एमसीडी चुनावों में क्रान्तिकारी मज़दूर मोर्चा की भागीदारी : एक राजनीतिक समीक्षा व समाहार

प्रवक्ता (क्रान्तिकारी मजदूर मोर्चा)

दिल्ली नगर निगम के चुनावों में इस बार तीन वॉर्डों (वज़ीरपुर, करावल नगर, और खजूरी) से क्रान्तिकारी मज़दूर मोर्चा ने अपने उम्मीदवार खड़े किये थे। इन तीनों वार्डों पर मज़दूर वर्ग के प्रतिनिधियों का प्रदर्शन अपेक्षानुरूप नहीं रहा। वज़ीरपुर में क्रान्तिकारी मज़दूर मोर्चा के प्रतिनिधि 113 वोटों के साथ 9 प्रतिनिधियों में 7वें स्थान पर, करावल नगर में योगेश स्वामी 196 वोटों के साथ 23 उम्मीदवारों में 14वें स्थान पर और खजूरी में बीना सिंह 32 वोटों के साथ 13 प्रत्याशियों में से 12वें स्थान पर रहे। निश्चित रूप से, यह परिणाम अपेक्षा के प्रतिकूल हैं। इन तीनों इलाकों में चुनाव में भागीदारी और नतीजों की एक समीक्षा ज़रूरी है, ताकि पूँजीवादी चुनावों में अगली रणकौशलात्मक भागीदारी के समय इस मंच का और बेहतर तरीके से क्रान्तिकारी प्रचार के लिये उपयोग किया जा सके और साथ ही मज़दूर वर्ग के स्वतन्त्र राजनीतिक पक्ष को यदि सम्भव हो तो विजयी बनाया जा सके। निश्चित रूप से, ऐसी विजय व्यवस्था के किसी क्रान्तिकारी परिवर्तन को चिन्हित नहीं करती। लेकिन यह मज़दूर वर्ग के वर्ग संघर्ष को क्रान्तिकारी व्यवस्था परिवर्तन के लिये आगे बढ़ाने का काम, पूँजीवादी व्यवस्था की सीमाओं को जनता के समक्ष उजागार करने का काम और मज़दूर वर्ग को इस या उस पूँजीवादी पार्टी का पिछलग्गू बनने से रोकने का काम कर सकती है। इसीलिये चुनाव में क्रान्तिकारी मज़दूर मोर्चा की भागीदारी का एक समाहार आवश्यक है।

