चन्द्रशेखर आज़ाद के शहादत दिवस (27 फरवरी) से भगतसिंह के शहादत दिवस (23 मार्च) तक दिल्ली में चला क्रान्तिकारी जागृति अभियान

दिल्ली संवाददाता

आज़ादी के 62 साल बाद का हिन्दुस्तान क्या वैसा ही है जिसका सपना दिलों में लेकर चंद्रशेखर आज़ाद, भगतसिंह, और उनके हज़ारों क्रान्तिकारी साथियों ने हँसते-हँसते मौत को गले लगाया था? जानलेवा महँगाई, बेरोज़गारी, देशी-विदेशी पूँजीपतियों को लूट की खुली छूट, ग़रीबी के महासागर में खड़ी ऐयाशी की मीनारें, क़दम-क़दम पर फ़ैला भ्रष्टाचार – क्या यही है शहीदों के सपनों का हिन्दुस्तान? क्या देश के करोड़ों-करोड़ मेहनतकश और नौजवान इस अन्यायी और ज़ालिम व्यवस्था में ऐसे ही घुट-घुटकर जीते रहेंगे? – इन्हीं जलते सवालों को लेकर नौजवान भारत सभा, बिगुल मज़दूर दस्ता, स्त्री मज़दूर संगठन और जागरूक नागरिक मंच के कार्यकर्ता ‘क्रान्तिकारी जागृति अभियान’ के दौरान लोगों के बीच गये। और उन्होंने इन सवालों के जवाब भी लोगों के बीच रखे। एक महीने के दौरान हुई दर्जनों सभाओं और कार्यक्रमों तथा बाँटे गये पर्चों में अभियान टोली ने कहा कि भगतसिंह और उनके साथियों की शहादत की 80वीं बरसी का यही सन्देश है कि हम मेहनतकश इन महान इन्क़लाबियों के जीवन और विचारों से प्रेरणा लेकर पस्तहिम्मती के अँधेरे से बाहर आयें और पूँजी की ग़ुलामी की बेड़ियों को तोड़ने के लिए कमर कसकर उठ खड़े हों।

यह अभियान मुख्य रूप से उत्तर-पश्चिम दिल्ली के समयपुर, बादली, शाहाबाद डेयरी, नरेला और रोहिणी के विभिन्न इलाकों में तथा दिल्ली की सीमा से लगे हरियाणा के कुण्डली औद्योगिक क्षेत्र और उससे लगी मज़दूर बस्तियों में चलाया गया। अभियान का मुख्य ज़ोर क्रान्तिकारियों के विचारों को मज़दूरों के बीच लेकर जाने और एक नयी क्रान्तिकारी शुरुआत के लिए मज़दूरों को जगाने पर था। अभियान टोली ने इस बात को रखा कि भगतसिंह और उनके साथी एक ऐसी आज़ादी की बात करते थे जिसमें हुकूमत की बागडोर वास्तव में मज़दूरों के हाथ में हो। वे अंग्रेज़ी गुलामी के साथ ही पूँजीवाद के ख़ात्मे की बात कर रहे थे। वे एक ऐसी समाजवादी व्यवस्था क़ायम करना चाहते थे जिसमें उत्पादन मुनाफ़े के लिए नहीं, बल्कि समाज की ज़रूरत के हिसाब से हो, जिसमें सबको रोज़गार मिले, सभी बच्चों को एक समान मुफ़्त शिक्षा और मुफ़्त दवा-इलाज मिले।

अभियान की शुरुआत बादली के राजा विहार इलाके की मज़दूर बस्ती में 27 फ़रवरी को चन्द्रशेखर आज़ाद की याद में हुए कार्यक्रम से हुई। बस्ती की मुख्य सड़क के किनारे मंच लगाकर हुए इस कार्यक्रम में सैकड़ों लोगों ने भाग लिया। करीब तीन घण्टे तक चले कार्यक्रम में दो छोटे नाटक और क्रान्तिकारी गीत पेश किये गये और कार्यकर्ताओं ने विस्तार से मज़दूरों की जिन्दगी की चर्चा करते हुए अपने हक़ों के लिए संघर्ष के वास्ते एकजुट होने का आह्नान किया। उन्होंने कहा कि आज  बारह-चौदह घण्टे की दिहाड़ी खटने के बाद भी मज़दूरों की बुनियादी ज़रूरतें पूरी नहीं होतीं। सरकार के बनाये हुए श्रम क़ानूनों के हिसाब से हमें जो मिलना चाहिए, वह भी नहीं मिलता। यूनियनों के नेता मालिकों के दलाल हो गये हैं। चुनावी पार्टियाँ पूँजीपतियों की टुकड़खोर हैं। इस देश की सारी तरक्की मेहनतकशों की बदौलत है, पर उन्हें इस तरक्की की जूठन भी नहीं मिलती। अब हमें एक नयी शुरुआत करनी ही होगी।

