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पाठक मंच
आखिर ! शिक्षा का सही मुक़ाम कहाँ है?
साथियों,
नमस्कार। मेरी चिठ्ठी आज के सामाजिक दायरे में शिक्षा के अहम सवाल को लेकर है। कहीं भी जाओ तो लोग कहते है कुछ करते क्यों नहीं? तकनीकी शिक्षा लेकर कुछ कमाते क्यों नहीं? आखिर शिक्षा का वो मुकाम कहाँ गया जिसके मूल में निहित है सभ्य समाज, भ्रान्तियों को दूर करने का ज्ञान, मानवता, जो कि अब हाशिये पे भी नहीं मिलते। नये-नये बाज़ार यहाँ रोज़ खुलते हैं जो कि ये बताते हैं कि कितना निवेश करोगे तो कितना मुनाफा मिलेगा। और किस शिक्षा की माँग सबसे ज्यादा है? ‘आह्वान’ के पिछले अंक में मन्दी के बारे में लेख पढ़ा था जिसकी जड़ें आज तीसरी दुनिया के देशों तक आ पहुँची हैं। मन्दी के दौरान कितने लोग बेरोज़गारी की लाइन में शामिल हो गये हैं, इससे कुण्ठित होकर आत्महत्या कर रहे हैं या फिर अपने अनुजों को सीख दे रहे हैं कि ‘देखा! काबिलियत गयी बाट खोजने, इस बाज़ार में खड़े होकर कम श्रम मूल्य पर अपनी नीलामी करोगे तो तुम्हारी जिन्दगी के लिए ज़रूरी कुछ टुकड़े तुम्हारे सामने फेंक दिये जायेंगे।’ ऐसे समय में ऐसी समस्याओं से जूझता युवाओं का वर्ग खोखली शाखाओं पर बैठा हुआ खोखले सपने देख रहा है। तो एक तरफ ऐसे लोग भी हैं जो इस बाज़ारू शिक्षा के खिलाप़फ़ एक मुहिम चला रहे हैं और व्यवस्था से निजात दिलाने के लिए शिक्षा के ताने-बाने को खड़ा कर रहे हैं। आज मन जरा बोझिल था। सोचा साथियों को चिठ्ठी लिखूँ क्योंकि मेरा सामाजिक परिवेश भी यही है जिसका आधार बाज़ारू पूँजीवादी शिक्षा पर बना हुआ है। ‘आह्वान’ के लेख मेरे साथी बनकर मेरे साथ खड़े हैं उन सवालों का जवाब देते हुए जो आज हर युवा ढूँढ रहा है।
आपका साथी,
रोहित, गोरखपुर
सराहनीय प्रयास
आदरणीय साथी अभिनव जी,
आपके द्वारा प्रेषित ‘मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान’ पत्रिका मिली। सरसरी निगाह से मैंने पत्रिका को देखा। निःस्सन्देह आप एक बड़ा कार्य कर रहे हैं। नई दुनिया का सपना आप देख रहे हैं। सर्वहारा समाज की मुक्ति का सपना! जीवन को गढ़ने का सपना!! परिवर्तन का सपना!!! और इसके लिए आप प्रयत्नशील हैं। मैं समझता हूँ ‘आह्वान’ आपके इसी महती प्रयास की अभिव्यक्ति है। आप सभी साथियों को मेरा सलाम! मैं अपने स्तर से सभी तरह से सहयोग करने का प्रयास करूँगा। इस पत्र के साथ ही ‘हिमालय प्रहरी’ की कुछ प्रतियाँ भेज रहा हूँ। मैं चाहूँगा कि निकट भविष्य में हमारा सम्बन्ध प्रगाढ़ हो तथा हम एक-दूसरे के सहयोगी बन सके।
आपका अभिन्न,
राजेन्द्र प्रसाद सिंह
सम्पादक- ‘हिमालय प्रहरी’
विज्ञान पर सामग्री देते रहें
प्रिय साथी,
‘मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान’ का मार्च-अप्रैल अंक मिला। जानकर बेहद खुशी हुई कि यह प्रतीक्षित पत्रिका अब तीन माह की बजाय दो माह पर निकला करेगी। मेरी बधाइयाँ। विज्ञान पर नया स्तम्भ देखकर काफी प्रसन्नता हुई। मेरे विचार में इस स्तम्भ को नियमितता के साथ चलाया जाना चाहिए। विज्ञान का सवाल महज़ अकादमिक सवाल नहीं है बल्कि पूरी जीवन-दृष्टि का सवाल है। ऐसे में विज्ञान को लेकर सही क्रान्तिकारी दृष्टिकोण होना आवश्यक है। इस सन्दर्भ में यह नया स्तम्भ प्रशंसनीय है। उम्मीद है, इस स्तम्भ को लगातार जारी रखा जाएगा।
शहीदे-आज़म भगतसिंह के जेल नोट्स के कुछ नये अंश देखकर यह पुरानी छवि और सुदृढ़ हो गयी कि भगतसिंह बीसवीं सदी के भारत के महान और साहसी क्रान्तिकारी ही नहीं थे बल्कि अगुआ चिन्तक भी थे। हावर्ड जिन, बरेली के दंगों और बजट पर आयी सामग्री प्रशंसनीय थी। समाज परिवर्तन की मुहिम में निश्चित रूप से ‘आह्वान’ एक धारदार हथियार का काम कर रहा है। मेरा साथ सहयोग सतत् उपलब्ध रहेगा।
क्रान्तिकारी अभिवादन के साथ,
जोगिन्दर, ग़ाजियाबाद।
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, मई-जून 2010
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