चुनाव में रणकौशलात्मक भागीदारी का अनुभव बेहद सीखने वाला और प्रबोधनकारी रहा। नतीजों पर हम आगे आयेंगे, लेकिन क्रान्तिकारी मज़दूर मोर्चा ने काफी कुछ काम वोटिंग के दिन से पहले ही कर लिया था। चुनाव प्रचार के दौरान जो अनुभव रहा वह बेहद अहम है। इस प्रचार के दौरान यह पाया गया कि जो लोग पहले सामान्य दौर में किये जाने वाले आम राजनीतिक प्रचार या फिर चुनावों के दौरान किये जाने वाले भण्डाफोड़ प्रचार के दौरान ध्यान नहीं देते थे, वे भी चुनाव प्रचार के दौरान क्रान्तिकारी मज़दूर मोर्चा के क्रान्तिकारी प्रचार पर ध्यान दे रहे थे। पहले चुनावों के भण्डाफोड़ के दौरान कई बार लोगों के बीच से यह प्रश्न आता था कि यह सच है कि सभी चुनावी पूँजीवादी पार्टियाँ पूँजीपति वर्ग की सेवक और भ्रष्ट हैं, लेकिन हमें अभी क्या  करना चाहिए। इस प्रश्न के उत्तर में कोई तात्कालिक कार्यक्रम पेश नहीं किया जाता था और पूरे व्यवस्थागत परिवर्तन के लिये आमूलगामी क्रान्ति की तैयारी का आह्वान किया जाता था। इस बार चीजें अलग थीं। निश्चित तौर पर, क्रान्तिकारी मज़दूर मोर्चा के प्रचार में पहली बात यही थी कि ग़रीबी, बेरोज़गारी, भुखमरी, सामाजिक असुरक्षा से अन्तिम तौर पर मुक्ति केवल समाजवाद, यानी एक ऐसी व्यवस्था में मिल सकती है, जिसमेंं सारे कल-कारखानों, खानों-खदानों और फार्मों का राष्ट्रीयकरण कर उसे देश की जनता की साझी सम्पत्ति बना दिया जायेगा; जाहिर है, ऐसा परिवर्तन महज़ चुनावों में भागीदारी के ज़रिये नहीं हो सकता। लेकिन चुनावों में मज़दूर वर्ग का अपना स्वतन्त्र  पक्ष होना ही चाहिए ताकि मज़दूर वर्ग इस या उस पूँजीवादी पार्टी का पिछलग्गू न बने; पूँजीवादी व्यवस्था के छल-छद्म और सीमाओं को जनता के बीच उजागर किया जा सके और साथ ही पूँजीवादी व्यवस्था के दायरे के भीतर जो श्रम व जनवादी अधिकार मिले हुए हैं, उन्हें वास्तव में लागू किया जा सके और मज़दूर वर्ग के समूचे वर्ग संघर्ष को विकसित किया जा सके। इसीलिये मज़दूर वर्ग का एक स्वतन्त्र राजनीतिक पक्ष जनता के बीच उपस्थित किया गया है। यह बात व्यापक मेहनतकश आबादी के बड़े हिस्से  के लिये एक ऐसी बात थी जिस पर उन्होंने ध्यान दिया, उसे सुना। यह दीगर बात है कि अभी वे इस विकल्प की सम्भावनासम्पन्नता और उसे कारगर होने को लेकर सशंकित थे। लेकिन फिर भी उनके सामने एक विकल्प का पेश किया जाना ही एक अहम कदम था। जैसे-जैसे चुनाव प्रचार आगे बढ़ा इलाके के विशेष तौर पर कारखाना मज़दूर मोर्चे के प्रतिनिधि सनी सिंह के समर्थन में आते गये। मोर्चे की रैलियों में बड़ी संख्या में मज़दूरों का उपस्थित होना इसी की अभिव्यिक्ति था। यह बात ज़रूर है कि 90 फीसदी से भी ज्यादा मज़दूरों के वोटर कार्ड ही नहीं थे और इसका नतीजों पर भारी फर्क पड़ा। लुब्बेलुबाब यह कि इस पहली चुनाव भागीदारी में क्रान्तिकारी मज़दूर मोर्चा ने अपने क्रान्तिकारी प्रचार से अपने सामाजिक आधार को विस्तारित किया। झुग्गीवासियों में यदि पहले से सामाजिक आधार होता तो चुनावी नतीजे अलग हो सकते थे, यह सच है; यह सच है कि क्रान्तिकारी मज़दूर मोर्चा ने इस व्यापक आबादी के बीच पहले से काम न करने की कीमत चुकाई, लेकिन यह भी सच है कि इस चुनाव प्रचार के दौरान ही झुग्गीवासियों के बीच क्रान्तिकारी मज़दूर मोर्चा ने अपनी पहचान बनायी और अपने नाम को उन तक पहुँचाने में कामयाबी हासिल की। यह सीखने और नींव डालने का काम था और इतना काम एक हद तक ज़रूर हुआ। अब कुछ बातें नतीजे पर।

वज़ीरपुर में जहाँ पर पिछले तीन वर्षों से क्रान्तिकारी मज़दूर मोर्चा के कार्यकर्ता मज़दूरों के बीच सक्रिय रहे हैं, वहाँ मज़दूर आबादी के वोट कुल वोटों के 10 प्रतिशत से भी कम हैं क्योंकि अधिकांश प्रवासी मज़दूरों के वोटर कार्ड नहीं बने हैं। अधिकांश वोट झुग्गीवासियों और इस वार्ड में शामिल कुलीन इलाके अशोक विहार के एक फेज़ के बाशिन्दों के हैं। झुग्गीवासियों और मज़दूरों के बीच पिछले एक सप्ताह में आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी ने पैसा और शराब बाँटने का नया रिकॉर्ड कायम किया। झुग्गीवासियों के घरों में लिफाफे में किसी ने तीन हज़ार रूपये और वोटर पर्ची रखकर पहुँचायी तो किसी ने पाँच हज़ार रूपये और वोटर पर्ची। इसके साथ ही दलालों और गुण्डों की एक पूरी फौज इस इलाके में इन दोनों ही प्रमुख पार्टियों ने लगायी, जिन्होंने अपनी जातिगत और धर्मगत गोलबन्दियाँ विशेष तौर पर झुग्गीवासियों में बनायी। कुल वोटिंग वज़ीरपुर में 40 से 45 प्रतिशत के बीच रही। इलाके के कारखानेदारों ने वोटिंग के दिन भी कारखानों को बन्द नहीं किया जिसके कारण अच्छी -खासी मज़दूर आबादी वोट नहीं कर सकी। साथ ही मज़दूर आबादी और झुग्गी वालों की एक ठीक-ठाक आबादी का नाम ही वोटर लिस्ट  में नहीं था जिसके कारण वे वोट नहीं डाल सके। मजदूर वर्गीय वोटरों के राजनीतिक रूप से सचेत छोटे हिस्से ने क्रान्तिकारी मज़दूर मोर्चा के उम्मीदवार को वोट डाला। लेकिन यह भी सच है कि मज़दूर वोटरों की छोटी-सी आबादी के भी एक हिस्से ने राजनीतिक चेतना की कमी और हताशा के कारण तात्का लिक लाभ देखते हुए वोट किया। नतीजतन, क्रान्तिकारी मज़दूर मोर्चा के उम्मीदवार सनी सिंह नौ उम्मीदवारों में से छठें स्थान पर रहे।

