Tag Archives: कुपोषण

मानवद्रोही-मुनाफ़ाखोर व्यवस्था का शिकार बनता मासूम बचपन

इस व्यवस्था में बच्चों की व्यापक आबादी का भविष्य अंधकारमय है यदि आप दिल से युवा हैं और चाहते हैं कि बच्चों को बचाया जाये तो इस मानवद्रोही व्यवस्था को जल्द को जल्द बदलने की मुहिम में जुड़ना होगा। इस व्यवस्था का विकल्प खड़ा करने में प्रगतिशील व परिवर्तनकामी ताकतों को साथ आना होगा।

‘‘उभरती अर्थव्यवस्था’’ की उजड़ती जनता

हमारे देश का कारपोरेट मीडिया और सरकार के अन्य भोंपू समय-समय पर हमें याद दिलाते रहते हैं कि हमारा मुल्क ‘‘उभरती अर्थव्यवस्था’’ है; यह 2020 तक महाशक्ति बन जाएगा; हमारे मुल्क के अमीरों की अमीरी पर पश्चिमी देशों के अमीर भी रश्क करते हैं; हमारी (?) कम्पनियाँ विदेशों में अधिग्रहण कर ही हैं; हमारी (?) सेना के पास कितने उन्नत हथियार हैं; हमारे देश के शहर कितने वैश्विक हो गये हैं; ‘इण्डिया इंक.’ कितनी तरक्की कर रहा है, वगैरह-वगैरह, ताकि हम अपनी आँखों से सड़कों पर रोज़ जिस भारत को देखते हैं वह दृष्टिओझल हो जाए। यह ‘‘उभरती अर्थव्यवस्था’’ की उजड़ती जनता की तस्वीर है। भूख से दम तोड़ते बच्चे, चन्द रुपयों के लिए बिकती औरतें, कुपोषण की मार खाए कमज़ोर, पीले पड़ चुके बच्चे! पूँजीपतियों के हितों के अनुरूप आम राय बनाने के लिए काम करने वाला पूँजीवादी मीडिया भारत की चाहे कितनी भी चमकती तस्वीर हमारे सामने पेश कर ले, वस्तुगत सच्चाई कभी पीछा नहीं छोड़ती। और हमारे देश की तमाम कुरूप सच्चाइयों में से शायद कुरूपतम सच्चाई हाल ही में एक रिपोर्ट के जरिये हमारे सामने आयी।

दुनिया में एक अरब लोग भुखमरी के शिकार!

क्या यह चौंका देने वाला आँकड़ा नहीं है कि दुनिया भर में भुखमरी के शिकार लोगों की संख्या 96.3 करोड़, या कहें कि लगभग 1 अरब है। यह संख्या पूरी विश्व की आबादी का 14 प्रतिशत है। यह सिर्फ़ आँकड़े नहीं हैं; हर गिनती के पीछे एक हाड़-मांस का इंसान खड़ा है जो इंसान होते हुए भी इंसानियत की ज़िन्दगी नहीं जी रहा है। खून-पसीना बहाकर भी, हडि्डयों को गलाकर भी उसे और उसके बच्चों को दो जून की रोटी तक नहीं नसीब होती। मिलती है तो भुखमरी और मौत।