इलाहाबाद विश्वविद्यालय में छात्रों ने जीती एक और लड़ाई : प्रमोशन और अंक सुधार के मुद्दे पर प्रशासन को किया झुकने पर मज़बूर
आह्वान संवाददाता
इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रशासन को दमन के तमाम हथकण्डे अपनाने के बाद भी छात्रों के जुझारू आन्दोलन के आगे झुकना पड़ा रहा है। कोरोना महामारी के मद्देनजर इस बार विश्वविद्यालय प्रशासन ने स्नातक प्रथम वर्ष और परास्नातक प्रथम सेमेस्टर के छात्रों को छोड़कर सभी छात्रों को प्रोन्नति दे दी गयी।विश्वविद्यालय प्रशासन का कहना था कि प्रथम वर्ष और प्रथम सेमेस्टर के छात्रों के मूल्यांकन के लिए विश्वविद्यालय के पास कोई डेटा नही है। यह वही विश्वविद्यालय है जो पिछले साल कोरोना के पहली लहर के दौरान स्नातक प्रथम वर्ष और परास्नातक प्रथम सेमेस्टर के छात्रों को प्रोन्नत कर चुका है, और इस साल भी उन छात्रों को (द्वितीय वर्ष के छात्रों को) प्रोन्नति दे दी गयी है। अब सवाल उठता है कि विश्वविद्यालय के पास इन छात्रों प्रोन्नत करने के लिए डेटा कहाँ से आया? और अगर इन छात्रों का डेटा विश्वविद्यालय के पास है तो उसी विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले दूसरे छात्रों का डेटा कैसे नही है?
प्रोन्नत छात्रों को परेशान करने का कोई भी मौका विश्वविद्यालय हाथ से नही जाने दे रहा है। प्रोन्नत करते समय यह बात कही गयी थी कि छात्रों को 7 फीसदी तक अंक बढ़ाकर दिया जाएगा। लेकिन जब अंकपत्र मिलने लगा तब पता चला कि बढ़ाना तो दूर जो छात्र परीक्षा देकर पिछली बार बेहतर अंकों से पास हुए थे उनके अंक कम कर दिए गए। सबसे मजेदार बात तो यह है कि विश्वविद्यालय इसमें भी बहुत से छात्रों को अनुपस्थित, अनुचित चीज़ों के प्रयोग आदि दिखलाकर फेल तक कर दिया है। बहुत से छात्रों का रिजल्ट अब तक विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर नही अपलोड हुए है जिससे छात्रों में अनिश्चितता बनी हुई है। ऊपर से तुर्रा यह कि विश्वविद्यालय ने तानाशाहीपूर्ण फ़रमान जारी कर दिया कि स्नातक तृतीय वर्ष के प्रोन्नत छात्रों को अंक सुधार परीक्षा में बैठने का मौका नही दिया जाएगा। मतलब एक तो छात्रों का अंक कम कर दिया गया ऊपर से उसको सुधारने के सारे दरवाज़ों पर ताला जड़ दिया गया।
विश्वविद्यालय के इस छात्र विरोधी रुख के खिलाफ छात्र आंदोलित होने लगे। दिशा छात्र संगठन समेत अन्य छात्रों ने इसके खिलाफ़ विश्वविद्यालय में प्रदर्शन कर स्नातक प्रथम वर्ष और परास्नातक प्रथम सेमेस्टर के छात्रों को प्रोन्नत करने और स्नातक तृतीय वर्ष के छात्रों के लिए न्यूनतम 60% अंक सुनिश्चित करने की मांग उठाना शुरू किया। बाद में इन माँगो को लेकर परीक्षा नियंत्रक और कुलपति को ज्ञापन दिया गया लेकिन छात्रों को केवल आश्वासन मिलता रहा। विश्वविद्यालय प्रशासन हर रोज़ बैठके करता रहा और अपने छात्र विरोधी रुख पर अड़ियल रहा। हद तो तब हो गयी जब प्रथम वर्ष और प्रथम सेमेस्टर के छात्रों को प्रोमोट करने के माँग पर मीटिंग में बहुमत इस बात की थी कि छात्रों को प्रोमोट कर दिया जाय लेकिन मीटिंग में कुलपति महोदय ने वीटो का प्रयोग करते हुए फैसले को सुरिक्षत रख छात्रों के साथ गंदे मज़ाक की सीमा तक उत्तर आयी। अगले दिन दिशा छात्र संगठन और अन्य छात्रों ने जब आन्दोलन तेज़ किया तब जाकर विश्वविद्यालय को झुकना पड़ा और सभी छात्रों को बिना शर्त प्रोन्नत करना पड़ा। इसके बाद अंक सुधार परीक्षा से छात्रों को वंचित किया जाने के मांग पर आन्दोलन तेज हुआ। 