क्या विकीलीक्स से कुछ बदलेगा?
अन्तरा घोष
जब विकीलीक्स खुलासा हुआ तो दुनिया के लगभग सभी अख़बारों ने इसे अपनी सबसे बड़ी सुर्खी बनाया। तमाम अख़बारी स्तम्भ लेखकों ने दावा किया कि इस अभूतपूर्व खुलासे ने अमेरिकी डिप्लोमेसी की पोल खोल दी है; अमेरिका को काफी शर्मिन्दगी का सामना करना पड़ रहा है; विश्वभर में अन्य देश अब उस पर थू-थू करेंगे। लेकिन इस खुलासे के दूसरा या तीसरा दिन बीतते-बीतते यह साफ हो गया कि अमेरिकी राजनय की कोई थू-थू नहीं होने वाली। उल्टे अमेरिका का विदेश विभाग डंके की चोट पर कह रहा था कि उसके राजनयिकों ने उसी भाषा में बात की है जिस भाषा में दुनिया के सभी राजनयिक करते हैं। रूस को माफिया राज्य कहने, मेदवेदेव को पुतिन का चेला बताने का रूस से अमेरिका के सम्बन्धों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। वास्तव में, रूसी राष्ट्रपति मेदवेदेव ने स्वयं ही कहा कि राजनयिक तो इसी भाषा में बात करते हैं और अगर हम अपने राजनयिकों के बीच होने वाली बातचीत का खुलासा करें तो अमेरिकियों को उतना ही आनन्द आयेगा। चीन ने भी एलान किया कि अमेरिका से उसके सम्बन्धों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला है। ईरान पर हमले का सुझाव देने वाले सऊदी अरब के शासक से ईरान के सम्बन्ध पर भी कोई प्रभाव नहीं पड़ा। इसका कारण मेदवेदेव ने सही ही बताया है। वास्तव में, जिन संवादों को ‘टॉप सीक्रेट’ बताकर प्रचारित किया गया, वे उतने गोपनीय हैं ही नहीं। विकीलीक्स ने उन्हीं तथ्यों के प्रामाणिक दस्तावेज़ खोल दिये हैं जिनके बारे में मध्यवर्ग का एक प्रबुद्ध नागरिक भी जानता है। वास्तव में, दुनियाभर के पूँजीवादी राज्यों के प्रमुखों और राजनयिकों के बीच जो सबसे गोपनीय संवाद होता है, वह किसी इलेक्ट्रॉनिक माध्यम के ज़रिये नहीं होता। वह सिर्फ मुँह से कान के बीच होता है। और वहाँ पर ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ का नियम साफ तौर पर काम करते हुए देखा जा सकता है। अमेरिकी राजनयिक अफगानिस्तान के अपने एजेण्ट शासकों को जिस भाषा में धमकाते हैं, या पाकिस्तान पर जिस भाषा में धौंस-पट्टी दिखलाते हैं, अगर उसे खोल दिया जाये तो आप हतप्रभ रह जायेंगे। दुनियाभर के पूँजीवादी देश आपस में जिस भाषा में मोलभाव और लेन-देन करते हैं, अगर उसे खोलकर रख दिया जाये तो उदार से उदार व्यक्ति भी जुगुप्सा से भर जायेगा। वे संवाद तो कभी खुलने वाले ही नहीं हैं। इसलिए यह उम्मीद करना व्यर्थ है कि पूँजीवादी राजनय में इस खुलासे के परिणामस्वरूप कोई भी परिवर्तन आयेगा। यह इस बात से भी साबित हो जाता है कि दुनियाभर के प्रमुख राष्ट्राध्यक्षों ने यह बोल दिया है कि इस खुलासे से उनके अमेरिका से सम्बन्धों पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। जहाँ तक अमेरिका द्वारा इराक और अफगानिस्तान में किये गये युद्ध अपराधों के खुलासे की बात है तो इसका भी कोई असर नहीं होने वाला है। जिस साहसी अमेरिकी सैनिक ने विकीलीक्स के संस्थापक जूलियन असांजे को अमेरिकी राजनय और सैन्य अधिकारियों के बीच हुए गोपनीय संवादों के 92,000 केबल भेजे, उसने यह सोचा होगा कि अमेरिकी युद्ध अपराधों की जघन्यता अमेरिका और दुनियाभर में एक ऐसा सार्वजनिक असन्तोष और गुस्सा पैदा करेगी कि अमेरिका को शर्मसार होकर अफगानिस्तान पर थोपे गये युद्ध को वापस लेना पड़ेगा। उसे लगा होगा कि अमेरिकी राजनयिकों की ये स्वीकारोक्तियाँ कि अमेरिका न इराक