथी,

‘आह्वान’ की सदस्यता भेज रहा हूँ। यह पत्रिका आर्थिक कारणों के कारणों कभी नहीं रुकने पाएगी। मैं आपके साथ हूँ।

-भूपेन्द्र प्रतिबद्ध, चण्डीगढ़

(पंजाब)

 

मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, जनवरी-मार्च 2008

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