इससे पहले 22 फ़रवरी से ही कार्यक्रम की तैयारी के लिए अभियान टोली ने सूरज पार्क और राजा विहार की बस्तियों में प्रचार शुरू कर दिया था। मज़दूरों  के काम पर निकलने से पहले सुबह 7 से 9 बजे के बीच गलियों में नारे लगाते हुए और छोटी-छोटी नुक्कड़ सभाएँ करते हुए मज़दूरों और उनके परिवारों से सम्पर्क किया जाता था तथा बड़े पैमाने पर पर्चे बाँटे जाते थे। दिन में कारखाना गेटों के आसपास सभाएँ की जातीं और फि़र शाम को काम से लौटते हुए मज़दूरों के बीच बात रखने तथा पर्चे बाँटने का कार्यक्रम चलता। इस तरह पूरे इलाके की अधिकतम मेहनतकश आबादी तक पहुँचने का प्रयास किया गया।

अन्तरराष्ट्रीय स्त्री दिवस (8 मार्च) के मौके पर 7 मार्च को राजा विहार में सांस्कृतिक कार्यक्रम और जनसभा की गयी। इस मौके पर खास तौर पर तैयार किये गये नाटक ‘कहानी एक मेहनतकश औरत की’ का भी मंचन किया गया।  इस मौके पर स्त्री मज़दूर संगठन की कार्यकर्ताओं ने मज़दूर औरतों का आह्वान करते हुए कहा कि गुलामी की नींद सोने और किस्मत का रोना रोने का समय बीत चुका है। ज़ोरो-जुल्म के दम घोंटने वाले माहौल के खिलाफ़ एकजुट होकर आवाज़ उठाने का समय आ गया है। हमें मज़दूरों के हक की सभी लड़ाइयों में कन्धे से कन्धा मिलाकर शामिल होना होगा। साथ ही औरत मज़दूरों की कुछ अलग समस्याएँ और अलग माँगें भी हैं। इसलिए हमें अपना अलग संगठन भी बनाना होगा। इसीलिए स्त्री मज़दूर संगठन बनाकर एक नयी शुरुआत की जा रही है। औरतों को समाज और घर के भीतर भी हक़ और बराबरी की लड़ाई लड़नी है। मर्द मज़दूर साथियों से हमारा यही कहना है कि हमें ग़ुलाम समझोगे तो तुम भी गुलाम बने रहोगे। मेहनतकश औरत-मर्द मिलकर लडे़ंगे, तभी वे अपनी लड़ाई जीत पायेंगे।

14 मार्च को शाहाबाद डेयरी इलाके के मुख्य बाज़ार में एक बड़ी जनसभा की गयी। इससे पहले भी पूरे इलाके में कई दिनों तक सुबह से शाम तक सघन प्रचार और जनसम्पर्क अभियान चलाया गया।

15 से 18 मार्च तक अभियान टोली ने नरेला, भोरगढ़, शाहपुर गढ़ी और कुण्डली तथा प्याऊ मनियारी के मज़दूर इलाकों में प्रचार अभियान चलाया तथा हज़ारों पर्चे बाँटे।

21 मार्च को शाहाबाद डेयरी में ही तीन झुग्गी बस्तियों के बीच के एक मैदान में बड़ी जनसभा और सांस्कृतिक कार्यक्रम किया गया जिसके बाद एक विशाल मशाल जुलूस निकाला गया। जुलूस में स्थानीय बस्तियों के सैकड़ों स्त्री, पुरुष मज़दूर, नौजवान और बच्चे भी शामिल हुए। ‘भगतसिंह को याद करेंगे, ज़ुल्म नहीं बर्दाश्त करेंगे’, ‘भगतसिंह तुम जिन्दा हो, हम सबके संकल्पों में’, ‘भगतसिंह का सपना आज भी अधूरा, मेहनतकश और नौजवान उसे करेंगे पूरा’ जैसे गगनभेदी नारे लगाते हुए जुलूस की मशालों से पूरी बस्ती रौशन हो उठी और सबके दिल जोश से भर उठे।

22 और 23 मार्च को रोहिणी के विभिन्न सेक्टरों में साइकिल रैली निकाली गयी तथा जगह-जगह नुक्कड़ सभाएँ की गयीं। 23 मार्च की शाम को राजा विहार की बस्ती से मशाल जुलूस निकाला गया जो पूरे राजा विहार और बादली इण्डस्ट्रियल एरिया का चक्कर लगाता हुआ राजा विहार के मैदान में आकर समाप्त हुआ।

मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, मार्च-अप्रैल 2010

 

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