में अपने लक्ष्य में सफल हो पाया था और न ही अफगानिस्तान में हो पायेगा, अमेरिका की विदेश नीति में कोई बुनियादी परिवर्तन लायेगा। लेकिन ऐसा भी कुछ नहीं हुआ। वास्तव में तो बिल्कुल इसका उलटा हुआ। विकीलीक्स के खुलासे अफगानिस्तान युद्ध पर अमेरिकी कांग्रेस के मतदान के एक दिन पहले हुए, यानी उसकी पूर्ववेला पर। लेकिन अमेरिकी कांग्रेस ने विकीलीक्स के खुलासे के ठीक बाद अफगानिस्तान में युद्ध को तेज़ कर देने के पक्ष में और भारी बहुमत से मतदान किया। अफगानिस्तान युद्ध के लिए 33 खरब डॉलर ख़र्च करने की अनुमति देने और अमेरिकी सैनिकों की संख्या में 30,000 की बढ़ोत्तरी करने के पक्ष में 308 वोट पड़े जबकि इसके विपक्ष में मात्र 114 वोट। स्पष्ट है कि विकीलीक्स के खुलासे का अमेरिकी शासक वर्ग की नीतियों पर कोई असर नहीं पड़ने वाला। अगर कोई यह समझता है कि किसी किस्म के भण्डाफोड़ या खुलासे के चलते लालची, आदमख़ोर, और बर्बर साम्राज्यवादी अचानक सन्त में तब्दील हो जायेंगे तो यह कोरी फन्तासी होगी। इस खुलासे के बाद व्हाइट हाउस के एक अधिकारी ने बताया कि इन खुलासों में जिन तथ्यों का खुलासा किया गया है, उन्हें जानने के बाद ही ओबामा ने अफगानिस्तान युद्ध को ‘लो इण्टेंसिटी कन्फिलक्ट’ से ‘हाई इण्टेंसिटी कन्फिलक्ट’ में बदलने का आदेश दिया था। विकीलीक्स ने खुलासा किया कि अमेरिकी सेना में एक गुप्त विंग काम करता है, जिसका अनौपचारिक नाम है ‘डेथ स्क्वॉड’ और औपचारिक नाम है ‘टास्क फोर्स 373’। इस गुप्त विंग का काम होता है दुश्मन आबादी में आतंक पैठाने के लिए बिना किसी गिरफ्तारी या मुकदमे के खुलेआम नागरिकों समेत बागियों की नृशंस तरीके से हत्याएँ करना। विकीलीक्स के खुलासे से पता चला कि इराक और अफगानिस्तान दोनों युद्धों में अमेरिका ने जानबूझकर और सोचे-समझे तरीके से डेथ स्क्वॉड्स का इस्तेमाल किया है। इन दस्तों ने हज़ारों नागरिकों, जिनमें वृद्ध, स्त्रियाँ और बच्चे भी शामिल हैं, की अमानवीय तरीके से हत्याएँ कीं और अधिकांश मामलों में मारने से पहले यौन उत्पीड़न और यातनाएँ भी दीं। लेकिन इस दुनिया में कौन नहीं जानता है कि अमेरिकी बर्बर ऐसा करते हैं? जब आबू ग़ारेब का खुलासा हुआ तो क्या हुआ? जब ग्वाण्टानामो बे का खुलासा हुआ तो क्या हुआ? जब इराक और फिलिस्तीन में साम्राज्यवादियों के युद्ध अपराधों का खुलासा हुआ तो क्या हुआ? कुछ भी नहीं! इस वर्ष के शुरू में ही लन्दन के अख़बार ‘दि टाइम्स’ ने प्रमाणों सहित खुलासा किया कि अमेरिकी सैनिकों ने दो गर्भवती अफगान औरतों को और एक बच्ची को बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया। क्या हुआ? कुछ भी नहीं! वास्तव में, ऐसे युद्ध अपराधों का अमेरिकी इतिहास पुराना है। लेकिन कभी भी इन युद्ध अपराधों के खुलासे से कुछ भी नहीं हुआ है। सन् 2003 में अमेरिका द्वारा चलाये जा रहे एक गुप्त ऑपरेशन फीनिक्स का भण्डाफोड़ हुआ। इस गुप्त कार्रवाई के तहत अमेरिका ने प्रशिक्षित हत्यारे तैयार किये जो अमेरिकी साम्राज्यवादी हितों की मुख़ालफत करने वाली ताकतों के नेताओं की हत्याओं को अंजाम दिया करते थे। इस खुलासे के बावजूद कुछ भी नहीं हुआ। अभी भी अमेरिकी गुप्तचर एजेंसियाँ ऐसी ही कार्रवाइयों को अंजाम दे रही हैं। अमेरिका का वाटरलू साबित हुए वियतनाम युद्ध में तो अमेरिकी बर्बरता के न जाने कितने खुलासे हुए थे, लेकिन इसके बावजूद अमेरिकी हत्यारे अपने क्रूरतम अपराधों को बदस्तूर अंजाम देते रहे, जब तक कि वियतनाम की कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में उन्हें वहाँ से खदेड़ नहीं दिया गया। जाते-जाते हार की हताशा में अमेरिकी सेना ने जो युद्ध अपराध किये, वे नात्सी जर्मनी की याद दिलाते हैं। 