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गद्दाफ़ी की मौत के बाद अरब जनउभार: किस ओर?

पूरा अरब जनउभार वास्तव में उस घड़ी से आगे जा चुका है जिसे क्रान्तिकारी घड़ी कहा जा सकता था। मिस्र ही इस बार भी अग्रिम कतार में था और वहाँ कोई भी जनक्रान्ति पूरे अरब विश्व में एक ‘चेन रिएक्शन’ शुरू कर सकती थी। लेकिन किसी विकल्प, विचारधारा, संगठन और क्रान्तिकारी नेतृत्व की ग़ैर-मौजूदगी में यह घड़ी बीत गयी है। यह आने वाले समय के सभी जनान्दोलनों के लिए एक महत्वपूर्ण सबक दे गया है। स्वतःस्फूर्त जनान्दोलन और पूँजीवाद-विरोध पर्याप्त नहीं है। विकल्प का स्पष्ट ढाँचा और उसे लागू कर सकने के लिए सही विचारधारात्मक समझ वाला नेतृत्व और संगठन अपरिहार्य है, यदि वास्तव में हम एक बेहतर समय में प्रवेश करना चाहते हैं।

कद्दाफ़ी की सत्ता का पतनः विद्रोह की विजय या साम्राज्यवादी हमले की जीत?

कद्दाफ़ी की सत्ता का पतन किसी जनविद्रोह के बूते नहीं हुआ है। यह लीबिया में नवउदारवाद की नीतियों के लागू होने के बाद पैदा हुआ पूँजीवाद और पूँजीवादी शासक वर्गों के गठबन्धन का संकट था; यह कद्दाफ़ी की अधिक से अधिक गैर-जनवादी और तानाशाह होती जा रही सत्ता का संकट था; जिसका अन्त हमें एक ऐसे नतीजे के रूप में मिला है, जिसे जनता की जीत या विजय का नाम कतई नहीं दिया जा सकता है। लीबिया की जनता को अपने देश के मामलों का फैसला करने का हक़ है। लेकिन साम्राज्यवादी हस्तक्षेप ने उस प्रक्रिया को बाधित कर दिया है और एक रूप में यह प्रगति की रथ को पीछे ले गया है।