दिल्ली नगर निगम चुनावों ने इस बात को एक बार फिर स्पष्ट किया कि आम तौर पर पूँजीवादी चुनावों में धनबल की विजय होती है। क्रान्तिकारी मज़दूर मोर्चा के प्रवक्ता ने बताया कि इन चुनाव नतीजों से हम बहुत कुछ तय नहीं कर रहे हैं। यह क्रान्तिकारी मज़दूर मोर्चा का पहला प्रयास था और एक प्रकार से नींव डालने की मंजि़ल थी। इस मंजि़ल में हम चुनाव प्रचार के दौरान अपने आपको एक मज़दूर विकल्प के तौर पर पेश करने में सफल रहे लेकिन अभी यह विकल्प  मज़दूर आबादी के एक हिस्से के लिये भी एक प्रभावी और व्यवहारिक विकल्प  के तौर पर नहीं उभर पाया। मोर्चा के प्रवक्ता  ने स्पष्ट किया कि हमने जीत की उम्मीद नहीं की थी, लेकिन यह सच है कि नतीजे हमारी अपेक्षा से कम रहे। लेकिन क्रान्तिकारी मज़दूर मोर्चा इलाके के मज़दूर वर्ग को समर्थन के लिये क्रान्तिकारी धन्यवाद देता है और साथ ही मज़दूर वर्ग और झुग्गीवासी मेहनतकश आबादी के रोज़मर्रा के मुद्दों पर संघर्ष के नये दौर की शुरुआत का संकल्प लेता है। आम आदमी पार्टी के विजयी प्रत्याशी और अब वार्ड के पार्षद के समक्ष जन संघर्षों के साथ वायदों को पूरा करने और जवाबदेही स्पष्ट करने के लिये निरन्तर दबाव बनाया जायेगा। इसके लिये गली कमेटियों का गठन कर इलाके की समस्याओं के समाधान के लिये काम किया जायेगा।

क्रान्तिकारी मज़दूर मोर्चा को चुनाव में भागीदारी से जो कुछ अर्जित करना था, उसका एक हिस्सा चुनाव के दिन के पहले ही हासिल किया जा चुका था, जैसा कि हमने ऊपर जि़क्र किया। चुनावों के दौरान एक सही मार्क्सवादी-लेनिनवादी अवस्थिति के साथ वज़ीरपुर के व्यापक औद्योगिक क्षेत्र में प्रचार किया गया और जनता की राजनीतिक चेतना का स्तरोन्नयन किया गया। जो गलतियाँ क्रान्तिकारी मज़दूर मोर्चा की रणनीति में रहीं उन पर विचार करने की आवश्यकता है।

