केदारनाथ अग्रवाल की कुछ कविताएँ
(एक)
मुझे प्राप्त है जनता का बल
वह बल मेरी कविता का बल
मैं उस बल से
शक्ति प्रबल से
एक नहीं – सौ साल जिऊँगा
काल कुटिल विष देगा तो भी
मैं उस विष को नहीं पिऊँगा
मुझे प्राप्त है जनता का स्वर
वह स्वर मेरी कविता का स्वर
मैं उस स्वर से
काव्य प्रखर से
युग जीवन के सत्य लिखूँगा
राज्य अमित धन देगा तो भी
मैं उस धन से नहीं बिकूँगा
(दो)
जो जीवन की धूल चाटकर बड़ा हुआ है,
तूफ़ानों से लड़ा और फिर खड़ा हुआ है,
जिसने सोने को खोदा, लोहा मोड़ा है,
जो रवि के रथ का घोड़ा है,
वह जन मारे नहीं मरेगा,
नहीं मरेगा।
जो जीवन की आग जलाकर आग बना है
फ़ौलादी पंजे फैलाये नाग बना है
जिसने शोषण को तोड़ा, शासन मोड़ा है,
जो युग के रथ का घोड़ा है
वह जन मारे नहीं मरेगा,
नहीं मरेगा।।
(तीन)
एक हथौड़ेवाला घर में और हुआ!
हाथी सा बलवान,
जहाज़ी हाथों वाला और हुआ!
सूरज-सा इंसान,
तरेरी आँखों वाला और हुआ!!
एक हथौड़ेवाला घर में और हुआ!
माता रही विचारः
अँधेरा हरनेवाला और हुआ!
दादा रहे निहारः
सवेरा करने वाला और हुआ!!
जनता रही पुकारः
सुन ले री सरकार!
कयामत ढानेवाला और हुआ!!
एक हथौड़ेवाला घर में और हुआ!
(चार)
हम बड़े नहीं हैं
फिर भी बड़े हैं
इसलिए कि
लोग जहाँ गिर पड़े हैं
हम वहाँ तने खड़े है
द्वन्द्व की लड़ाई भी साहस से लड़े हैं
न दुख से डरे,
न सुख से मरे हैं
काल की मार में
जहाँ दूसरे झरे हैं
हम वहाँ अब भी
हरे-के-हरे हैं।
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, जनवरी-फरवरी 2011
'आह्वान' की सदस्यता लें!
आर्थिक सहयोग भी करें!