1968 में दो खोजी पत्रकारों – रॉन रिडनेआवर और सीमोर हर्श ने माई लाई नरसंहार का खुलासा किया जिसमें अमेरिकी सेना ने एक गाँव के 500 पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को बेहद ठण्डे तरीके से पहले बुरी तरह पीटा, उनका यौन उत्पीड़न किया, उन्हें अमानवीय यातनाएँ दीं और फिर उनकी जघन्य हत्या कर दी। इस खुलासे के बाद अमेरिकी सेना ने अपने अभियान वियतनाम में और तेज़ कर दिये और यह युद्ध आने वाले सात वर्षों तक जारी रहा। आज तक के इतिहास ने तो यही साबित किया है कि युद्ध अपराधों के खुलासे के बाद साम्राज्यवादियों की बर्बरता और अधिक बढ़ती है। और साम्राज्यवादी अपने देश की जनता के बीच सघन और सतत रूप से यह प्रचार करते हैं कि ‘‘जनतन्त्र’‘ की दूरगामी तौर पर स्थापना और रक्षा के लिए तात्कालिक तौर पर ऐसे काम करने पड़ते हैं। ‘‘अमेरिकी स्टाइल जनतन्त्र’‘ प्राप्त करने के लिए ‘तीसरी दुनिया’ के देशों की जनता को यह कीमत तो चुकानी ही पड़ेगी। इस प्रचार को अंजाम देने में आमतौर पर उदारवादी और सामाजिक जनवादी काफी आगे रहते हैं। एक लम्बे समय तक प्रचार के बाद जनता का एक हिस्सा यह मान भी बैठता है। जो हिस्सा नहीं मानता और ऐसे युद्धों के खि़लाफ सड़कों पर उतरता है, उसके विरोध से साम्राज्यवादी देशों की विदेश नीति में कोई विशेष परिवर्तन नहीं होता। ऐसे विरोध अक्सर बड़े तो होते हैं लेकिन रस्मी बनकर रह जाते हैं और लम्बी दूरी में साम्राज्यवादी वर्चस्व (हेजेमनी) द्वारा सहयोजित कर लिये जाते हैं। अक्सर साम्राज्यवादी मीडिया उनका इस्तेमाल भी यह साबित करने में करता है कि ‘देखो! अमेरिकी जनतन्त्र कितना सहिष्णु है! इसमें अपनी आलोचना को सुनने का धैर्य है!’ और दुनियाभर का मध्यवर्ग इस दावे को हज़म कर लेता है। इतिहास गवाह है कि साम्राज्यवादी युद्धों का अन्त कभी भी भण्डाफोड़ों और खुलासों से नहीं हुआ है। विकीलीक्स के भण्डाफोड़ से भी ऐसा कुछ नहीं होने वाला है। होगा बस इतना कि अब राजनयिक संचारों को और सख़्त बना दिया जायेगा और उनकी गोपनीयता को और गहरा बना दिया जायेगा। मुँह से कान तक होने वाले संवादों का परिमाण और बढ़ जायेगा। इसके साथ ही किसी तरह पूँजीवाद अपने सड़ते-गलते और मवाद फेंकते घावों को छिपाने के लिए थोड़ा सचेत हो जाता है। इस तरह के खुलासे अक्सर एक सन्तुलनकारी कार्रवाई का काम करते हैं। निश्चित रूप से विकीलीक्स ने साम्राज्यवादी अपराधों का दस्तावेज़ी प्रमाण मुहैया कराकर अमेरिका के साम्राज्यवाद के अपराधों पर पड़े बेहद झीने परदे को थोड़ा-सा उठा दिया है। लेकिन ऐसे किसी भी खुलासे का अर्थ तभी हो सकता है जब उसमें कुछ ऐसा नया हो जिसका अन्दाज़ा भी जनता को न हो और जब ऐसे खुलासे का संगम इस पूरी बर्बर और अमानवीय विश्व पूँजीवादी व्यवस्था को उखाड़ फेंकने की कोशिशों के साथ हो। यह सोचना एक कोरी कल्पना है कि महज़ खुलासे और भण्डाफोड़ कोई परिवर्तन ला सकते हैं। पूँजीवाद को एक जनक्रान्ति के ज़रिये उखाड़ फेंकने के कामों के इरादे के साथ किये गये खुलासे ही किसी भी रूप में कारगर हो सकते हैं।
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान,नवम्बर-दिसम्बर 2010
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