पाठक मंच

प्रिय साथी

पहले तो मैं एक-दो चीज़ों पर अपनी शिकायत दर्ज कराना चाहूँगा। ‘आह्वान’ के नवम्बर-दिसम्बर 2011 के अंक के पृष्ठ 38 पर ‘जनजागृति यात्रा’ सम्बन्धी रिपोर्ट में एक आँकड़ा था कि ‘2010 से अब तक करीब सवा दो लाख किसानों ने आत्महत्या कर ली है।‘ मुझे लगता है यह आँकड़ा ठीक नहीं है। कृपया इसे अगले अंक में स्पष्ट करें। इस दौरान जनवरी-फरवरी 2012 अंक भी प्राप्त हुआ। इसमें भी प्रूफ सम्बन्धित कई टैक्निकल गलतियाँ थीं हालाँकि कुछ को ओवर राइट करके सुधारा भी गया था। इस अंक में ‘विकल्प की राह खोजते लोग—‘ सम्पादकीय लेख की पृष्ठ संख्या 45 पर अन्तिम दूसरी लाईन में ‘आज—विश्व भर में सर्वहारा क्रान्तिकारियों को एक नयी क्रान्तिकारी पार्टी को खड़ा करने की तैयारी करनी होगी।‘ इस लाईन में भी लगा कि थोड़ा स्पष्ट नहीं हो पाया। हालाँकि भाव समझ आ गया। उम्मीद है इन चीज़ों पर ध्यान देंगे।

बाकि ‘आह्वान’ अपने संकल्प के मुताबिक हर चीज़ पर सही तथा बेलाग-लपेट बात जनता के बीच लेकर जा रहा है। इसी कड़ी में इस बार का अंक भी सराहनीय था। ख़ासकर विकल्प के बारे में आया सम्पादकीय बेहद महत्वपूर्ण था। लेख में क्रान्तिकारी विकल्प की समस्याओं पर बात के साथ बहेतू-सट्टेबाज़ दार्शनिकों की अच्छी शिनाख़्त की गई है। दवा उद्योग पर आया लेख भी अच्छा है। प्रो. एजाज अहमद पर आया लेख प्रो. साहब के मौजूदा लेखन की पड़ताल तो करता ही है साथ में कई भ्रम भी दूर करता है। साथी पिछले कई अंको से ‘अन्तर्दृष्टि’ नामक स्तम्भ नहीं दिया जा रहा है। इसके अन्तर्गत आए लेख बेहद विचारोत्तेजक लगे। यदि इस स्तम्भ को जारी रखें तो पाठकों के लिए काफी अच्छा रहेगा। आह्वान को मेरा सहयोग जारी रहेगा।

 इन्द्रजीत (Dept. of S.E.U.S., नार्थ कैम्पस, दिल्ली विश्वविद्यालय)

प्रिय साथी इन्द्रजीत,

नवम्बर-दिसम्बर 2011 के अंक की उपरोक्त रिपोर्ट में आपने सही कमी की ओर इशारा किया है। यह आँकड़ा सन् 1997 से लेकर 2008 तक का है, न कि 2010 से अब तक का। जनवरी-फरवरी 2012 के अंक के सम्पादकीय की उक्त पंक्तियों में क्या अस्पष्ट रह गया है, हम समझ नहीं पाये। शायद आपको यह ध्वनित हो गया हो कि पूरे विश्व में एक क्रान्तिकारी पार्टी खड़ी करने की बात की गयी है। अगर ऐसा हुआ है, तो हमारी मंशा कतई यह न थी। स्तम्भ ‘अन्तर्दृष्टि’ को हम फिर से आरम्भ करने का प्रयास कर रहे हैं। प्रूफ की ग़लतियों पर भी हम काम कर रहे हैं और उम्मीद करते हैं कि हम जल्द से जल्द बेहतर स्थिति में होंगे।

सम्पादक

 

मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, मार्च-अप्रैल 2012

 

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