जाति प्रश्न और अम्बेडकर के विचारों पर एक अहम बहस
इस वर्ष चौथी अरविन्द स्मृति संगोष्ठी चण्डीगढ़ में हुई। इस बार यह गोष्ठी पाँच दिवसीय थी और इसकी रपट हम ‘आह्वान’ में दे चुके हैं। हमने उस रपट में ज़िक्र किया था कि गोष्ठी में प्रसिद्ध चिन्तक-विश्लेषक आनन्द तेलतुम्बडे ने भी हस्तक्षेप किया था और उनके हस्तक्षेप की अरविन्द ट्रस्ट की ओर से कड़ी आलोचना की गयी थी। गोष्ठी में चली बहस में आनन्द तेलतुम्बडे ने अन्त में अम्बेडकरवाद और ड्यूई के व्यवहारवाद की आलोचना के तमाम बिन्दुओं से सहमति जतायी थी। लेकिन गोष्ठी से लौटने के बाद आनन्द तेलतुम्बडे ने संहति डॉट कॉम पर एक लेख लिखा जिसमें उन्होंने संगोष्ठी के आयोजकों को आत्ममुग्ध मार्क्सवादी बताया और इस बात की आलोचना की कि संगोष्ठी के आयोजकों ने संगोष्ठी में चली बहस के वीडियों को सार्वजनिक कर दिया! बहरहाल, जब उनके इस लेख की आलोचना हमारी ओर से सन्हति डॉट कॉम को भेजी गयी तो उन्होंने इसे छापने से इंकार कर दिया। इसका मूल कारण यह प्रतीत होता है कि वामपंथी अवसरवादियों में अम्बेडकरवाद के विरुद्ध एक निरन्तरतापूर्ण मार्क्सवादी अवस्थिति अपनाने का साहस नहीं है। सन्हति डॉट कॉम लगातार ही अम्बेडकरवाद के प्रति आत्मसमर्पणवाद और तुष्टिकरण की नीति को चला रहा है। अम्बेडकरवादियों या अम्बेडकरवादी-मार्क्सवादियों द्वारा मार्क्सवाद पर किये जाने वाले हमलों को इस वेबसाइट के सम्पादक सहर्ष प्रकाशित करते हैं, लेकिन मार्क्सवादी अवस्थिति से अम्बेडकर की आलोचना या तो प्रकाशित ही नहीं करते, या फिर केवल उन्हीं आलोचनाओं को प्रकाशित करते हैं, जिनके न तो दाँत होते हैं और न ही नाखून। बहरहाल, इसके बाद कुछ अन्य वेबसाइटों ने साहस दिखलाते हुए इस बहस को प्रकाशित किया और इसके बाद हिन्दी की प्रसिद्ध पत्रिका ‘फिलहाल’ में भी आनन्द तेलतुम्बडे का लेख और अभिनव सिन्हा द्वारा लिखित उसकी आलोचना, दोनों ही संक्षिप्तीकृत रूप में प्रकाशित हुईं। हिन्दी के पाठकों के समक्ष अभी भी यह पूरी बहस एक साथ, एक जगह उपलब्ध नहीं थी। और हमें लगता है कि इस बहस में उठाये गये मुद्दे सामान्य महत्व के हैं। इसलिए हम इस पूरी बहस को बिना काँट-छाँट के यहाँ प्रकाशित कर रहे हैं। हम चाहेंगे कि आम पाठक गण भी इसमें हस्तक्षेप करें ताकि यह बहस एक सही दिशा में आगे बढ़ सके। इस बहस को पढ़ने से पहले इस लिंक पर इस संगोष्ठी में चली पूरी बहस का वीडियो अवश्य देखें, ताकि इन लेखों में आने वाले सन्दर्भों को सही तरीके से समझ सकें: http://www.youtube.com/watch?v=TYZPrNd4kDQआनन्द तेलतुम्बडे के लेख का अनुवाद ‘हाशिया’ ब्लॉग चलाने वाले रेयाजुल हक़ ने किया है, जो कि सटीक नहीं है। जहाँ ग़लतियाँ हैं उन्हें ठीक करते हुए हम इस अनुवाद को प्रकाशित कर रहे हैं।
-सम्पादक
खुद पर फिदा मार्क्सवादियों और छद्म अम्बेडकरवादियों के नाम – आनन्द तेलतुम्बडे
आनन्द तेलतुम्बडे को जवाबः स्व-उद्घोषित शिक्षकों और उपदेशकों के नाम – अभिनव सिन्हा
मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, सितम्बर-दिसम्बर 2013
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