23 जून को छात्रसंघ भवन पर इक्कट्ठा होने के लिए कॉल दिया गया। इसके बाद विश्वविद्यालय प्रशासन और सत्ता के छात्रों-नौजवानों के आन्दोलनों से डर का नमूना इलाहाबाद विश्वविद्यालय कैम्पस में देखने को मिला और अभी तक मिल रहा है। जब छात्र सभी प्रोन्नत छात्रों को न्यूनतम 60 फीसदी अंक सुनिश्चित करने और अंक सुधार परीक्षा के अधिकार को बहाल करने के मांग को लेकर छात्रसंघ भवन पर जुटने लगे तो विश्वविद्यालय को छावनी में तब्दील कर दिया गया है। गौरतलब है कि विश्वविद्यालय का रवैया भी देश की राजनीति से इतर नहीं तय होता है। आज देश की सत्ता में बैठी फ़ासीवादी मोदी सरकार शिक्षा का भी पूरी तरह से लुटेरों के मुनाफ़ा कमाने का अड्डा बनाने में लगी हुई है। नयी शिक्षा नीति भाजपा के फ़ासीवादी एजेण्डे को अमलीज़ामा पहनाने की नीति है जो आम मेहनतकश परिवारों से आने वाले छात्रों-नौजवानों को शिक्षा के बुनियादी अधिकार से भी दूर धकेल देगी। दूसरे विश्वविद्यालय में बचा-खुचा डेमोक्रेटिक स्पेस भी इस नीति की भेंट चढ़ जाएगा और चढ़ रहा है। क्योंकि इस नीति में छात्रों के किसी भी जनवादी मंच का कोई जिक्र तक नही है। मोदी सरकार किस तरह विश्वविद्यालयों के बाहर होने वाले छात्रों-नौजवानों के आन्दोलनों को पुलिस के लाठी के दाम पर कुचल रही है, इसका एक उदाहरण पिछले साल 5 सितम्बर को देखने को मिला जब बेरोज़गारी से तंग नौजवान मोदी के जन्मदिन को देश भर में बेरोज़गारी दिवस के रूप में अपना प्रतिरोध दर्ज कर रहे थे। उस समय अकेले इलाहाबाद में तीन जगहों पर लाठी चार्ज किया गया था।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रशासन जो केन्द्र सरकार का लाडला बनने के लिए इतना उतावला है कि आनन-फानन में नयी शिक्षा नीति को विश्वविद्यालय में थोपने की तैयारी कर रहा है। और साथ ही साथ फ़ासीवादी सत्ता के तर्ज पर नौजवानों को यह संदेश भी देने की कोशिश में लगा हुआ है कि कोई भी अगर प्रशासन के खिलाफ बोलेगा तो उसको पुलिस की लाठियों के दाम पर चुप करा दिया जाएगा। लेकिन तमाम साजिशों, गिरफ्तारी और पुलिसिया दमन के बावजूद न तो देश में और न ही विश्वविद्यालय में छात्र लड़ने की ज़िद छोड़ रहे हैं। इन माँगो को लेकर विश्वविद्यालय में दो दफ़ा गिरफ्तारी भी हुई लेकिन इन मांगों को लेकर आन्दोलन कुलपति कार्यालय पर अनिश्चित कालीन धरने में बदल गया। धरना खत्म करने के लाख कोशिशों, के बावजूद भी छात्र कुलपति कार्यालय पर जमे रहे और अंत मे छात्रों के इस संघर्ष के आगे विश्वविद्यालय प्रशासन को घुटने टेकने पड़े और छात्रों को अंक सुधार परीक्षा में बैठने की अनुमति दे दी गयी।
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