बढ़ते स्त्री विरोधी अपराधों के ख़िलाफ़ परचा वितरण
दिनांक 13 मई को दिशा छात्र संगठन की महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय, रोहतक (हरियाणा) इकाई और स्त्री मुक्ति लीग के द्वारा देश भर में हो रहे बलात्कार जैसे घिनौने स्त्री विरोधी अपराधों के मुद्दे पर व्यापक परचा वितरण किया गया| इस दौरान विभिन्न छात्र-छात्राओं से इसी मुद्दे पर ही बातचीत भी की गयी| ‘दिशा छात्र संगठन’ के इन्द्रजीत ने बताया कि विगत 28 अप्रैल को केरल के एर्नाकुलम में एक कानून की छात्रा के साथ बलात्कार और हत्या का जघन्य मामला सामने आया था। कुछ ही दिन बाद यहीं के ही वरकला में बलात्कार का एक अन्य मामला सामने आया| देश में साक्षरता दर सबसे ज़्यादा होने के बावजूद जब केरल में ही पिछले साल 1,347 महिलाओं के साथ बलात्कार के मामले दर्ज हुए हैं तो देश भर में होने वाले बलात्कारों की भयावहता का अन्दाजा सहज ही लगाया जा सकता है।
साल 2004 में जहाँ बलात्कार के 18,223 मामले दर्ज हुए थे वहीं साल 2014 में इनकी संख्या बढ़कर 36,735 हो गयी! निर्भया-डेल्टा मेघवाल-जीशा और न जाने कितनी निर्दोष बलात्कार और हत्या की बली चढ़ा दी जाती हैं लेकिन कानून-पुलिस-नेताशाही और समाज मूकदर्शक बनकर देखते रह जाते हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर घण्टे करीब 22 बलात्कार के मामले दर्ज होते हैं। और ये तो वे हैं जो दर्ज होते हैं, जिन्हें पुलिस द्वारा दर्ज ही नहीं किया जाता या फिर माँ-बाप के द्वारा लोक-लाज के भय से दर्ज कराया ही नहीं जाता उनकी तो गिनती ही क्या की जाये! इस समय हमारे देश में 95,000 से भी अधिक बलात्कार के मामले लम्बित पड़े हैं। अपराधियों को बहुत बार तो सजा मिल ही नहीं पाती और यदि मिलती भी है तो किसी ने ठीक ही कहा है कि देरी से मिलने वाला न्याय असल में न्याय होता ही नहीं! ‘स्त्री मुक्ति लीग’ की अदिति ने कहा कि कुछ भी कहें लेकिन हम एक गज़ब के पाखण्डी समाज में जी रहे हैं। एक तरफ़ तो नारी रूप की पूजा की जाती है किन्तु दूसरी तरफ़ उसे पैर की जूती भी समझा जाता है। यह बात दिमाग में होनी चाहिए कि जो समाज आधी आबादी को पैर की नौक पर रखे और उसके सम्मान और गौरव को हर समय तार-तार करे तो उसके बरबाद होने में ज़्यादा देर नहीं लगती! यदि हमारे अन्दर ज़रा भी आत्मसम्मान और आत्मगौरव बचा है तो हम कैसे मूकदर्शक बनकर स्त्री उत्पीड़न और बलात्कार जैसे कुकृत्यों को होते हुए देखते रह सकते हैं? हम भी आखिर इस समाज का ही हिस्सा हैं; ऐसे में आँच हमारे घरों तक पहुँचने में ज़्यादा वक्त कहाँ है? हमें इस समस्या को समझना होगा, इसकी जड़ों तक जाना होगा और कारणों को जानकर उनका निदान करना होगा।
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान,मई-जून 2016
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