प्रचार के दौरान ही एक भारी ग़लती सामने आने लगी थी। क्रान्तिकारी मज़दूर मोर्चा का सामाजिक आधार मुख्य  तौर पर कारखाना मज़दूरों में है। इन मज़दूरों में से अधिकांश के पास या तो वोटर कार्ड है ही नहीं या फिर उनके गाँव के पते पर बना हुआ है। इन मज़दूरों ने प्रचार के दौरान ही शिकायत की कि यदि मोर्चा को इस बार चुनावों में मज़दूर पक्ष को लेकर उतरना ही था, तो उसे पहले से ही वोटर कार्ड बनवाने की पूरी मुहिम चलानी चाहिए थी। वोटर लिस्ट से यह पता लगा कि इस वार्ड के कुल वोटों में से मात्र 9-10 प्रतिशत कारखाना मज़दूरों के वोट हैं, हालाँकि उनकी संख्या कहीं ज्यादा है। जब तक यह पहलू मोर्चा के नेतृत्व के सामने आया तब तक काफी देर हो चुकी थी क्योंकि आचार संहिता लागू होने के बाद वोटर आयी कार्ड बनना बन्द हो चुका था। एक दूसरी ग़लती या कमी जो सामने आयी वह यह थी कि मोर्चा का सामाजिक आधार झुग्गीवासियों में कम विकसित हो पाया था। झुग्गीवासियों में अन्य  इलाकों में छोटा-मोटा रोज़गार करने वालों, छोटे दुकानदारों, छोटा-मोटा व्यवसाय करने वालों, झुग्गी के मालिकों, समेत मज़दूरवर्गीय, अर्द्धमज़दूरवर्गीय और टुटपुंजिया आबादी है। इसमें एक छोटा हिस्सा लम्पट टुटपुंजिया आबादी और लम्पट मज़दूर आबादी का भी है, जिसके भीतर वर्ग चेतना बेहद अविकसित और अनगढ़ रूप में है। लेकिन फिर भी झुग्गी,वासियों की आबादी में व्यापक आबादी आम मेहनतकश लोगों की ही है। इस आबादी को मज़दूर वर्गीय अवस्थिति पर या फिर मज़दूर वर्ग द्वारा पेश क्रान्तिकारी कार्यक्रम पर जीता जा सकता है। दूसरे शब्दों में, यह आबादी उन वर्गों से बनी है जो कि नयी समाजवादी क्रान्ति की इस मंजि़ल में मित्र वर्ग हैं और उन्हें  सतत राजनीतिक प्रचार, क्रान्तिकारी सुधार कार्य और बच्चों व युवाओं के बीच कार्य के ज़रिये क्रान्तिकारी अवस्थिति पर लाया जा सकता था। लेकिन इस दिशा में क्रान्तिकारी मज़दूर मोर्चा ज्यादा काम नहीं कर सका और उसका सामाजिक आधार मूलत: और मुख्यतः कारखाना मज़दूरों के बीच बना रहा। दूसरे शब्दों में, क्रान्तिकारी मज़दूर मोर्चा क्रान्तिकारी वर्ग मोर्चा बनाने की नीति को सफलतापूर्वक लागू नहीं कर सका।

