एक घर हो सपनों का…
विवेक
अभी हाल ही में डी.डी.ए. आवास योजना–2008 और दिल्ली सरकार की राजीव रत्न आवास योजना शुरू हुई । दोनो ही योजनाओं ने दिखा दिया कि वास्तव में एक बहुत बड़ी आबादी के लिए आवास लेना एक सपने जैसा है । डी.डी.ए. आवास योजना–2008 में शुरुआती दो दिनों में एक लाख चालीस हजार फार्म बिके और आवेदन कि तारीख खत्म होने तक सम्भावना है कि बीस लाख फार्म बिक जायेंगे । जबकि डी.डी.ए. के पास केवल पाँच हजार फ्लैट ही हैं । ऐसे में अगर पाँच लाख आवेदन भी होते हैं तो एक के लिए भी फ्लैट निकलने की सम्भावना हजारवें हिस्से के बराबर है । ठीक ऐसे ही हालत राजीव रत्न आवास योजना के हैं । फार्म बिक्री केन्द्र पर रात से ही लम्बी लाइन लग जाती है और हर सुबह फार्म के लिए मारा–मारी होती है, पुलिस का लाठी–चार्ज होता है, एक दो सिर फूटते हैं और कुछ को फार्म मिल जाते हैं ।
हालांकि ये वे लोग हैं जो एक लाख से पन्द्रह लाख खर्च करके फ्लैट खरीदने का सपना देख सकते हैं, लेकिन एक बहुत बड़ी आबादी ऐसी भी है जो गन्दी बस्तियों में रहने के लिए ही मजबूर है । अकेले भारत में लगभग 17 करोड़ लोग शहर की गन्दी बस्तियों में रहने के लिए मजबूर हैं ।
ऐसे में सबसे पहले यह जाना जाये कि आखिर आवास समस्या का कारण क्या है ।
पहली बात तो यह है कि पूँजीवादी व्यवस्था में ऐसी सामाजिक समस्या बनी ही रहती है क्योंकि जिसमें मेहनतकश जनसाधारण कि विशाल संख्या सिर्फ अपने श्रम के बल पर अपना और अपने परिवार का गुजारा करती है । और बेरेाजगार मजदूरों की एक बहुत बड़ी संख्या फैक्ट्री–कारखानों के बाहर रिजर्व सेना के रूप में खड़ी रहती है । और साथ ही गाँवों और पिछड़े क्षेत्रों से बहुत बड़ी आबादी रोजी–रोटी के लिए औद्योगिक शहरों में आती रहती है इनकी पहली जरूरत सिर्फ दो समय का भोजन का जुगाड़ करना ही होता है, बुनियादी नागरिक अधिकार तो दूर की बात है ऐसे में शहरों, महानगरों के पास मजदूर बस्ती बसती जाती है एक तरफ गगनचुम्बी इमारतें, 15–20 कमरों वाली कोठियाँ होती हैं और दूसरी तरफ रहने को छत भी नहीं होती । इसलिए इस व्यवस्था में ये असमानता और ये समस्याएँ बनी ही रहेंगी ।
फिर आवास समस्या का समाधान क्या हो
आवास समस्या का समाधान आवास समस्या के कारणों में ही छिपा है । ‘‘आवास समस्या को सिर्फ तब ही हल किया जा सकता है जब समाज का इतना रूपांतरण किया जा चुका हो कि शहर और गाँव के बीच विषमता का उन्मूलन करने की शुरुआत की जा सके ।’’ (एंगेल्स, आवास समस्या) । जाहिर है यह रूपांतरण तब तक नहीं हो सकता जब तक ऐसी व्यवस्था रहेगी जिसके केन्द्र में मुनाफा होगा । यह रूपांतरण तब ही हो सकता है जब ऐसी व्यवस्था हो जिसके केन्द्र में मानव हो । एंगेल्स ने आवास समस्या के लेख में कहा है ‘‘आवास समस्या अथवा मजदूरों की स्थिति को प्रभावित करने वाली किसी भी सामाजिक समस्या के किसी अलग–थलग समाधान की आशा करना मूर्खता है । समाधान पूँजीवादी उत्पादन रीति के उन्मूलन और सभी निर्वाह तथा सभी श्रम उपकरणों के स्वयं मजदूर वर्ग द्वारा हस्तगतकरण में निहित है ।’’
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, अक्टूबर-दिसम्बर 2008
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