उद्धरण

सूरज आवाज़ देता है

समुद्र के हर अँधेरे किनारे पर

दुनिया के यतीमो!

दहक उठो, खींच लो

धरती की तृप्त कोख से

दर्द का अपना ईंधन

वोले शोयिंका

वोले शोयिंका

 

युवकों के सामने जो काम है, वह काफी कठिन है और उनके साधन बहुत थोड़े हैं। उनके मार्ग में बहुत सी बाधाएँ भी आ सकती हैं। लेकिन थोड़े किन्तु निष्ठावान व्यक्तियों की लगन उन पर विजय पा सकती है। युवकों को आगे जाना चाहिए। उनके सामने जो कठिन एवं बाधाओं से भरा हुआ मार्ग है, और उन्हें जो महान कार्य सम्पन्न करना है, उसे समझना होगा। उन्हें अपने दिल में यह बात रख लेनी चाहिए कि “सफलता मात्र एक संयोग है, जबकि बलिदान एक नियम है।” उनके जीवन अनवरत असफलताओं के जीवन हो सकते हैं – गुरु गोविन्दसिंह को आजीवन जिन नारकीय परिस्थितियों का सामना करना पड़ा था, हो सकता है उससे भी अधिक नारकीय परिस्थितियों का सामना करना पड़े। फिर भी उन्हें यह कहकर कि अरे, यह सब तो भ्रम था, पश्चाताप नहीं करना होगा।

नौजवान दोस्तो, इतनी बड़ी लड़ाई में अपने आपको अकेला पाकर हताश मत होना। अपनी शक्ति को पहचानो। अपने ऊपर भरोसा करो। सफलता आपकी है।

(‘नौजवान भारत सभा, लाहौर का घोषणापत्र’ का अंश)

 bhagat_singh

लोग प्रायः वह नहीं करते जिस पर वे यक़ीन करते हैं। वे वह करते हैं जो सुविधाजनक लगता है और बाद में पछताते हैं।

बॉब डिलन (प्रसिद्ध अमेरिकी गायक और कवि)

बॉब डिलन (प्रसिद्ध अमेरिकी गायक और कवि)

जीवन-लक्ष्य

कठिनाइयों से रीता जीवन

मेरे लिए नहीं,

नहीं, मेरे तूफानी मन को यह स्वीकार नहीं।

मुझे तो चाहिए एक महान ऊँचा लक्ष्य

और, उसके लिए उम्रभर संघर्षों का अटूट क्रम।

ओ कला! तू खोल

मानवता की धरोहर, अपने अमूल्य कोषों के द्वार

मेरे लिए खोल!

अपनी प्रज्ञा और संवेगों के आलिंगन में

अखिल विश्व को बाँध लूँगा मैं!

आओ,

हम बीहड़ और कठिन सुदूर यात्रा पर चलें

आओ, क्योंकि – छिछला, निरुद्देश्य और

लक्ष्यहीन जीवन

हमें स्वीकार नहीं।

हम ऊँघते, कलम घिसते हुए

उत्पीड़न और लाचारी में नहीं जियेंगे।

हम – आकांक्षा, आक्रोश, आवेग और

अभिमान में जियेंगे।

असली इंसान की तरह जियेंगे।

 (18 वर्ष की उम्र में लिखी कविता)

कार्ल मार्क्स

कार्ल मार्क्स

धूल की जगह राख होना चाहूँगा मैं!

मैं चाहूँगा कि एक देदीप्यमान ज्वाला बन जाये

भड़ककर मेरी चिनगारी

बजाय इसके कि सड़े काठ में उसका दम घुट जाये।

एक ऊँघते हुए स्थायी ग्रह के बजाय

मैं होना चाहूँगा एक शानदार उल्का

मेरा प्रत्येक अणु उद्दीप्त हो भव्यता के साथ।

मनुष्य का सही काम है जीना, न कि सिर्फ जीवित रहना।

अपने दिन मैं बर्बाद नहीं करूँगा

उन्हें लम्बा बनाने की कोशिश मैं।

मैं अपने समय का इस्तेमाल करूँगा।

जैक लण्डन

जैक लण्डन

मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वान, जुलाई-अक्‍टूबर 2010

 

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