इसके बावजूद, चुनाव प्रचार के दौरान ही मज़दूर आबादी और झुग्गीवासियों की आबादी में जो प्रचार हुआ उसके ज़रिये क्रान्तिकारी मज़दूर मोर्चा को अपने आपको एक विकल्प के तौर पर पेश करने का अवसर मिला। चाहे अभी यह विकल्प  लोगों के बीच एक प्रमुख व्यावहारिक विकल्प बन कर न भी उभर पाया हो, लेकिन उनके बीच एक विकल्प के रूप में ज़रूर स्थापित हुआ। मोर्चा की रैलियों में इलाके की मजदूर आबादी ने बढ़-चढ़कर हिस्सेदारी की और जो मज़दूर वोट पड़े, वे मुख्यत: और मूलत: क्रान्तिकारी मज़दूर मोर्चा को ही पड़े। झुग्गीवासियों के वोट न मिलने का एक कारण यह अफवाह थी कि भाजपा यदि जीतती है, तो वह झुग्गियों को तुड़वाने वाली है। यह अफवाह आम आदमी पार्टी द्वारा फैलायी गयी थी। नतीजतन, झुग्गीवासियों के बीच एक यह सन्देश गया कि किसी भी कीमत पर भाजपा को हराना है और अभी क्रान्तिकारी मज़दूर मोर्चा भाजपा को नहीं हरा सकता। लिहाज़ा झुग्गीवासियों को अपना वोट उस पार्टी को डालना चाहिए जो कि भाजपा को हरा सकती है। नतीजतन, आखिरी समय में झुग्गीवासियों के वोट एकतरफा रूप से आम आदमी पार्टी के पक्ष में सुदृढ़ हो गये। इन राजनीतिक कारणों के साथ ही क्रान्तिकारी मज़दूर मोर्चा के विरुद्ध भाजपा और आम आदमी पार्टी के स्थानीय  दलाल मिलकर सक्रिय थे। गौरतलब है कि इन दोनों पूँजीवादी पार्टियों के प्रतिनिधि स्वयं कारखाना मालिक हैं। उन्हें  इस बात का अच्छे से अन्दाजा था कि यदि मज़दूर प्रतिनिधि जीतता है तो कारखाना मालिकों की मुश्किलें बढ़ेंगी। ऐसे में, कोई भी जीते लेकिन क्रान्तिकारी मज़दूर मोर्चा का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहना चाहिए। नतीजतन, मज़दूरों को कारखानों से निकलकर वोट नहीं डालने दिये गये; मज़दूर आबादी के बीच में वोटर लिस्ट से स्लिपों का वितरण नहीं किया गया जिससे तमाम मज़दूरों को यह पता ही नहीं चल पाया कि उनका वोट किस सेण्टर पर पड़ना है। कई मज़दूर अन्त तक लिस्टों  में अपना नाम ही ढूँढ़ते रह गये। दूसरी तरफ, अशोक विहार के अमीरों के इलाके में सभी पूँजीवादी पार्टियों ने वोटर स्लिप वितरित किया; कई स्थानों पर तो चुनाव आयोग ने ही ये पर्चियाँ पहुँचा दीं। लेकिन मज़दूर आबादी के बीच ऐसा नहीं किया गया जिससे कि भारी मज़दूर आबादी सेण्टर को लेकर भ्रम में रही और वोट नहीं डाल सकी। इससे क्रान्तिकारी मज़दूर मोर्चा के वालण्टियरों की भी एक गलती सामने आयी। वास्तव में, अपने सामाजिक आधार में वोटरों के बीच इन पर्चियों का वितरण वोटिंग के दिन से पहले ही कर दिया जाना चाहिए था। मगर ऐसा नहीं हो सका। आखिरी दिन इण्टरनेट के जरिये वोटर लिस्ट  देखकर कुछ लोगों की सहायता की गयी कि वे अपने बूथ तक पहुँच सकें, लेकिन आखिरी समय पर किया गया यह प्रयास नाकाफी था।

इसके अलावा कई तकनीकी कारक थे, जिन्हें  दुरुस्त  रूप से प्रबन्धित  किया गया होता, तो नतीजे परिमाणात्मक रूप से बेहतर होते। लेकिन मूल कारण राजनीतिक थे, जिन्हें ऊपर चिन्हित किया गया है।

आन्तरिक तौर पर भी क्रान्तिकारी मज़दूर मोर्चा की टीम के लिये यह चुनाव सीखने का एक बेहतरीन मौका साबित हुए। यह स्पष्ट तौर पर सामने आया कि पूँजीवादी चुनावों में रणकौशलात्मक भागीदारी के लिये एक ठोस विचारधारात्मक और राजनीतिक तैयारी की आवश्य कता है। यह तैयारी पिछले 2 माह से जारी थी, जिससे कि रणकौशलात्मक भागीदारी के लेनिनवादी अर्थ को रचाया-पचाया गया था। लेकिन इसके बावजूद चुनाव प्रचार की प्रक्रिया और गर्मी में कुछ मौकों पर राजनीति उस प्रकार कमान में नहीं रही, जैसे कि उसे रहना चाहिए था और तरह-तरह की व्यावहारिक व तकनीकी चिन्ताएँ हावी हुर्इं। इन गलतियों को चुनाव के दौरान ही इंगित किया गया और उनकी समीक्षा-समाहार कर दूर करने का प्रयास किया गया। यह भी दिखलाई दिया कि अभी चुनाव प्रचार के तौर-तरीकों, शैली, एजेण्डा पेश करने के लहज़़े, क्रान्तिकारी अवस्थिति को प्रभावी रूप से पेश करने के मामले में बहुत-कुछ सीखने की ज़रूरत है। अगर इन सारे पहलूओं पर ध्यान न दिया जाय तो दक्षिणपन्थी भटकाव का शिकार होने की सम्भावना पैदा हो जाती है और वह भी इस प्रकार कि जिसका पता ही काफी बाद में चले। इसलिये इन सारे पहलूओं पर अभी बहुत-कुछ सीखने की ज़रूरत है। लेनिनवादी अवस्थिति से वाकिफ होने के साथ-साथ आज के दौर के चुनावों में उसे लागू करने के तौर-तरीकों में भी पारंगत होना होगा और यह कार्य व्यवहार के जरिये ही हो सकता है।

