नये गगन में नया सूर्य जो चमक रहा है……

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बाबा नागार्जुन का जन्मशताब्दी वर्ष चल रहा है। जनसाधारण की भाषा में लिखने वाले नागार्जुन को 21 नवम्बर, 2010 को दिल्ली के एक इलाके में कुछ विशिष्ट ढंग से याद किया गया। आमजन के सपनों को अपनी रचना में जुबान देने वाले कवि को आमजनों व साहित्यकर्मियों ने बेहद आत्मीय रूप में अपने आस-पास महसूस किया। सादतपुर (दिल्ली) में तमाम साहित्यकर्मियों, कलाकारों, नौजवानों ने नागार्जुन की जन्मशती के अवसर पर एक साहित्य उत्सव का आयोजन किया। जिसमें बाबा नागार्जुन के साहित्य से जुड़ाव रखने वाले आमजनों के साथ-साथ हिन्दी समाज के ख्यातिलब्ध लेखकों, कलाकारों की बढ़-चढ़कर की गयी यह गतिविधि बेहद महत्त्वपूर्ण है। ख़ासकर ऐसे समय में जब साहित्य व्यापक जनसमुदाय से लगभग दूर होता जा रहा है। जो कि आज ख़ास किस्म की बौद्धिकता और विमर्श का अखाड़ा बन गया है, ऐसे में नागार्जुन के जीवन और रचना-कर्म के अनुरूप यह आयोजन आमजन से जुड़ाव की ओर दिशा बनाने का काम लगता प्रतीत हुआ। जब सुबह-सुबह बच्चों, युवाओं, नागरिकों व साहित्यकर्मियों का टोला कविताओं को गाता फेरा लगा रहा था, तो यह दृश्य देखने योग्य था। हाथों में नागार्जुन की तस्वीरें, कवितांश लिखी तख्तियों समेत गुज़रते लोगों को देखकर गली, मुहल्ले में मौजूद जनों की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी। ‘अमल-धवल गिरि के शिखरों पर, बादल को घिरते देखा है, सादतपुर की इन गलियों ने बाबा को चलते देखा है’। ‘नये गगन में नया सूर्य जो चमक रहा है, मेरी भी आभा है इसमें’। ‘दुनिया कहती दुनियाभर के, मैं कहता सादतपुर के हैं, बाबा अधुनातन पुरखे हैं’। आदि कविता पैरोडी को गाकर बीच-बीच में नारे के रूप में प्रयोग करते हुए प्रभातफेरी निकाली गयी। कार्यक्रम की विधिवत शुरुआत स्कूल के खुले प्रांगण में प्रसिद्ध चित्रकार हरिपाल त्यागी द्वारा बाबा नागार्जुन पर बनाये गये तैलचित्र व कविता पोस्टरों के उद्घाटन के माध्यम से की गयी। इन कविता पोस्टरों में चित्रों सहित बाबा नागार्जुन की हिन्दी कविताओं के साथ-साथ मैथिली, संस्कृत व बाँग्ला भाषा में रची कविताएँ भी थीं। बच्चों ने बाबा नागार्जुन की कविता ‘उन्हें प्रणाम’ को गाकर पेश किया। विष्णुचन्द्र शर्मा, रामकुमार कृषक आदि कवियों ने नागार्जुन पर लिखी अपनी कविता का पाठ किया। नागार्जुन की कविता में मौजूद जनोन्मुखी भाव पाठक को अन्दर की दुनिया से बाहर की दुनिया की ओर ले जाता है, सामाजिक बनाता है। व्यष्टि का समष्टि के प्रति भूमिका तय करने वाली उनकी कविता आज भी इसीलिए जीवित है, क्योंकि उसमें दैनन्दिनी संघर्ष व चुनौतियाँ वर्णित हैं। उनकी कविताओं पर विश्वनाथ त्रिपाठी, मुरली मनोहर प्रसाद सिंह, सुरेश सलिल, सुधीर विद्यार्थी आदि साहित्य-मर्मज्ञों ने अपने विचार प्रकट किये। इस अवसर पर नागार्जुन की किताबों के साथ ही बेहतर जिन्दगी की ओर ले जाने वाली किताबों की प्रदर्शनी भी लगायी गयी। प्रगतिशील साहित्य की यह प्रदर्शनी भी काफी आकर्षण का केन्द्र रही। कार्यक्रम का समापन नागार्जुन पर केन्द्रित दो डाक्यूमेण्टरी फिल्मों का प्रदर्शन करके किया गया। कार्यक्रम का संचालन कवि रामकुमार कृषक, कथाकार महेश दर्पण व हीरालाल नागर ने संयुक्त रूप से किया। ‘नौजवान भारत सभा’ की टीम ने प्रभात फेरी से लेकर पूरे कार्यक्रम में बढ़-चढ़कर भागीदारी की। सादतपुर साहित्य समाज की अगुवाई में हुए इस कार्यक्रम की उल्लेखनीय विशेषता यह रही कि इसे सादतपुर जैसे एक मुहल्ले में मनाया गया। आमजनों की सक्रिय भागीदारी के बूते मनाया गया। एक जनकवि को याद रखने का सबसे बेहतरीन तरीका भी यही है।

मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान,नवम्‍बर-दिसम्‍बर 2010

 

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