भाजपा भ्रष्टाचार का विरोध कैसे करेगी?

हरिशंकर परसाई

साधो, भारतीय जनता पार्टी भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन करने वाली है। सबसे निरर्थक आन्दोलन भ्रष्टाचार के विरोध का आन्दोलन होता है। भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन से कोई नहीं डरता। एक प्रकार का यह मनोरंजन है जो राजनैतिक पार्टी कभी-कभी खेल लेती है, जैसे कबड्डी का मैच। इससे न सरकार घबड़ाती, न भ्रष्टाचारी घबड़ाते, न मुनाफ़ाखोर, न कालाबाज़ारी। सब इसे शंकर की बारात समझकर मजा लेते हैं।
मगर साधो, कठिनाई यह है कि कोई पार्टी करे तो क्या करे? जैसे चन्द्रजीत यादव करें तो क्या करें? इस प्रश्न से घबड़ाकर चन्द्रजीत यादव ने बेकारी दूर करने के लिए दो दिन का उपवास कर डाला। चन्द्रजीत यादव के दो दिन रोटी नहीं खाने से बेकारी कैसे मिटेगी, यह साधुओं की समझ में नहीं आता। बेकारी व्यवस्था, शिक्षा और अर्थनीति के कारण है। लोग इसलिए बेकार थोड़े ही हैं कि चन्द्रजीत यादव दाल-रोटी खा रहे हैं।
साधो, भारतीय जनता पार्टी के सामने भी यही भयंकर सवाल है – करें तो करें क्या? पहले यह पार्टी जनसंघ थी और गोरक्षा-जैसे उत्तेजक आन्दोलन करती थी। मगर वह गाय अब दूध नहीं देती, सिर्फ़ गोबर देती है। इसलिए वह विनोबा के आश्रम में पड़ी-पड़ी जुगाली करती है। भारतीय जनता पार्टी आन्दोलन न करे तो पार्टी की इमेज कैसे रहे? विदेश नीति पर आन्दोलन कर नहीं सकती। धर्म-परिवर्तन पर आन्दोलन के लिए ज़ोरदार वातावरण ही नहीं बना । मज़दूर आन्दोलन कर नहीं सकती, क्योंकि यह कम्युनिस्टों की हरक़त है। मजबूर होकर उसे भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन करना पड़ रहा है।
साधो, वैसे भ्रष्टाचार का विरोध करने के लिए सबसे क़ाबिल पार्टी भारतीय जनता पार्टी ही है। इसमें कोई भ्रष्टाचारी नहीं है। इस पार्टी में व्यापारी बहुत हैं, मगर वे सब भ्रष्टाचारहीन लोग हैं। ठेकेदार हैं, वे भी भ्रष्टाचारी नहीं हैं। सरकारी नौकर हैं, वे भी भ्रष्टाचार नहीं करते। जब भारतीय जनता पार्टी का जुलूस निकलता है या सभा होती है, तो उसमें छँटे हुए सदाचारी और ईमानदार लोग होते हैं। तुम साधु कभी-कभी दुष्टों की तरह बात करते हो। कहते हो कि एक कालाबाज़ारी भी क्या भारतीय जनता पार्टी का सदस्य होने से ईमानदार हो जाता है? मैं कहता हूँ कि हो जाता है। यह एक आध्यात्मिक चमत्कार है। अब तुम कहोगे कि गुरु, जब यह पार्टी जनसंघ नाम से जनता सरकार में थी, तब क्या ये लोग भ्रष्टाचार नहीं करते थे। कितने काण्डों की चर्चा तब चलती थी। साधो, वह सब भ्रष्टाचार नहीं था। एक नाटक था, लोक-शिक्षा के लिए। जनता को शिक्षित किया जा रहा था कि राजनैतिक पद पर रहकर भ्रष्टाचार कैसे होता है।
साधो, भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन कैसे होगा? वैसे ही होगा जैसे आन्दोलन होते हैं। जुलूस निकालेंगे, जो नारा लगायेंगे – भ्रष्टाचार कौन बन्द करे। जो हमारे जुलूस में है या बाहर? जो हमारे लोग हैं, वे भ्रष्टाचार बन्द नहीं करें। दूसरे लोग भ्रष्टाचार बन्द कर दें। बाज़ार से जुलूस निकलेगा। नारे लगेंगे कालाबाज़ारी बन्द करो। याने जो हमारे जुलूस में हैं, वे तो कालाबाज़ारी करेंगे। जो हमारे लोग दूकानों पर बैठे हैं, वे भी करेंगे। बाकी सब कालाबाज़ारी बन्द करो। सरकारी दफ़्तरों के सामने नारा लगाते हुए धरना देंगे कि भ्रष्टाचार बन्द करो और भीतर मजे में लेन-देन चल रहा होगा।
साधो, इस देश में हर आदमी दूसरे को सदाचारी बनाना चाहता है कि मैं तो भ्रष्टाचार करूँ पर दूसरा न करे, इसलिए नारे लगाऊँ। कांग्रेस की सरकार है तो भारतीय जनता पार्टी भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन करती है। जब जनता पार्टी सरकार थी तब कांग्रेस भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन करती थी। सदाचार, ईमान- दारी, सद्गुण बड़े मूल्यवान हैं। पार्टियाँ इतनी स्वार्थी नहीं हैं कि ऐसे सद्गुण अपने पास रखें। वे दूसरों को बाँट देती हैं। ख़ुद दुर्गुणों से काम चला लेती हैं। तुम साधुओं में जो तस्करी करते हों, बच्चे चुराते हों, चोरी से अफ़ीम बेचते हों, औरतें भगाते हों, वे सब भारतीय जनता पार्टी के भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन में शरीक़ हो जाओ।

 (मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, जुलाई-अगस्त 2024)

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