अन्य क्षेत्रों में चुनाव में भागीदारी में काफी पहलू वही रहे जिनका हम वजीरपुर में चुनाव भागीदारी की समीक्षा व समाहार करते हुए जिक्र कर चुके हैं। उन पहलूओं को हम दुहराएँगे नहीं। करावलनगर और खजूरी में भी चुनाव प्रचार के दौरान जो लक्ष्य  अर्जित करने थे, यानी कि अपने सामाजिक आधार को व्यापक बनाना, अपनी पहुँच को व्यापक बनाना और पहले दौर में एक विकल्प के तौर पर अपना नाम और पहचान लोगों के मस्तिष्क  में स्थापित करना; ये लक्ष्य काफी हद तक अर्जित किये गये। इन इलाकों में भी, विशेषकर करावलनगर में, प्रचार के दौरान ही जनता का व्यापक समर्थन प्राप्त हुआ। लेकिन इन इलाकों में भी एक कमी वही थी, जो कि वज़ीरपुर में थी। मुख्य सामाजिक आधार असंगठित मज़दूर आबादी में होने के कारण उनका वोटों में रूपान्तरित नहीं हो पाना क्योंकि इनमें से ज्यादातर प्रवासी मज़दूर हैं और उनके वोटर कार्ड ही नहीं बने हैं।

करावलनगर में मोर्चा के प्रतिनिधि 23 प्रत्याशियों में से 14वें स्थान पर रहे। इस इलाके में भी भाजपा, आम आदमी पार्टी के प्रत्याशियों ने चुनावी प्रचार के दौरान धनबल और बाहुबल का नंगा प्रदर्शन किया। क्षेत्रवाद और जातिवाद के नाम पर भी जमकर वोट बटोरे गये मिसाल के तौर पर गुर्जर वोट, पहाड़ी वोट, बिहारी वोट, दलित वोट, वगैरह। हर पूँजीवादी चुनाव की तरह यहाँ भी पैसे का बोलबाला रहा। इस क्षेत्र की आबादी ने मोर्चा के उम्मीदवार को अपेक्षाकृत बेहतर समर्थन दिया। लेकिन यहाँ  भी एक प्रमुख समस्या यह रही कि मज़दूर आबादी के वोटर कार्ड नहीं बने होने के कारण मोर्चा के प्रमुख सामाजिक समर्थन को वोटों में रूपान्तरित नहीं किया जा सका। जिन्होंने मोर्चा को वोट दिया उनमें युवा व मज़दूर वोटर प्रमुख रहे। प्रत्याशी योगेश स्वामी ने कहा कि नतीजे अपेक्षा से कम रहे लेकिन इसमें बहुत चौंकाने वाला कुछ नहीं था। यह क्रान्तिकारी मज़दूर मोर्चा का पहला प्रयास था जिसमेंं कि उसने पूँजीवादी चुनाव के मैदान में मेहनतकशों के स्वतन्त्र  राजनीतिक पक्ष को रखा। चुनावी प्रचार के दौरान आम मेहनतकश जनता का अच्छा समर्थन भी मोर्चा को प्राप्त हुआ। लेकिन पूँजीवादी चुनावों की गतिकी में पैसे की भूमिका स्पष्ट तौर पर उभर कर सामने आयी। साथ ही, आम मेहनतकश आबादी का भी एक हिस्सा मोर्चा को चुनावों में एक विकल्प के तौर पर देखने के बावजूद उसे ”जीतने वाला विकल्प” न मानने की प्रवृत्ति और बह रही बयार के अनुसार ”अपना वोट ज़ाया” न करने की अराजनीतिक प्रवृत्ति का शिकार थी। चुनाव नतीजे आने के बाद इस क्षेत्र में भी सतत जनसंघर्षों के ज़रिये मेहनतकश आबादी की राजनीतिक चेतना के स्तरोन्नयन के काम को तत्काल शुरू किया जायेगा और विजयी प्रत्याशी को इलाके की आम जनता की समस्याओं के प्रश्न पर घेरा जायेगा और उनसे जवाबदेही ली जायेगी। इन सतत जनसंघर्षों और संगठन की प्रक्रिया को जारी रखते हुए क्रान्तिकारी मज़दूर मोर्चा अपने सामाजिक आधार को विस्तारित करेगा और आने वाले संसद चुनावों और विधानसभा चुनावों में अपने आपको एक व्यावहारिक और प्रभावी विकल्प के तौर पर स्थापित करने का प्रयास करेगा।

