पाठक मंच
हम चाहते हैं
एक ऐसी भाषा
जिसमें धड़क उठें
हम तुम्हारे साथ
एक ऐसा समाज
जिसमें हम भी हों शामिल
अपने वजूद के साथ
जैसे कि तुम हो।
हम चाहते हैं
एक ऐसी दुनिया
जहाँ चल सकें हम
तुम्हारे साथ
जहाँ तुम हमारे
सहयोगी हो, सहयात्री हो
साथी हो
हम हमारी जिंदगी की
व्याख्या नहीं चाहते
इसे बदलना चाहते हैं।
अंजना, दिल्ली
प्रिय साथी,
‘आह्वान’ का नया अंक मिला। हमेशा की तरह विचारोत्तेजक था। मारुति सुजुकी मज़दूरों पर आये लेख ने अपनी जटिलता के बावजूद बहुत से भ्रमों का निवारण किया। निश्चित तौर से आज देश के मज़दूर आन्दोलन में प्रचलित अराजकतावादी प्रवृत्तियों के निरन्तर नकार की आवश्यकता है। व्यवस्थित शोषणकारी व्यवस्था को व्यवस्थित प्रतिरोध ही ध्वस्त कर सकता है।
कृत्रिम चेतना पर आया लेख ज्ञानवर्द्धक था। विज्ञान के कॉलम में नियमितता नहीं बन पा रही है, उसे बरकरार रखने का प्रयास करें। पहले के अंकों में कुछ विशेष राजनीतिक फिल्मों की समीक्षाएँ आयीं थीं, उन्हें भी दुबारा शुरू किया जाना चाहिए। फिल्मों का आज के युवाओं की मानसिकता पर जो प्रभाव पड़ता है, उसके मद्देनज़र पूँजीवादी प्रचार का नकार करने के लिए फिल्म समीक्षाएँ दी जानी चाहिए।
एरिक हॉब्सबॉम पर आया लेख न सिर्फ उन्हें याद करता है, बल्कि उन्हें आलोचनात्मक रूप से याद करता है। आह्वान में पहले भी जो राजनीतिक श्रृद्धांजलियाँ छपी थीं, वे उत्कृष्ट थीं। लेकिन पत्रिका की नियमितता को लेकर हमेशा की तरह शिकायत है। कृपया, ऐसी ज़रूरी पत्रिका की नियमितता बरकरार रखें।
सुनील, दिल्ली
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, जनवरी-जून 2013
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