खजूरी में प्रदर्शन एक रूप में अपेक्षानुरूप रहा क्योंकि यह मुस्लिम बहुल क्षेत्र था जिसमेंं मोर्चा के सामाजिक आधार के बावजूद प्रमुख कारक जो कि वोटरों के ज़ेहन में हावी था वह यह कि भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार की विजय नहीं होनी चाहिए और जो भी उम्मीदवार भाजपा को हरा सकता है, उसे वोट दिया जाना चाहिए। इस असुरक्षा की भावना को आज के साम्प्रदायिक फासीवादी उभार के दौर में समझा जा सकता है। ऐसे में, संगठन के पुराने समर्थकों ने, जो कि तमाम जनसंघर्षों में मोर्चा के साथ रहे हैं, मोर्चा को वोट किया। लेकिन उसके अतिरिक्त मोर्चा के सामाजिक आधार ने भी अधिकांशत: आम आदमी पार्टी को वोट डाला जो कि भाजपा को इस क्षेत्र में हराने में सफल रही। मोर्चा के प्रवक्ता ने कहा कि आखिरी दिनों में यह स्पष्ट हो गया था कि इस क्षेत्र में व्यापक मेहनतकश अल्पसंख्यक आबादी वोट डालने के मामले में अभी एक भारी असुरक्षा की भावना से संचालित है और हमारे समर्थकों में भी बहुसंख्यक आबादी हमें नहीं बल्कि उस उम्मीदवार को वोट देने वाली है, जो कि भाजपा के खतरे को टालने में समर्थ दिख रहा हो। लेकिन चुनाव प्रचार के दौरान मज़दूर वर्ग के एक स्वतन्त्र राजनीतिक पक्ष को मोर्चा ने प्रभावी तरीके से पेश किया और चुनावी नतीजों के नकारात्मक होने के बावजूद अब विजयी उम्मीदवार पर आम जनता की समस्याओं के निदान के लिये जनदबाव बनाने के लिये मोर्चा तत्काल सक्रियता के साथ राजनीतिक कार्य करेगा। क्रान्तिकारी मज़दूर मोर्चा के प्रवक्ता ने बताया कि चुनावों में पहली बार भागीदारी करते हुए मज़दूर वर्ग के स्वतन्त्र राजनीतिक पक्ष को इन तीनों वॉर्डों की जनता के बीच रखा गया। यह मोर्चा का प्रथम प्रयास था और एक सीखने का चुनाव था। इस चुनाव के अनुभव ने मोर्चा के कार्यकर्ताओं को बहुत कुछ सिखाया है और यह भी दिखलाया है कि कहाँं-कहाँ हमारी कमियाँ थीं। प्रचार के दौरान मोर्चा के उम्मीदवारों को अच्छा समर्थन मिला था जिसे कि क्रान्तिकारी मज़दूर मोर्चा की प्रभावी रैलियों में जन भागीदारी से देखा जा सकता है। प्रदर्शन अपेक्षानुरूप न रहने के कई कारण रहे जिसमेंं कि एक क्रान्तिकारी मज़दूर मोर्चा के प्रमुख समर्थन आधार, यानी कि मज़दूर आबादी के वोटर कार्ड न होना, था। साथ ही, पहला प्रयोग होने के कारण इस दौर में पहली दफा व्यापक आम मेहनतकश जनता के बीच अपने विकल्प को पेश कर पाना ही सम्भव था। इस विकल्प को एक प्रभावी व कारगर विकल्प के तौर पर स्थापित करने का काम अभी बाकी रहता है और इसे आगे के चुनावों में किया जायेगा। तीसरा, क्रान्तिकारी मज़दूर मोर्चा की अनुभवहीन युवा और मज़दूर टीम को राजनीतिक प्रचार के और रचनात्मक तौर-तरीके निकालते हुए जनता के बीच सतत मौजूदगी बनानी होगी। इसी से जुड़ा हुआ चौथा अहम कार्यभार यह उभरकर सामने आया कि धनबल के पूँजीवादी चुनावों में एक निर्णायक कारक बनने को रोकने या उसके प्रभाव को कम करने के लिये व्यापक मेहनतकश जनता में निरन्तरता के साथ राजनीतिक कार्य करते हुए उनकी राजनीतिक चेतना को बढ़ाना होगा। साथ ही, चुनावों में ईवीएम में गड़बड़ी की रपटें भी सामने आयी हैं। कई लोग यह प्रश्न  उठा रहे हैं कि अगर ईवीएम में गड़बड़ी होती तो जिन सीटों पर भाजपा हारी है उन पर भी वह विजयी हो जाती। लेकिन भाजपा ईवीएम में गड़बड़ी इतनी मूर्खतापूर्ण तरीके से क्यों करने लगी जिसे आराम से पकड़ लिया जाय। सभी ईवीएम मशीनों के साथ छेड़छाड़ नहीं की जा रही, बल्कि इस काम को चुनिन्दा तरीके से और कुशलता से किया जा रहा है।

इन सारे कारकों के बावजूद क्रान्तिकारी मज़दूर मोर्चा ने दिल्ली  नगर निगम के पूँजीवादी जनवादी चुनावों का क्रान्तिकारी प्रचार के लिये प्रभावी इस्ते़माल किया। क्रान्तिकारी मज़दूर पक्ष के लिये जीत-हार पूँजीवादी व्यवस्था के भीतर होने वाले चुनावों में प्रमुख मुद्दा नहीं होता। प्रमुख मुद्दा होता है इस मंच का मजदूर वर्ग के स्वतन्त्र  राजनीतिक पक्ष की नुमाइन्दगी के लिये और मज़दूर वर्ग के क्रान्तिकारी प्रचार के लिये उपयोग करना; इसके ज़रिये मज़दूर वर्ग और आम मेहनतकश वर्ग के अधिकतम सम्भव हिस्से को इस या उस पूँजीवादी पार्टी का पिछलग्गू बनने से रोकना; मज़दूर वर्ग के दूरगामी क्रान्तिकारी लक्ष्य, यानी समाजवादी व्यवस्था के बारे में शिक्षण-प्रशिक्षण और प्रचार; तथापूँजीवादी व्यवस्था की सीमाओं को आम मेहनतकश जनता के समक्ष उजागर करना और उसे एक आमूलगामी क्रान्तिकारी परिवर्तन के लिये तैयार करना। क्रान्तिकारी मज़दूर मोर्चा ने अपने पहले और सीखने के प्रयोग में इन सारे कार्यभारों को पूरा करने का प्रयास किया है। इस प्रयोग में तमाम कमियाँ भी रही हैं, जिन्हें  निरन्तर जनसंघर्षों में भागीदारी के साथ दूर किया जायेगा और आगामी पूँजीवादी चुनावों में इससे बेहतर प्रदर्शन की ज़मीन तैयार की जायेगी।

चुनाव के बाद क्रान्तिकारी मज़दूर मोर्चा ने तीनों इलाकों में मुहल्ला सभाओं व गली मीटिंगों का आयोजन शुरू किया है। इन सभाओं का मकसद है कि जनता की माँगों और आवश्यकताओं के आधार पर एक माँगपत्रक तैयार किया जायेगा और इलाके के नवनिर्वाचित पार्षद के कार्यालय को यह माँगपत्रक ज्ञापन समेत सौंपा जाये। इसके जरिये जीते हुए पार्षद को अपने द्वारा किये गये वायदे पूरे करने और साथ ही जनता की माँगों को मनवाने के लिये दबाव बनाया जायेगा और इसी प्रक्रिया में जनसमुदाय को संगठित और गोलबन्द किया जायेगा। साथ ही, ये गली कमेटियाँ और मुहल्ला सभाएँ इलाके में साफ-सफाई के कार्य, लाईब्रेरी संचालित करने के कार्य, शिक्षा सहायता मण्डल संचालित करने के कार्यों को भी करेंगी और इसी प्रक्रिया में राजनीतिक निर्णय लेने के कार्यों को भी सीखेंगी। चुनावों में भागीदारी के साथ क्रान्तिकारी मज़दूर मोर्चा के कार्य की इस सरणी का समापन नहीं हुआ है, बल्कि शुरुआत हुई है।

(मज़दूर बिगुल, अंक-मई, 2017 से साभार )

 

मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान,जुलाई-अगस्‍त 2017

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